डीएनए हिंदी: Shiv Sena News- महाराष्ट्र में 57 साल पहले रखी गई हिंदुत्व की सियासत की तस्वीर बदल गई है. चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) गुट को 'असली शिवसेना' का दर्जा देकर अचानक ठाकरे परिवार को राजनीतिक परिदृश्य से गायब कर दिया है. आयोग ने पार्टी का नाम और धनुष-बाण का पार्टी सिंबल, दोनों पर शिंदे का हक माना है. हालांकि ठाकरे परिवार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, लेकिन फिलहाल एक्सपर्ट्स इसे महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार की अहमियत खत्म होने के तौर पर देख रहे हैं. क्या वास्तव में ऐसा होगा? क्या 5 दशक तक देश में अपनी तरह की अलग ही राजनीति करने वाला ठाकरे परिवार अब महाराष्ट्र की राजनीति में पहले जैसे प्रभुत्व में नहीं रहेगा? उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) क्या अपने पिता बाल ठाकरे की तरह 'जीरो से हीरो' बनने का सफर तय कर पाएंगे? इन सब सवालों का जवाब जानने के लिए आइए शिवसेना विवाद (Shiv Sena Row) को 10 पॉइंट्स में समझते हैं.
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1. पहले जानिए शिव सेना का गठन कैसे हुआ
मराठी अस्मिता को दोबारा पहचान दिलाने के लिए बाल ठाकरे ने मुंबई के शिवाजी पार्क में 19 जून, 1966 के दिन आम जनता की मीटिंग बुलाई. इस मीटिंग में 50,000 लोगों के लिए इंतजाम था, लेकिन भीड़ जुटी 2 लाख लोगों की. यहीं पर बाल ठाकरे ने नारियल फोड़कर शिव सेना के गठन की घोषणा की, जिसका प्रतीक चिन्ह टाइगर था. इसके बाद यह संगठन लगातार महाराष्ट्र की राजनीति में अपना प्रभुत्व दिखाता रहा है. हालांकि पार्टी ने पहला चुनाव 1971 में लड़ा था और उसे लोकसभा सीट पर पहली जीत 1980 में मिली थी, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे के कहे शब्द सत्ता और विपक्ष, दोनों जगह बैठे दलों के हर नेता को सुनने और मानने पड़े.
2. कैसे शुरू हुआ शिंदे-ठाकरे विवाद
साल 2019 में जब शिवसेना ने भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस-एनसीपी के सहयोग से सरकार बनाई तो मुख्यमंत्री बनने की होड़ में एकनाथ शिंदे सबसे आगे थे. यहां उद्धव ठाकरे ने परंपरा पलटते हुए पहली बार ठाकरे परिवार से मुख्यमंत्री महाराष्ट्र को देने का फैसला किया. इसके बाद उद्धव ने मुख्यमंत्री पद पर शपथ ली. इससे एकनाथ शिंदे उनसे छिटक गए. अंदरखाने चलती रही तकरार पिछले साल जून में तब सामने आई, जब एकनाथ शिंदे पार्टी के 55 में से 40 विधायकों को साथ लेकर बगावत कर गए और अलग शिवसेना का गठन कर लिया. उद्धव की सरकार गिर गई और भाजपा के सहयोग से सरकार बनाकर शिंदे मुख्यमंत्री बन गए. इसके बाद से ही उद्धव और शिंदे, दोनों अपने-अपने गुट को 'असली शिवसेना' होने का दावा कर रहे थे. अब आयोग ने शिंदे गुट को असली शिवसेना घोषित कर दिया है.
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3. आयोग ने क्यों माना शिंदे गुट को असली
चुनाव आयोग ने 78 पेज का फैसला दिया है, जिसमें उसने विस्तार से शिंदे गुट के असली शिवसेना होने का कारण बताया है. आयोग का कहना है कि शिंदे गुट के पास 55 में से 40 विधायक हैं, जिनकी पार्टी को साल 2019 विधानसभा चुनाव में मिले कुल वोट में 76 फीसदी हिस्सेदारी है. इसके उलट ठाकरे गुट के पास महज 23.5 फीसदी वोट हैं. शिंदे के पास लोकसभा में 18 में से 13 शिवसेना सांसदों का समर्थन है. इन्हें 1.02 करोड़ वोट साल 2019 लोकसभा चुनाव में मिले थे, जबकि ठाकरे गुट के 5 सांसदों को 27.56 लाख वोट मिले थे. इस लिहाज से फिलहाल जनमत शिंदे गुट के समर्थन वाली शिवसेना के साथ है.
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4. उद्धव को किन बातों की अनदेखी पड़ी भारी
भले ही उद्धव ठाकरे ने इस फैसले के बाद चुनाव आयोग पर कई तरह के आरोप लगाए हैं, लेकिन एक्सपर्ट्स ने आयोग के फैसले के हिसाब से उद्धव की अनदेखी को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है. दरअसल आयोग ने कहा है कि उसका फैसला 'पार्टी संविधान' और 'बहुमत' पर आधारित है. आयोग के सामने उद्धव ने शिवसेना नाम व धनुष-बाण सिंबल पर दावा 2018 के पार्टी संविधान के हवाले से ठोका था, लेकिन आयोग का कहना है कि इस संशोधन की जानकारी कभी भी उसे दी ही नहीं गई.
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5. अब उद्धव के लिए एक और बड़ी चुनौती
उद्धव के लिए अब एक और बड़ी चुनौती पैदा हो गई है. 57 साल में पहली बार शिवसेना और ठाकरे का नाम अलग-अलग हो चुका है. ऐसे में उनके साथ खड़े 15 विधायक और 5 सांसद भी अपनी सीट गंवा सकते हैं. शिंदे गुट चाहे तो इनके खिलाफ 'अयोग्यता' का दावा ठोककर सदस्यता खारिज करने का आवेदन आयोग को दे सकता है. शिंदे ने इन 15 विधायकों को मुख्यमंत्री बनते ही कारण बताओ नोटिस जारी किया था. इसके बाद 14 विधायकों पर कार्रवाई भी कर दी गई थी. अब इनकी सदस्यता पूरी तरह खत्म हुई तो उद्धव की राजनीति खत्म होने का संकट पैदा हो जाएगा.
6. क्या सुप्रीम कोर्ट से मिलेगी उद्धव को राहत
सोमवार को उद्धव ठाकरे के वकील के तौर पर कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट के सामने आयोग के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल की है. हालांकि चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने तत्काल सुनवाई की उनकी मांग को ठुकराते हुए मंगलवार को बुलाया है. उद्धव गुट सुप्रीम कोर्ट से चुनाव आयोग के फैसले पर रोक लगाने की मांग की है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट की तरफ से इस मामले में फाइनल डिसीजन देने तक आयोग की तरफ से पिछले साल लागू दो दलों की अस्थायी व्यवस्था को बरकरार रखने की मांग की है.
Lawyer of Uddhav Thackeray faction mentions plea before Supreme Court, challenging Election Commission's move to allot party name "Shiv Sena" and the symbol "Bow and Arrow" to the faction led by Maharashtra CM Eknath Shinde.
— ANI (@ANI) February 20, 2023
Supreme Court asks the lawyer to mention it tomorrow. pic.twitter.com/HQOh4pbWrp
7. शिंदे गुट क्या तैयारी कर रहा है
सूत्रों के मुताबिक, शिंदे गुट अब ठाकरे खेमे को सांस लेने का मौका नहीं देना चाहता है. उसकी तरफ से भी सुप्रीम कोर्ट मे ठाकरे गुट की याचिका की काट के लिए सभी उपलब्ध कानूनी विकल्पों पर विचार चल रहा है. इसके लिए कानूनी विशेषज्ञों की टीम लगाई गई है. सुप्रीम कोर्ट में इसी कारण शनिवार को ठाकरे गुट की याचिका पर फैसला देने से पहले शिंदे गुट का पक्ष सुनने की कैविएट दाखिल की गई हैय
8. एक्सपर्ट्स की क्या है इस मामले में राय
एक्सपर्ट्स इस मुद्दे पर अलग-अलग तरह की राय दे रहे हैं, लेकिन सबसे स्पष्ट और कानूनी नजरिए वाली राय महाराष्ट्र के महाधिवक्ता श्रीहरि अणे ने दी है. अणे ने एक न्यूज चैनल से कहा, चुनाव आयोग को संविधान से निर्णय लेने का अधिकार मिला है. आयोग ने इस विवाद में अपना फैसला सबूतों के आधार पर दिया है. मेरे हिसाब से इस निर्णय के कुछ बिंदुओं पर सुप्रीम कोर्ट विचार कर सकता है.
9. क्या शिंदे गुट पुराने पार्टी व्हिप के आधार पर कर सकता है कार्रवाई?
एकनाथ शिंदे ने जब विधानसभा में बहुमत साबित किया था तो उनके गुट ने खुद को असली शिवसेना बताते हुए व्हिप जारी किया था. यह व्हिप उन्होंने ठाकरे गुट के विधायकों को भी भेजा था. मुख्यमंत्री बनने के बाद और विधानसभा अध्यक्ष अपने गठबंधन से बनाने के बाद उन्होंने इसी व्हिप को तोड़ने का आरोप ठाकरे गुट के विधायकों पर लगाकर उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया था. अब शिवसेना पर कब्जा मिलने के बाद शिंदे गुट इसी व्हिप के आधार पर इन विधायकों की सदस्यता खारिज कराने की तैयारी में है. क्या वह ऐसा कर सकता है?
महाधिवक्ता श्रीहरि अणे ने इसे भी स्पष्ट किया है. उन्होंने कहा, शिंदे गुट का व्हिप ठाकरे गुट के विधायकों पर लागू नहीं होता. आयोग ने शिवसेना के दो धड़ों को दो अलग-अलग पार्टियां माना है, जिनमें मुख्य पार्टी यानी शिवसेना नाम व सिंबल की हकदार शिंदे की पार्टी है. इस हिसाब से ठाकरे की पार्टी अब एक विपक्षी दल है, जिसे कोई नया नाम चुनना होगा. भाजपा का व्हिप शिवसेना पर लागू नहीं होता, इसी तरह शिंदे की शिवसेना का व्हिप भी ठाकरे गुट पर लागू नहीं होगा.
10. पार्टी के नाम-सिंबल के साथ खत्म नहीं हुई लड़ाई
शिवसेना का नाम और सिंबल शिंदे गुट को मिल जाने के बाद भी यह विवाद खत्म नहीं हुआ है. ठाकरे गुट के सुप्रीम कोर्ट जाने से भी इतर यह विवाद अब महाराष्ट्र की सड़कों पर दिख सकता है, जो हिंसक भी हो सकता है. दरअसल शिंदे गुट अब ठाकरे गुट से शिवसेना के ऑफिसों को खाली कराने की मुहिम चला सकता है. अकेले मुंबई में ही शिवसेना के 227 स्थानीय कार्यालय चल रहे हैं. शिंदे गुट इन सभी को अपने पास लेना चाहेगा. यदि ऐसा हुआ तो दोनों तरफ से कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक टकराव होने की संभावना है.
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