एक मध्यम वर्गीय परिवार में सुख सुविधा के नाम पर लाख चीजें हों, फ्रिज का मुकाबला शायद ही कोई कर पाए. प्रायः घरों में ये जहां खड़ा होता है वहां से किचन की दहलीज शुरू होती है. यानी घर में मेहमान भी आ जाए तो घर में फ्रिज की लोकेशन देखकर वो ये आसानी से बता देगा कि यहां (उस घर में ) किचन कहां है.जिक्र फ्रिज का हुआ है तो जिस चीज ने व्यक्तिगत रूप से मुझे इसकी तरफ आकर्षित किया, वो थी इसकी लाइट. पीली लाइट.
बचपन से लेकर आज तक जब भी ये खुला और इसके अंदर जलती पीली लाइट दिखी, मन में ये विश्वास गहरा हुआ कि अगर रात में कभी भूख लगी तो इसी पीली लाइट वाले डिब्बे के अंदर वो शक्ति है जो मेरी भूख की तृष्णा को शांत कर सकती है.
वैसे बता दूं कि जीवन में फ्रिज खोलने के मौके मुझे कम ही मिले. और वो भी तब मिले, जब गर्मियों की शुरुआत होती. मां के साथ साथ पिता जी के भी सख्त निर्देश थे कि फ्रिज से बोतल कोई भी निकाले भरने की ड्यूटी तुम्हारी (मेरी) है. तो इसलिए न फ्रिज खोलना तब ही बहुत ज्यादा अच्छा लगा और अब का तो हाल ये है कि इसे देखकर मैं डरता हूं. थर -थर कांपता हूं.
कोई फ्रिज देखकर डर जाए? ये बात भले ही सुनने में अत्यधिक हास्यजनक लगे. लेकिन हमारे इसी देश भारत में कुछ मामले ऐसे हो चुके हैं जो स्वतः इसकी पुष्टि कर देते हैं कि फ्रिज भी कम शैतान नहीं है.
हो सकता है ये बात आपको कंफ्यूज करे. तो एक बार के लिए दिल्ली के श्रद्धा वॉकर केस को याद कीजिये. वहां लाश छिपाने के लिए कातिल आफ़ताब ने फ्रिज का इस्तेमाल किया था. हाल फिलहाल में बेंगलुरु का महालक्ष्मी मर्डर केस भी कुछ ऐसा ही है. जिसमें नेपाल की रहने वाली युवती महालक्ष्मी की पहले हत्या की गई. फिर उसकी लाश के कई टुकड़े करके उन्हें फ्रिज में रखा गया. फ्रिज श्रद्धा मामले में भी विलेन बना था और महालक्ष्मी मामले में भी इसे लेकर तमाम बातें हो रही हैं.
खैर सितम्बर ख़त्म होने वाला है. फिर अक्टूबर आएगा और देश में शादियों के सीजन की शुरुआत होगी. कल्पना कीजिये उन माता पिताओं की जो शादी की शॉपिंग अभी से कर रहे हैं. फ्रिज की कारस्तानियों के बाद वो भी इसे देखकर घबराए-घबराए फिर रहे हैं. दहेज़ में लें या दें इसे लेकर गहरी कश्मकश में हैं.
बहरहाल, अब जबकि हत्या जैसे मामलों में फ्रिज के इस्तेमाल का ट्रेंड आ ही गया है. तो कोई बड़ी बात नहीं कि, कल की डेट में जब कोई फ्रिज लेने जाए तो उसकी ठीक वैसे ही इन्क्वायरी हो, जैसी तब होती है जब हम पासपोर्ट बनवाते हैं. या फिर वैसी जांच जिसका सामना हमने तब किया हो जब कहीं किसी बैंक में लोन के लिए अप्लाई किया हो.
चूंकि श्रद्धा और महालक्ष्मी ये दोनों ही मामले 'कपल' और रिलेशनशिप से जुड़े हैं. तो अगर कल कोई कपल फ्रिज लेने जाए तो उनके सामने चुनौतियों का और बड़ा पहाड़ है. सोचिये घर के लिए फ्रिज लेने गया कपल उसमें भी लड़के को बड़ा, मजबूत और हट्टा कट्टा फ्रिज पसंद आ जाए तो काउंटर पर बैठा स्टोर मैनेजर और एक्सेक्यूटिव क्या उसे सिर्फ एक ग्राहक की तरह देखेगा?
जवाब है नहीं. स्टोर मैनेजर और एक्सेक्यूटिव को ये शक बना रहेगा कि लड़का फ्रिज का इस्तेमाल किसी 'दूसरी' ही चीज के लिए कर सकता है.
जैसी दहशत हमारे समाज में फ्रिज ने मचाई है कोई बड़ी बात नहीं कि कल की तारीख में कोई ऐसी मॉनिटरिंग कमिटी बन जाए जो रात के किसी भी पहर हमारे घरों की डोरबेल बजाए और फ्रिज कैसा है? कितना बड़ा है? उसमें क्या रखा है इसका औचक निरिक्षण करे.
बड़े या छोटे से मतलब है ही नहीं. मौजूदा हालात देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि फ्रिज लेने के लिए हमें घरवालों से दोस्तों से, रिश्तेदारों से, मुहल्ले वालों पड़ोसियों और अगर किराए के माकन में हों तो मकानमालिक से नोटरी में एफिडेविट देकर एनओसी लेनी पड़े.
हो सकता है उपरोक्त लिखी बातें मजाक लगें लेकिन फैशन के इस दौर में गारंटी की इच्छा क्या ही रखना. हो कुछ भी सकता है. संभव सब है.
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व्यंग्य: पहले दिल्ली की श्रद्धा अब बेंगलुरु की महालक्ष्मी! सामने जब 'फ्रिज' आता है, दिल दहल जाता है...