Jharkhand Assembly Election: झारखंड में दो चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव के चलते भले ही पोलिंग हो चुकी हो. मगर प्रचार अभियान के दौरान ऐसा बहुत कुछ हुआ, जिसने खुद इस बात की तस्दीख कर दी है कि, भले ही दिखावा कितना भी क्यों न हो, लेकिन राहुल गांधी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के बीच कुछ गड़बड़ है. जी हां सही सुना आपने. मतदान पूर्व झारखंड में जोरदार प्रचार अभियान चला, जिसमें एनडीए और इंडिया ब्लॉक दोनों के प्रमुख नेताओं ने राज्य भर में कई रैलियां कीं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भाजपा की ओर से मोर्चा संभाला. जबकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और सांसद राहुल गांधी ने अपनी पार्टी की ओर से रैलियों का नेतृत्व किया. इस पूरे प्रचार में सबसे खास ये रहा था कि, राहुल गांधी अपने गठबंधन सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की रैलियों से गायब रहे, जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कर रहे थे.

बताते चलें कि राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्य में सिर्फ़ छह चुनावी रैलियां कीं. हालांकि, वे सभी कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए थीं और झामुमो के लिए प्रचार नहीं किया, जिससे न केवल हेमंत सोरेन की पार्टी में निराशा हुई.  बल्कि एक वर्ग वो भी है जिसका मानना है कि, दोनों ही नेताओं के बीच कुछ मुद्दों को लेकर मतभेद की स्थिति बनी हुई है.  

चूंकि कांग्रेस पर लगा ये बड़ा आरोप था. इसलिए पार्टी नेताओं ने इसका बचाव करते हुए कहा कि, गांधी और खड़गे दोनों ही व्यस्त थे. उन्होंने बताया कि उन्हें (राहुल गांधी को) वायनाड में लोकसभा उपचुनाव पर भी ध्यान केंद्रित करना था, जहां कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने 13 नवंबर को अपना चुनावी पदार्पण किया था.

पार्टी सूत्रों ने यह भी कहा कि, सभी गठबंधन नेता भारत ब्लॉक की जीत सुनिश्चित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं और न ही कांग्रेस का अभियान कमजोर है और न ही यह अपने उम्मीदवारों तक सीमित है. नेताओं ने यह भी कहा कि पार्टी गठबंधन के प्रति पूरी तरह से वफादार और प्रतिबद्ध है.

इस बीच, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन सभी इंडिया ब्लॉक उम्मीदवारों के अनुरोध पर उनके लिए उपलब्ध थे. उन्होंने 90 से अधिक रैलियों को संबोधित किया. राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने भी कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया.

गौरतलब है कि झारखंड में कांग्रेस 30 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि झामुमो 41 सीटों पर, राजद छह सीटों पर और वामपंथी दल चार सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा ने 68 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि सहयोगी आजसू पार्टी ने 10, जदयू ने दो और लोक जनशक्ति (रामविलास) ने एक सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं.

झारखंड विधानसभा चुनावों के मद्देनजर रोचक तथ्य ये भी है कि 2019 के विधानसभा चुनावों में यहां मुकाबला कांटे का रहा था, जिसमें झामुमो ने 30 सीटें जीतीं थीं जबकि भाजपा ने 25 सीटें पर अपनी जीत दर्ज की थी , जो 2014 में 37 से कम है. झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने 47 सीटों के साथ बहुमत हासिल किया था.

ज्ञात हो कि दोनों चरणों के मतदान के बाद झारखंड में मतों की गिनती 23 नवंबर को होगी. कांग्रेस अपने कमजोर अभियान और 13 नवंबर को झारखंड में पहले चरण के मतदान से ठीक एक दिन पहले मौन अवधि के दौरान अपने घोषणापत्र का अनावरण करने के लिए आलोचनाओं का सामना पहले ही कर चुकी है. 

अब जबकि राहुल गांधी ने सोरेन के लिए प्रचार न कर एक नई बहस का आगाज कर दिया है. तो तमाम राजनीतिक विश्लेषक ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि आने वाले वक़्त में इंडिया ब्लॉक में हम ऐसा बहुत कुछ अनुभव करेंगे जो हमारी सोच और कल्पना से परे होगा.

झारखंड में सरकार किसकी बनती है ? इसका फैसला तो जनता अपने मत से कर ही चुकी है. लेकिन जो दलों का हिसाब किताब जीत देखने के लिए सभी आतुर हैं.  बाकी बात राहुल गांधी की हुई है तो सबको साथ लेकर चलना उनके लिए जरूरत भी है और मजबूरी भी. 

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Jharkhand Assembly Elections Rahul Gandhi skipped ally JMM poll rallies is conflict between congress and soren
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क्या हेमंत सोरेन-राहुल गांधी के रिश्तों में आई है तल्खी? आइये जानें कैसे
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झारखंड में प्रचार में राहुल गांधी का रवैया सवालों के घेरे में है
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क्या हेमंत सोरेन-राहुल गांधी के रिश्तों में आई है तल्खी? झारखंड चुनाव तो कुछ यही बता रहा!

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