Kundarki By Election Result: महाराष्ट्र और झारखंड का विधानसभा चुनाव एक तरफ. यूपी और उसमें भी कुंदरकी उपचुनाव दूसरी तरफ. कुंदरकी में वो हुआ, जो शायद इतिहास में दर्ज होगा. जी हां बिलकुल सही सुना आपने. कुंदरकी सीट से बीजेपी उम्मीदवार ठाकुर रामवीर सिंह ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है और समाजवादी पार्टी के हाजी मोहम्मद रिजवान को न सिर्फ मात दी. बल्कि उनके साथ-साथ सपा का वो हाल किया, जो सोच और कल्पना से परे है.
भले ही ठाकुर रामवीर सिंह की इस जीत से समाजवादी पार्टी बौखला गयी हो. नतीजों पर ऐतराज जताते हुए भाजपा द्वारा चुनाव में धांधली के गंभीर आरोप लगा रही हो. मगर जब हम ठाकुर रामवीर सिंह की इस जीत का अवलोकन करते हैं तो ऐसी तमाम बातें सामने आती हैं, जो खुद इस बात की पुष्टि कर देती हैं कि सपा के घर में घुसकर उसका सफाया करना भाजपा के लिए कहीं से भी आसान नहीं था.
ध्यान रहे कि कुंदरकी मुस्लिम बाहुल्य सीट है. ऐसे में हमारे लिए भी ये जानना जरूरी है कि आखिर कैसे यहां भाजपा करिश्मा करने में कामयाब हुई है?
बात अगर कुंदरकी सीट की हो तो जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं, ये एक मुस्लिम बाहुल्य सीट है. 65% मुसलमान वोटरों के बीच यदि बीजेपी का हिंदू उम्मीदवार जीता है तो इसकी एकमात्र वजह वो बंटवारा है जो यहां ( कुंदरकी में ) तुर्क और शेख बिरादरी के बीच है.
बीजेपी ने यहां किसी और चीज को मुद्दा न बनाते हुए, इसी पिच पर खेल खेला. और वो कर दिखाया, जिसके बाद तमाम समीकरण धरे के धरे रह गए और अपने पूरे वैभव के साथ कमल खिला.
कुंदरकी में बीजेपी की जीत कितनी प्रचंड है? इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां रामवीर सिंह ने 1 लाख से ज्यादा वोटों से बड़ी जीत दर्ज की और तमाम राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया है.
भले ही अपने प्रत्याशी की हार के बाद समाजवादी पार्टी ने EVM और उसकी कार्यप्रणाली को निशाने पर लेने की शुरुआत कर दी हो. मगर लगातार तीन बार चुनावों में हार का मुंह देख चुके रामवीर को अब तक यह भली भांति ज्ञात हो चुका था कि बिना मुस्लिम वोट के वह चुनाव नहीं जीत सकते.
रामवीर ने मुसलमानों को साथ लिया और उसके बाद क्या हुआ? नतीजा हमारे सामने है. कह सकते हैं कि लोकप्रियता के मामले में रामवीर सिंह, हाजी मोहम्मद रिजवान से कहीं आगे हैं.
जिक्र रामवीर सिंह का हुआ है तो ये बता देना भी बहुत जरूरी हो जाता है कि भले ही भाजपा ने महाराष्ट्र और झारखंड में बटेंगे तो कटेंगे एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे के नारे पर चुनाव लड़ा हो. लेकिन कुंदरकी की तस्वीर अलग थी. यहां पूर्व में कई ऐसे मौके आए जब रामवीर सिंह टोपी और मुस्लिम स्कार्फ़ में मुसलमानों के बीच नजर आए.
कहा तो यहां तक जाता है कि चाहे मरना जीना हो या फिर शादी और अन्य प्रोग्राम इलाके के मुसलमानों ने हमेशा ही रामवीर सिंह को अपने बीच पाया. कुंदरकी के मामले में दिलचस्प ये भी रहा कि रामवीर सिंह ने एक कुशल नेता का परिचय देते हुए मुसलमानों का कोई भी काम जी जान एक कर करवाया.
बात अगर हाजी रिजवान की हो. तो जैसा उनका रवैया था, उससे लोगों में गहरा असंतोष था. बताया जा रहा है कि खुद उनकी बिरादरी यानी तुर्कों तक ने उनका साथ नहीं दिया और यही वो कारण बना जिसके बल पर रामवीर सिंह ने उन्हें करारी शिकस्त दी.
माना जा रहा है कि अगर सपा के गढ़ में हाजी रिजवान को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा तो इसकी एक सबसे बड़ी वजह एंटी इनकंबेंसी है. हाजी रिजवान तीन बार के विधायक थे मगर उन्होंने कोई काम नहीं किया जिससे इलाके की जनता खासी नाराज थी. कह सकते हैं कि जिस सीट पर बीजेपी साल 1993 से चुनाव नहीं जीत पाई हो, अगर उस सीट पर इतना बड़ा उलटफेर हुआ है तो ये साफ़ तौर पर सपा के लिए एक बड़ा संदेश है.
चाहे वो हाजी रिजवान हों या फिर अखिलेश यादव दोनों को न केवल इस हार को देखना चाहिए बल्कि इसका अवलोकन करते हुए इससे सबक लेना चाहिए. कुंदरकी में जो हुआ है वो सपा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां लोग नाराज थे.
अखिलेश को इस बात को समझना होगा कि अगर लोगों की नाराजगी दूर नहीं की गई तो आने वाले वक़्त में उनका और उनकी पार्टी का नामलेवा शायद ही कोई हो.
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कुंदरकी उपचुनाव में 'कमल' का कमाल... ठाकुर रामवीर के आगे सपा के हाजी रिजवान हुए निढाल