क्या हिंदू होना, उसपर भी बांग्लादेश में हिंदू होना गुनाह है? सवाल किसी को आहत कर सकता है. तो किसी को इमोशनल. वहीं कई लोग ऐसे भी होंगे, जो इस सवाल को सुनने मात्र से उग्र हो जाएंगे. फिर जो प्रतिक्रियाएं आएंगी, उनसे एक बात तो साफ़ हो जाएगी कि, अब वो समय आ गया है जब बांग्लादेश में हिंदू हितों के लिए भारत को ठोस कदम उठाने चाहिए. इसके अलावा संदेह के घेरों में मोहम्मद यूनुस और उनकी नीयत भी आएगी. जी हां सही सुन रहे हैं आप. बीते अगस्त में बांग्लादेश में मचे गतिरोध और पीएम शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद आनन फानन में मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाया गया.
लिखाई पढ़ाई के लिहाज से इकनॉमिस्ट रह चुके और अपनी उपलब्धियों से नोबेल हासिल कर चुके यूनुस से उम्मीद जताई जा रही थी कि, उनके नेतृत्व में बांग्लादेश के हालात बदलेंगे. मगर जिस तरह वर्तमान में बांग्लादेश में हिंदुओं को कत्लेआम का सामना करना पड़ रहा है, उससे इतना तो साफ़ है कि, मुल्क में कुछ नहीं बदला है और हालात बद से बदतर हो गए हैं.
बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति जैसी है, देश दुनिया में तमाम लोग ऐसे हैं जो इस बात के पक्षधर हैं कि मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश के पीएम पद के लिए फिट नहीं हैं? जिस तरह यूनुस तीन महीने से जारी इस हिंसा को रोकने में नाकाम हैं, खुद इस बात की पुष्टि हो जाती है कि बांग्लादेशी हिंदुओं की जान की कीमत पर वो तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे हैं.
बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस और उनकी सरकार के मद्देनजर सवाल तमाम हैं. अब जबकि सब कुछ बिगड़ चुका है तो कहना गलत नहीं है कि यूनुस पद के लिए सही चुनाव नहीं थे. आइये कुछ बिंदुओं पर नजर डालें और इस बात को समझें कि मोहम्मद यूनुस जैसे व्यक्ति की हाथ में सत्ता की चाबी देकर बांग्लादेश ने एक बहुत बड़ी गलती को अंजाम दिया है.
हिंदू हमलों पर अखर रही है यूनुस की चुप्पी
इसमें कोई शक नहीं है कि शेख हसीना के जाने के बाद बांग्लादेश में कथित तौर पर मंदिरों में तोड़फोड़ हुई है और निर्दोष अल्पसंख्यकों (हिंदुओं) को मारा गया है. हालात कितने जटिल हैं? इसका अंदाजा अमेरिकन एनजीओ, फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज की एक रिपोर्ट से लगाया जा सकता है.
रिपोर्ट पर यकीन करें तो 5 अगस्त के बाद से हिंदू समुदाय पर हिंसा के दो सौ से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं. मामले में हैरान करने वाली बात ये है कि इनके अलावा तमाम मामले ऐसे हैं जो सामने ही नहीं आए हैं.
अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमलों के पीछे कथित तौर पर जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश के लोग हैं. लेकिन जिस तरह इन हमलों पर यूनुस ने चुप्पी साध रखी है. सवाल हो रहा है कि कहीं ये सब यूनुस के ही इशारों पर तो नहीं हो रहा? यदि ऐसा है तो यक़ीनन इसकी निंदा की जानी चाहिए.
अल्पसंख्यकों पर रुख खड़े कर रहा है तमाम सवाल
जैसा कि हम ऊपर ही बता चुके हैं बांग्लादेश में हिंदुओं की हालत बहुत ख़राब है. ऐसे में जिस तरह अब तक यूनुस ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए, लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं. सरकार के 100 दिन पूरे होने पर देश के नाम संदेश में उनका बड़ी ही बेशर्मी के साथ इस मुद्दे को पूरी तरह से खारिज कर देना और ये कहना कि अंतरिम सरकार के गठन के बाद से देश पूरी तरह से सुरक्षित है. उनका झूठ दुनिया के सामने लाता हुआ नजर आता है.
कट्टरपंथियों से है यूनुस का गहरा याराना
बांग्लादेश में तमाम लोग ऐसे हैं जिनका मानना है कि यूनुस ही वो शख्स हैं जो मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में कटटरपंथियों को खाद पानी मुहैया करा रहे हैं. बताते चलें कि यूनुस के जमात-ए-इस्लामी से घनिष्ठ संबंध हैं. पूर्व में भी ऐसे तमाम मौके आए हैं जब उन्हें इस संगठन के लोगों के साथ हंसते मुस्कुराते देखा गया है.
दिलचस्प ये कि शेख हसीना के शासनकाल में जमात-ए-इस्लामी पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगे थे. जिन्हें अंतरिम सरकार के गठन के बाद यूनुस ने हटा दिया. इसके अलावा यूनुस बांग्लादेश में उन संगठनों जैसे हेफाजत ए इस्लाम के भी खासे करीब हैं. जो भारत विरोधी एजेंडा रखते हैं. इन संगठनों के मंसूबे कितने खतरनाक हैं? इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्तमान में बांग्लादेश में जो हिंसा हो रही है उसमें इन लोगों का बहुत बड़ा हाथ है.
बहरहाल, हम फिर इस बात को दोहरा रहे हैं कि, मौजूदा वक़्त में जैसे बांग्लादेश के हालात हैं और जिस तरह वहां अंतरिम सरकार और यूनुस ने प्रेस की आजादी पर हमले किये हैं. कहना गलत नहीं है कि यहां सत्ताधारी दल अपनी असफलताओं को छुपा रहा है.
यूनुस के साथ साथ बांग्लादेश का आने वाला वक़्त क्या होगा? इसका फैसला वक़्त करेगा. लेकिन जिस तरह वर्तमान में बांग्लादेश में हिंदुओं को अपनी मूल भूत जरूरतों के अलावा अधिकारों के लिए लड़ना पड़ रहा है. स्वतः इस बात की तस्दीख हो जाती है कि, कट्टरपंथ की आग में जलते इस मुल्क में हिंदू सुरक्षित तो बिलकुल नहीं है.
खैर, अंत में हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि एक नेता के रूप में मोहम्मद यूनुस को इस बात को समझना होगा कि नफरत और जहर की जो खेती वो कर रहे हैं. उससे तैयार हुई फसल न केवल उन्हें बल्कि उनके पूरे मुल्क को तबाह और बर्बाद कर देगी.
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