सीरिया और राष्ट्रपति बशर अल असद इस तरह सुर्खियों में आएंगे, यकीन नहीं होता. विद्रोही बलों ने दो सप्ताह से भी कम समय में देश में घुसपैठ करके सीरिया की राजधानी पर कब्ज़ा कर लिया है. मुल्क के जैसे हालात हैं, सत्तावादी शासक बशर अल असद अपने 24 साल के शासन को समाप्त करते हुए दमिश्क से भाग गए हैं. जबकि सीरियाई आवाम सड़कों पर आज़ादी के नारे लगाते हुए जश्न मना रही है.
ध्यान रहे कि अबू मोहम्मद अल जोलानी हगयात तहरीर अल शाम ग्रुप की अगुवाई कर रहा है. यह सीरिया का सबसे बड़ा विद्रोही धड़ा है और फिलहाल देश की पूरी कमान इसी के हाथ में है. अपनी इस उपलब्धि पर जोलानी ने कहा है कि असद की सरकार का पतन इस्लामिक राष्ट्र की जीत है.
मौजूदा वक़्त में सीरिया में अराजकता का लेवल क्या है? इसे इसी से समझा जा सकता है कि सीरियाई के लोगों ने बशर अल असद के दिवंगत पिता हाफीज अल असद की देशभर में लगी मूर्तियों को तोड़ दिया है.
जगह जगह नारेबाजी हो रही है. साथ ही उन लोगों को 'सबक' सिखाया जा रहा है, जो बशर अल असद या उनके परिवार से किसी भी तरह की हमदर्दी रखते हैं.
तो आखिर कौन हैं ये विद्रोही?
बात पिछले हफ़्ते की है उत्तरी शहर अलेप्पो में असद के कई विरोधियों द्वारा शासन बलों पर शुरुआती हमला किया गया था. भले ही इसमें तुर्की द्वारा समर्थित सीरियाई राष्ट्रीय सेना के बैनर तले विद्रोही शामिल थे, लेकिन हमले का ज़्यादातर नेतृत्व जिहादी समूह हयात तहरीर अल शाम (HTS) ने किया.
बताते चलें कि नुसरा फ्रंट के नाम से मशहूर, अल कायदा की इस पूर्व शाखा, HTS में लगभग 30,000 सैनिक हैं जिन्हें लंबे समय से अमेरिका और रूस द्वारा आतंकवादी समूह घोषित किया गया है.
इनके विषय में रोचक ये है कि इनका गठन सीरियाई सरकार का विरोध करने के लिए 2016 में अल कायदा से अलग हुए अबू मुहम्मद अल जोलानी द्वारा किया गया था. जोलानी के विषय में भी मजेदार तथ्य ये है कि वो अल कायदा से अलग सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि उसका उद्देश्य अपनी उदारवादिता से दुनिया को अवगत कराना था.
सीरिया में विद्रोह के कुछ वीडियो भी वायरल हुए हैं. जिन्हें यदि देखें और उनका अवलोकन करें तो मिलता है कि जैसे ही विद्रोही अलेप्पो में घुसे, वीडियो में उन्हें फ़ोन पर आदेश जारी करते हुए दिखाया गया. जिसमें लड़ाकों को घरों में घुसने से मना किया गया और उन्हें नागरिकों की सुरक्षा करने की याद दिलाई गई.
वर्तमान में एक बड़ा वर्ग इस बात का पक्षधर हैं कि जोलानी और एचटीएस में स्पष्ट रूप से बदलाव आया है. वहीं अंतर्राष्ट्रीय मामलों के तमाम जानकार ऐसे भी हैं, जो मानते हैं कि जोलानी और एचटीएस पूर्व की तरह आज भी उतने ही कट्टर हैं. और यदि सीरिया की सत्ता इनके हाथों में आती है तो मुल्क का गर्त के अंधेरों में जाना तय है.
माना जा रहा है कि जैसे ही जोलानी और एचटीएस के हाथ में सत्ता आएगी. मुल्क के शिया, और ईसाई जो कि अल्पसंख्यक हैं और बशर के समर्थकों के खिलाफ हिंसक घटनाओं में इजाफा होगा.
किन योजनाओं के सहारे जन समर्थन जुटा रहा है जोलानी
जोलानी, जिसे 2013 में अमेरिका द्वारा आतंकवादी घोषित किया गया था, ने जिहादियों से डरने वाले सीरियाई अल्पसंख्यकों को आश्वस्त करने का प्रयास किया है। 2023 में, उसने उत्तर-पश्चिमी शहर इदलिब में वर्षों में पहली बार ईसाई धर्म के लिए प्रार्थना सभा की अनुमति दी. इसके अलावा अभी बीते दिन ही उसने जोर देकर कहा कि वे अलेप्पो के दक्षिण में स्थित ईसाई शहर के निवासियों की रक्षा करेंगे.
ज्ञात हो कि समूह की राजनीतिक योजनाएं अभी भी देखी जानी बाकी हैं. फ़िलहाल 13 साल के अविश्वसनीय रूप से खूनी और क्रूर गृह युद्ध के बाद, अभी सीरियाई लोगों के लिए जश्न मनाने और चीजों के बेहतर होने की उम्मीद करने का दिन है.
क्यों असद के खिलाफ हुए विद्रोही
ऐसा बिलकुल नहीं है कि सीरिया में सारा गतिरोध या ये कहें कि असद को सत्ता से बेदखल करने का प्रपंच यूं अचानक ही हुआ.
बताया जाता है कि पूरी प्रक्रिया बीते एक दशक से चल रही थी. बता दें कि बीते दस -बारह वर्षों से सीरिया गृहयुद्ध की आग में जल रहा था और रोचक ये कि विद्रोहियों की तेज़ी से हो रही प्रगति ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को चौंका दिया था.
माना जा रहा है कि सीरिया में जो तख्तापलट हुआ वो संयोग नहीं है. हिज़्बुल्लाह के बहुत कम हो जाने, क्षेत्र में ईरानी प्रॉक्सी और अन्य ईरानी मिलिशिया के कम हो जाने का पूरा फायदा विद्रोहियों ने उठाया और उसके बाद क्या हुआ नतीजा हमारे सामने है.
गौरतलब है कि रूस द्वारा यूक्रेन में अपने विशेष सैन्य अभियान को बढ़ावा देने के लिए सीरिया से बहुत अधिक सैन्य बल हटा लेने से असद की स्थिति उजागर हो गई है और विद्रोहियों ने वास्तव में इसका फायदा उठाया और रूस समर्पित असद को सत्ता से उखाड़ फेंका.
कौन-कौन देश हैं, जो सीरिया में ले रहे हैं इंटरेस्ट
सीरिया में जो असद के साथ हुआ उसने मध्य पूर्व में एक और मोर्चा फिर से खुलने की संभावना को बढ़ा दिया है. माना जा रहा है कि चाहे वो लेबनान और ईरान हों. या फिर रूस और यहां तक की अमेरिका और ब्रिटेन सभी की निगाहें सीरिया पर थीं.
इसके अलावा इस्लामिक स्टेट भी यहां अपनी संभावनाएं तलाश रहा है. इन सब के अलावा जब जिक्र सीरिया का हो. तो हम तुर्की को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते.
तुर्की लगातार कुर्द विस्तार का विरोध सीरिया के अंतर्गत कर रहा है और सीरिया की आड़ लेकर अपने को मध्य पूर्व का एक बड़ा खिलाड़ी साबित करने की जुगत मैं है.
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कौन हैं दमिश्क को अपनी मुट्ठी में जकड़ने का दावा करने वाले सीरियाई विद्रोही?