साल 2022, महीना था नवंबर. कानपुर स्थित डिफेंस कॉलोनी की रहने वाली नजीर फातिमा नाम की एक महिला ने जाजमऊ थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई थी. महिला ने आरोप लगाया था कि उसके घर को आग के हवाले किया गया है. एफआईआर में ये भी कहा गया कि घटना को अंजाम देने वाला कोई और नहीं बल्कि कानपुर के सीसामऊ से सपा विधायक इरफान सोलंकी और उनके भाई हैं.
मामला कोर्ट में गया और कोर्ट ने इरफान सोलंकी को 7 साल की सजा सुनाई. जिसके बाद उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द हुई और सीट उपचुनाव के लिए खली हुई. अखिलेश यादव ने इस सीट पर इरफान की पत्नी नसीम सोलंकी और बीजेपी ने सुरेश अवस्थी को टिकट दिया था.
सीसामऊ सीट को सपा का अभेद किला माना जाता है. इसलिए इस सीट को सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की आन, बान और प्रतिष्ठा की संज्ञा दी जा रही थी. खुद डिंपल यादव ने इस सीट पर सपा उम्मीदवार और इरफ़ान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी का जबरदस्त प्रचार किया. जिसका पूरा फायदा पार्टी को मिला. नसीम सोलंकी सपा का दुर्ग बचाने में कामयाब हुईं.
सवाल होगा कि एक ऐसी सीट, जिसके लिए भाजपा और सपा दोनों ने ही जी जान एक कर दी थी. उसपर तमाम विषमताओं के बावजूद सपा ने जीत का परचम कैसे लहराया? तो इस सवाल के लिए हमें कुछ कारणों पर नजर डालनी होगी, जिनको जानने के बाद इस बात का एहसास हमें स्वतः ही हो जाएगा कि, अगर सीसामऊ सीट पर सपा ने ऐतिहसिक जीत दर्ज की. तो ये लड़ाई उसके लिए कहीं से भी आसान नहीं थी.
पति गए जेल तो जनता से लगाई दुहाई
उत्तर प्रदेश में जैसी सियासत है और जिस तरह हर दूसरी चीज में हिंदू मुसलमान किया जा रहा है. फायदा उसी को मिलता है जो इस खेल को खेलना जानता हो. हिंदू मुस्लिम की पिच तो नसीम सोलंकी के लिए उसी वक़्त तैयार हो गयी थी जब पुलिस द्वारा उनके पति इरफ़ान सोलंकी को गिरफ्तार किया गया.
चूंकि मैदान पहले ही तैयार था मगर इसपर जो पारी नसीम सोलंकी ने खेली वो लाजवाब रही. पत्नी नसीम सोलंकी ने अपने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान पति इरफान सोलंकी को जेल में जबरन डालने को एक बड़े मुद्दे की तरह पेश किया. उन्होंने आरोप लगाया कि इरफान को फंसाया गया ताकि वो चुनाव न लड़ सकें और अपने लोगों के काम न करवा सकें.
आंखों में आंसू और चेहरे पर दर्द लिए वो लगातार जनता के बीच गईं. और इसे कुछ इस तरह पेश किया जिससे जनता विशेषकर मुसलमानों का दिल पिघला. इन सब का जो नतीजा निकला वो नसीम सोलंकी की जीत के रूप में हमारे सामने है.
भीगी पलकों से डिंपल-शिवपाल से मिलीं नसीम
जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को जाहिर कर चुके हैं. पति इरफ़ान सोलंकी के जेल जाने का भरपूर फायदा नसीम सोलंकी ने उठाया. कैसे? इसे समझने के लिए हम उस रोड शो और रैली का अवलोकन कर सकते हैं जो नसीम के लिए शिवपाल और डिंपल ने की.
बताते चलें कि नसीम की जीत के लिए जहां एक तरफ शिवपाल लगातार जनसभाएं कर रहे थे, वहीं डिंपल उनके लिए रोडशो में बिजी थीं.शिवपाल के साथ मंच साझा करने वाली नसीम एक बार जनता के सामने भावुक भी हुईं थीं.
आंखों में आंसू लिए उन्होंने कहा था कि. 'बस एक बार विधायक जी को छुड़वा दो. हम थक गए हैं. यह आखिरी लड़ाई होगी इंशाल्लाह.' नसीम की इस बात पर अपना पक्ष रखते हुए शिवपाल ने कहा था कि यह ऐसा समय है जब भारतीय जनता पार्टी ने पूरे उत्तर प्रदेश की मां-बेटियों के साथ रुलाने का काम किया है.
शिवपाल ने भाजपा पर आरोप लगाते हुए ये भी कहा था कि जब से भाजपा सत्ता में आई तब से सभी वर्ग, जाति-धर्म के लोगों को परेशान करने का काम किया है. माना जाता है कि नसीम के रोने धोने का असर हुआ और जनता ने भी भर भरकर उन्हें वोट किया.
सिर्फ मुसलमानों पर नहीं, हिंदुओं पर भी किया फोकस
जिस तरह की राजनीति देश में चल रही है किसी एक पक्ष के वोट से राजनीति नहीं होती. इस बात को किसी ने समझा हो या न समझा हो नसीम सोलंकी ने बखूबी समझा है और शायद यही वो कारण था जिसके चलते गुजरी दिवाली को जनता ने नसीम सोलंकी को वानखंडेश्वर मंदिर में भगवन शिव का जलाभिषेक करते देखा.
वीडियो इंटरनेट पर वायरल हुआ तो खूब तहलका मचा. तरक्कीपसंद लोगों ने जहां नसीम के इस अंदाज की तारीफ की तो वहीं उन्हें कट्टरपंथियों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा.
मामले में दिलचस्प ये रहा कि एक ओर मुस्लिम कट्टरपंथियों ने नसीम सोलंकी को लेकर फतवा जारी किया तो वहीं दूसरी तरफ उनका मंदिर जाना हिंदू समुदाय को भी पसंद नहीं आया और लोगों ने मंदिर को गंगाजल से शुद्ध किया. अब क्योंकि नसीम उपचुनाव जीत गई हैं तो कहना गलत नहीं है कि उनका ये दांव कारगर साबित हुआ.
बहरहाल इस राजनीतिक रण में नसीम की ये जीत सपा और अखिलेश यादव के लिए संजीवनी साबित होती है या नहीं इसका फैसला तो वक़्त करेगा.
लेकिन जिस तरह नसीम सपा का अभेद किला बचाने में कामयाब हुईं, वो इसलिए भी महत्वपूर्ण है. क्योंकि यदि सपा एक अन्य जरूरी सीट कुंदरकी की तरह इसे भी हार जाती तो फिर उसके पास संभालने को कुछ बचता नहीं. इसका सीधा असर हमें अखिलेश यादव, उनके नेतृत्व और उनकी पॉलिटिक्स पर देखने को मिलता.
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