डीएनए हिंदी: Maharashtra News- महाराष्ट्र की राजनीति में उथल-पुथल लगातार जारी है. मराठा राजनीति ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी दिग्गज कहलाने वाले शरद पवार (Sharad Pawar) फेल नजर आ रहे हैं. राष्ट्रवादी कांग्रेस (NCP) में बगावत के मामले में भतीजे अजित पवार (Ajit Pawar) ने विधायकों के समर्थन वाले शक्ति प्रदर्शन में भी शरद पवार को पटखनी दे दी है. अजित पवार महाराष्ट्र की राजनीति में नए दिग्गज के तौर पर उभरे हैं. इसके बावजूद एक सवाल हर तरफ पूछा जा रहा है. यह सवाल है कि आखिर साल 2019 में अजित पवार के पहले समर्थन और फिर 24 घंटे के अंदर दगा का खेल खेलने के बावजूद भाजपा उनके साथ क्यों खड़ी है? क्या कारण है, जो भाजपा ने फिर एक बार अजित पवार पर भरोसा करते हुए उन्हें सरकार में उप मुख्यमंत्री बनाने का रिस्क लिया? दरअसल इस पूरे गेम के पीछे महाराष्ट्र की राजनीति नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजनीति का गेम है, जिसका लिंक लोकसभा चुनाव 2024 (2024 Lok Sabha elections) से जुड़ा हुआ है.
आइए 5 पॉइंट्स में समझते हैं लोकसभा चुनाव से जुड़े इस पूरे गेम को.
1. पहले जान लीजिए अजित पवार ने दिया था क्या धोखा
अजित पवार ने साल 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election) के बाद उस समय सभी को चौंका दिया था, जब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिव सेना ने भाजपा के साथ सरकार बनाने से इनकार कर दिया था. ठाकरे ने भाजपा का साथ छोड़कर शरद पवार और कांग्रेस के साथ महाविकास आघाड़ी (MVA) बना लिया था. भाजपा ने MVA को झटका देने के लिए अजित पवार के समर्थन से सरकार गठित कर दी थी. अजित पवार को तब भी डिप्टी सीएम बनाया गया था, जबकि देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने थे. हालांकि यह सरकार महज 80 घंटे ही चली थी, क्योंकि शपथ ग्रहण के कुछ घंटे बाद ही अजित पवार फिर से NCP खेमे में लौट गए थे. पिछले सप्ताह शरद पवार ने अजित पवार के भाजपा के साथ जाने और फिर छोड़कर लौट आने को अपना गेम बताया था. ऐसे में भाजपा कार्यकर्ता अजित पवार को पिछले 4 साल से 'दगाबाज' के टैग के साथ देख रहे थे. इसके बावजूद अब भाजपा और अजित पवार फिर से एक साथ आ गए हैं.
2. लोकसभा चुनाव 2024 के लिए वोट प्रतिशत का नुकसान टालने की कोशिश
भाजपा नेताओं का मानना है कि अजित पवार का साथ पार्टी को लोकसभा चुनाव 2024 में उद्धव ठाकरे वाले शिवसेना गुट के अलग होने की भरपाई करेगा. दरअसल भाजपा की निगाहें किसी भी तरह उत्तर भारत से बाहर अपनी लोकसभा सीटों को बढ़ाने पर है. लोकसभा चुनाव 2019 में महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन को 48 में से 41 सीट पर जीत मिली थी और कुल वोट का 50.88% हिस्सा उन्होंने कब्जाया था. बाकी 49% हिस्से में कांग्रेस नेतृत्व वाले UPA को 34.24% वोट और 5 सीट मिली थी. वोट प्रतिशत में शिवसेना की हिस्सेदारी 23.29% और NCP की 15.52% की थी. भाजपा को मालूम है कि शिवसेना (Eknath Shinde) गुट के साथ होने के बावजूद उद्धव ठाकरे गुट के कारण शिवसेना के वोट शेयर पर प्रभाव पड़ेगा. इस नुकसान की भरपाई के लिए ही भाजपा ने NCP का साथ लिया है. पिछले साल हुए एक चुनावी सर्वे में भी तत्काल चुनाव होने पर NCP को भाजपा के बाद दूसरे नंबर पर करीब 21% वोट मिलने का आकलन किया गया था. हालांकि भाजपा का यह दांव कितना सफल होगा, ये अगले साल चुनाव परिणाम आने पर ही पता चल पाएगा.
3. अजित पवार के साथ आए नेताओं का असर पड़ोसी राज्यों में भी
शरद पवार का साथ छोड़कर अजित पवार के नेतृत्व वाले NCP गुट में कई दिग्गज नेता भी आए हैं. इनमें प्रफुल्ल पटेल, सुनील तटकरे, नरेंद्र राठौड़, विजय देशमुख और शिवाजीराव गर्जे समेत तमाम ऐसे नेता हैं, जिन्हें महाराष्ट्र की राजनीति में दिग्गज माना जाता है. इन नेताओं का असर अपनी सीटों के अलावा आसपास के इलाकों में भी है. इसके अलावा इन नेताओं को पड़ोसी राज्य कर्नाटक की भी मराठी भाषी सीटों पर प्रभावी माना जाता है. भाजपा को उम्मीद है कि इसका भी लाभ साल 2024 लोकसभा चुनाव में मिलेगा.
4. राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी महाएकता को दिया झटका
NCP में तोड़फोड़ से भाजपा को केवल महाराष्ट्र में ही लाभ नहीं हुआ है, बल्कि इसका असर राष्ट्रीय राजनीति में भी दिखेगा. मिशन 2024 (Mission 2024) के तौर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) जिस विपक्षी महाएकता का झंडा बुलंद कर रहे हैं, उसका एक अहम पिलर शरद पवार भी थे. शरद पवार की हैसियत का अंदाजा इससे लग सकता है कि विपक्षी दलों की दूसरी साझा बैठक शिमला के बजाय बेंगलुरु में होने की घोषणा उन्होंने ही की थी. शरद पवार को ही विपक्षी गुट का असली संयोजक भी माना जा रहा था, लेकिन अब खुद अपने ही राज्य में उनकी क्षमता पर सवाल खड़े हो गए हैं. नए हालात का असर निश्चित तौर पर विपक्षी महाएकता में उनकी हैसियत पर भी दिखेगा, जिसका लाभ भाजपा को होगा.
5. महाराष्ट्र में कांग्रेस के UPA को कर दिया कमजोर
NCP के टूटने का सीधा असर महाराष्ट्र में कांग्रेस नेतृत्व वाले UPA पर दिखाई देगा. पिछले चुनाव में भी भाजपा-कांग्रेस के बजाय NDA-UPA का मुकाबला हुआ था. इस बार भी ऐसा ही होने की उम्मीद है, लेकिन NCP में टूटफूट के बाद उसकी गठबंधन में मौजूदगी का शायद ही कोई लाभ कांग्रेस को होगा. चुनाव के लिए UPA में उद्धव ठाकरे की शिवसेना की नई एंट्री होने की संभावना है, लेकिन ठाकरे गुट पर पहले ही एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना भारी दिख रही है.
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