Manmohan Singh Passes Away: देश के दो बार के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में गुरुवार (26 दिसंबर) की देर रात निधन हो गया है. उन्होंने दिल्ली एम्स (Delhi Aiims) में अपनी आखिरी सांस ली है. आज देश को दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर जाना जाता है. भले ही इसका श्रेय मौजूदा सरकार ले, लेकिन असल सच यही है कि इसकी नींव करीब 33 साल पहले मनमोहन सिंह ने ही तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव के साथ मिलकर रखी थी. साल 1991 में वित्त मंत्री रहते समय उन्होंने देश में लाइसेंस राज को खत्म करते हुए आर्थिक सुधारों की शुरुआत की थी, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था के नई ऊंचाइयों की तरफ सफर की शुरुआत की थी. हालांकि मनमोहन सिंह की भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार की कोशिश यहां से शुरू नहीं हुई थी, बल्कि इससे भी काफी पहले ही इसकी शुरुआत अपनी किताब 'भारत में निर्यात और आत्मनिर्भरता और विकास की संभावनाएं' के साथ कर दी थी. इस किताब में उन्होंने भारत की निर्यात आधारित व्यापार नीति की आलोचना की थी. इसके बाद से भी उन्होंने सरकार में लगातार अलग-अलग भूमिकाओं में रहते हुए आर्थिक सुधारों की कवायद शुरू की थी, जो 1991 में उनके वित्त मंत्री बनने के बाद परवान चढ़ी थी.
करियर से जानिए कैसे आर्थिक सुधारों में बने साइलेंट हमसफर
- मनमोहन सिंह ने संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) सचिवालय में काम किया, जो भारत के लिए बेहद फायदेमंद रहा.
- भारतीय अर्थव्यवस्था से मनमोहन सिंह का पहला जुड़ाव 1971 में वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्ति से हुआ.
- 1971 में मनमोहन सिंह को तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया.
- मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय के सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर पद पर काम करने का मौका मिला.
- मनमोहन सिंह ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का अध्यक्ष रहने के बाद प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार के तौर पर काम किया.
- 1991 में इन सब अनुभवों के साथ मनमोहन सिंह की भारतीय राजनीति में एंट्री हुई और पीवी नरसिम्हाराव ने उन्हें अपना वित्त मंत्री बनाया.
देश का खजाना मिला था मनमोहन को खाली
मनमोहन सिंह जब साल 1991 में देश के वित मंत्री बने तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती देश के खजाने को बचाने की थी, जो बिल्कुल खाली पड़ा हुआ था. सरकार को अपना खर्च चलाने के लिए देश का सोना गिरवी रखना पड़ा था. ऐसे दौर में मनमोहन सिंह ने लाइसेंस राज को खत्म करने और आर्थिक सुधारों को लागू करने का साहस दिखाया. भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक व्यापार के लिए खोलकर उन्होंने आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की. इसके बाद रुपये का अवमूल्यन करने, टैक्स घटाने और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के उनके कदमों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को वह रफ्तार दी, जिसकी बदौलत आज वह दुनिया मे 5वें नंबर तक पहुंच सकी है.
प्रधानमंत्री बनने पर सुधारों को बढ़ाया और आगे
मनमोहन सिंह साल 2004 में जब देश के 13वें प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने फिर से अपनी आर्थिक सुधारों की कवायद को आगे बढ़ाया. यूपीए सरकार में मनमोहन के ऊपर गठबंधन के सहयोगी दलों का दबाव था. साथ ही उन्हें कथित तौर पर सोनिया गांधी से पर्दे के पीछे हर फैसले पर मंजूरी की मुहर लगवानी पड़ती थी. इसके बावजूद उन्हें आर्थिक रूप से देश के सफल प्रधानमंत्रियों में से एक गिना जाता है, जिसके कार्यकाल में देश की GDP Growth ने साल 2007 में 9 फीसदी का बेंचमार्क छूकर इतिहास रच दिया था. इसके लिए मनमोहन सिंह के कई साहसिक फैसले भी जिम्मेदार माने जाते हैं.
मनमोहन के टैक्स सुधार को माना जाता है गोल्डन डिसिजन
मनमोहन सिंह ने देश में जटिल सेल्स टैक्स सिस्टम को खत्म करने के लिए साल 2005 में हर विरोध के बावजूद वस्तुओं के लिए वैल्यू एडेड टैक्स (VAT) सिस्टम और कारोबार के लिए सर्विस टैक्स लागू किया. इसे अर्थव्यवस्था के लिए गोल्डन डिसिजन माना जाता है. इससे सरकारी राजस्व नहीं घटा, लेकिन कारोबारियों को टैक्स के झमेले में सालों तक फंसे रहने से छुटकारा मिल गया.
मनरेगा को माना जाता है मास्टर स्ट्रोक
मनमोहन सिंह ने ही अपने समय में बेरोजगारों के लिए 100 दिन रोजगार की गारंटी योजना लागू की थी. अब मनरेगा (MNREGA) कहलाने वाली राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (NREGA) नाम की इस योजना को गांव-देहात तक लोगों की आर्थिक स्थिति सुधारने वाला मास्टर स्ट्रोक माना जाता है, जिससे देहातों में भी लोगों की खरीदारी क्षमता बढ़ी और उद्योगों को अपने उत्पाद बेचने के लिए नए कस्टमर मिले. उनके कार्यकाल के दौरान ही साल 2006 में देश में स्पेशल इकोनॉमिक जोन की शुरुआत हुई थी. इन सब कदमों के चलते ही साल 2008 में जब पूरी दुनिया आर्थिक मंदी से जूझ रही थी, तब भी भारतीय अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती दिखाई दी थी.
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आर्थिक सलाहकार से प्रधानमंत्री तक, जानें मनमोहन सिंह ने कैसे बदली भारतीय इकोनॉमी की दिशा