डीएनए हिंदी: Weather Updates- मानसूनी बारिश ने इस बार हाहाकार मचा दिया है. उत्तर-पश्चिम भारत में दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर तक, हर तरफ बाढ़ की विकरालता दिख रही है. हर तरफ शहर से लेकर गांव तक, हर जगह पानी में डूबे घर और खेत दिख रहे हैं. बहुत सारे लोग प्रकृति के इस रौद्र रूप के कारण मौत के शिकार हो गए हैं तो अरबों रुपये की संपत्तियों का नुकसान हुआ है. इसके उलट समूचा पूर्वी भारत बारिश की कमी के कारण सूखे जैसे हालात से जूझ रहा है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों समेत बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्व के अधिकतर राज्यों में इस बार 30 से 40 फीसदी तक कम बारिश दर्ज की गई है, जिससे धान की फसल को बड़े पैमाने पर नुकसान होने की आशंका है.
मानसूनी बारिश के इस असमान वितरण के कारण मौसम विज्ञानी भी हतप्रभ हैं. इसे ग्लोबल वार्मिंग का इफेक्ट माना जा रहा है, जिसके चलते एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स (Extreme Weather Events) से जूझना पड़ रहा है, जिनमें उत्तराखंड के ऊंचे पहाड़ों और हिमाचल प्रदेश के स्पीति जैसे इलाकों में जून-जुलाई के महीने में बर्फबारी का आश्चर्यजनक नजारा भी शामिल है. मौसम के इस रुख का क्या कारण है और क्या आगे भी इसका प्रभाव क्या यूं ही झेलना पड़ेगा. इसे लेकर DNA ने पड़ताल करने की कोशिश की है. आइए 5 पॉइंट्स में डालते हैं इस पूरी पड़ताल पर नजर.
1. इन 7 राज्यों में रही है 60% ज्यादा बारिश
भारत में मानसून का आगमन 1 जून को माना जाता है. हालांकि इस बार बिपरजॉय साइक्लोन के कारण मानसूनी हवाएं कई दिन की देरी से पहुंची थीं. भारतीय मौसम विभाग (IMD) के डाटा के मुताबिक, 1 जून से 12 जुलाई तक उत्तर-पश्चिम भारत के 7 राज्यों में सामान्य से 60% ज्यादा बारिश हुई है. इन राज्यों में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, गुजरात और राजस्थान शामिल हैं. इसके अलावा दिल्ली, उत्तर प्रदेश में सामान्य के मुकाबले 20% से 59% तक ज्यादा बारिश दर्ज की गई है.
2. हिमाचल प्रदेश में सामान्य से 205% ज्यादा बारिश
हिमाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा जल प्रलय देखने को मिली है. यहां सामान्य तौर पर जून-जुलाई के दौरान अब तक 85.60 मिमी औसत बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन यहां अब तक 260.80 मिमी बारिश हो चुकी है. यह सामान्य से करीब 205% ज्यादा बारिश है. बाढ़ से जूझ रहे दो अन्य राज्यों हरियाणा और पंजाब में भी यही हाल है. हरियाणा में सामान्य से 138% (52 मिमी के मुकाबले 123.5 मिमी) ज्यादा, जबकि पंजाब में 169% (56.5 मिमी के मुकाबले 152.20 मिमी) ज्यादा बारिश हुई है. राजस्थान में भी जून में बिपरजॉय साइक्लोन के प्रभाव के चलते सामान्य से करीब चार गुना ज्यादा बारिश हुई थी. जून के आखिर तक राजस्थान में 185% ज्यादा बारिश हो चुकी थी. हालांकि जुलाई में वहां सामान्य बारिश हुई है.
3. पूर्वी भारत पूरी तरह सूखा-सूखा
पूर्वी भारत के राज्यों में मानसूनी बारिश का मिजाज इसके ठीक उलट रहा है. पूर्वी, उत्तर-पूर्वी, दक्षिणी और मध्य भारत के 10 राज्य ऐसे हैं, जहां सामान्य से बेहद कम बारिश हुई है. त्रिपुरा में तो 61 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है, जिससे वहां बुरी तरह सूखे की मार हुई है. इन 10 राज्यों में आसाम भी शामिल है, जहां करीब ढाई सप्ताह पहले तक बेहद ज्यादा बारिश के कारण हजारों लोगों को शिफ्ट करना पड़ रहा था. इस इलाके में 6 राज्य ऐसे भी हैं, जहां सामान्य से थोड़ी ज्यादा ही बारिश हुई है. इनमें महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्य भी हैं, जो मानसून में बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित दिखाई देते थे.
4. अब बात करते हैं उत्तर-पश्चिम भारत में ज्यादा बारिश की
वेदर एक्सपर्ट इसका कारण पहाड़ों पर लगातार एक्टिव हो रहे वेस्टर्न डिस्टरबेंस को मानते हैं, जो इस बार ग्लोबल वार्मिंग इफेक्ट के चलते थोड़े-थोड़े समय पर लगातार असर दिखा रहा है. इस वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के साथ ही पंजाब-हरियाणा के इलाके में साइक्लॉनिक सर्कुलेशन के हालात बने हुए हैं. यहां मध्य भारत की तरफ से चलकर आया मॉनसून टर्फ भी एक्टिव है. ये तीनों मौसमी प्रभाव एकसाथ टकराने के कारण एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स की स्थिति बनी है, जिससे दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में 3-4 दिन बेहद ज्यादा बारिश हुई है.
4. क्या होती है साइक्लॉनिक सर्कुलेशन और मॉनसून टर्फ की कंडीशन
IMD के वैज्ञानिक आनंद शर्मा के मुताबिक, साइक्लॉनिक सर्कुलेशन उस कंडीशन को कहते हैं, जब हवा उल्टी दिशा में बहने लगती है और तेजी से वातावरण में ऊपर की तरफ जाती है. ऊपर पहुंचकर ये हवा तेजी से ठंडी होती है और बरसने लगती है. इस कंडीशन में अचानक बहुत ज्यादा बारिश होने लगती है. इसके उलट मॉनसून टर्फ उस कंडीशन को कहते हैं, जिनमें मॉनसूनी हवाएं अचानक किसी एक इलाके में ठहर जाती हैं. ऐसा उस इलाके में किसी कारण से कम दबाव वाला एरिया पैदा होने के कारण होता है. मॉनसूनी हवाओं के ठहर जाने से उस इलाके में बहुत ज्यादा बादल बनते हैं और हवाओं के साथ आई नमी से बड़े पैमाने पर बारिश होने लगती है.
5. अगले सप्ताह तक रहेगा इस कंडीशन का प्रभाव
वेदर एक्सपर्ट्स ये भी मान रहे हैं कि इस कंडीशन का प्रभाव अगले सप्ताह तक रहेगा. इस दौरान मॉनसून टर्फ हिमालय के इलाकों की तरफ बढ़ेंगे, जिससे उत्तराखंड और हिमाचल में और ज्यादा बारिश होगी. इसके बाद 15-16 जुलाई को दोबारा दिल्ली के आसपास मॉनसून टर्फ बनेगा. हालांकि दोबारा मॉनसून टर्फ को वेस्टर्न डिस्टर्बेंस और साइक्लॉनिक सर्कुलेशन का साथ नहीं मिलेगा, इसलिए तब इससे इतनी ज्यादा बारिश नहीं होगी.
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