बीते दिनों जैसी ही यह खबर सामने आई कि, भारत द्वारा अपनी पहली लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया जा रहा है, पड़ोसी देशों विशेषकर पाकिस्तान में खलबली मच गई. हर कोई यह जानने को आतुर था कि परीक्षण कैसा जाएगा. अब जबकि भारत द्वारा किया गया यह परीक्षण सफल साबित हुआ, पाकिस्तान के अगले कदम के बारे में अटकलें तेज हो गई हैं. बड़ा सवाल ये भी है कि क्या पाकिस्तान हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक हासिल कर पाएगा? इससे भी अहम सवाल ये है कि यदि ऐसा हो गया तो अपनी सुरक्षा की दृष्टि से भारत का अगला कदम क्या होगा?
ध्यान रहे कि सैन्य रणनीति की उच्च-दांव वाली दुनिया में, भारत की प्रगति से मेल खाने के लिए पाकिस्तान की अथक कोशिशें किसी से छुपी नहीं हैं. उधार लेने से लेकर पावर के लिए साम, दाम, दंड, भेद एक करने तक हाल फ़िलहाल में पाकिस्तान ने ऐसा बहुत कुछ कर दिया है जो यह बता देता है कि बढ़ती रक्षा क्षमताओं के साथ तालमेल रखने के लिए दृढ़ संकल्पित पाकिस्तान इसके लिए कुछ भी करने को तैयार है.
जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत द्वारा किये गए सफल परीक्षण ने पाकिस्तान के अगले कदम के बारे में अटकलों को तेज कर दिया है. तो आइये जानें कि रक्षा से जुड़ी इस अहम शुरुआत के मद्देनजर आगे पाकिस्तान क्या कर सकता है.
भारत की हाइपरसोनिक सफलता
भारत की हाइपरसोनिक मिसाइल के परीक्षण ने पूरे दक्षिण एशिया में हलचल मचा दी है, रक्षा विश्लेषकों ने इस क्षेत्र में संभावित हथियारों की होड़ की चेतावनी दी है। यह ऐतिहासिक उपलब्धि भारत को हाइपरसोनिक तकनीक तैनात करने में सक्षम देशों के चुनिंदा समूह में शामिल करती है, यह एक ऐसी उपलब्धि है जो इसकी रक्षा रणनीति में एक महत्वपूर्ण छलांग का संकेत देती है.
इसके जवाब में, पाकिस्तान कथित तौर पर भारत की रणनीतिक बढ़त को संतुलित करने के तरीकों पर विचार कर रहा है. इस्लामाबाद के लिए, यह केवल राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला नहीं है. पकिस्तान के लिए यह गर्व का मामला है और भारत के साथ अपनी कथित 'रणनीतिक समानता' को बनाए रखना है.
पाकिस्तान के पास क्या हैं विकल्प
रक्षा विशेषज्ञ इस बात को लेकर एकमत हैं कि आने वाले वक़्त में ऐसी कोई संभावना नहीं दिखती, जिसमें पाकिस्तान निकट भविष्य में स्वदेशी हाइपरसोनिक क्षमताएं विकसित करेगा. इसके बजाय, वह अपने पुराने सहयोगी चीन की मदद ले सकता है. रिपोर्ट्स की मानें तो पाकिस्तान चीन की डोंगफेंग-17 (DF-17) तक पहुंच की कोशिश कर सकता है. इस मिसाइल के विषय में एक रोचक तथ्य ये भी है कि यह एक ऐसी अत्याधुनिक हाइपरसोनिक मिसाइल है जो पूर्व में बीजिंग के उन्नत सैन्य शस्त्रागार की आधारशिला रह चुकी है.
जिक्र पाकिस्तान का हुआ है. तो भले ही चीन का समर्थन उसके लिए एक आसान रास्ता है लेकिन एक्सपर्ट्स ये भी मानते हैं कि पाकिस्तान द्वारा उत्तर कोरिया जैसे अन्य देशों से भी मदद ली जा सकती है. माना जा रहा है कि इस क्षेत्र में तकनीकी स्वतंत्रता पाकिस्तान के लिए अभी भी दूर के सुहावने ढोल की तरह है.
क्षेत्रीय शक्ति का मामला बन बैठा है ये परीक्षण
ऐतिहासिक रूप से, पाकिस्तान ने भारत के साथ सैन्य समानता को शक्ति प्रदर्शन के रूप में प्राथमिकता दी है, भले ही व्यावहारिक लाभ संदिग्ध हों. हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक हासिल करके, इस्लामाबाद का लक्ष्य न केवल भारत की प्रगति का मुकाबला करना है, बल्कि दक्षिण एशिया की उभरती शक्ति गतिशीलता में अपनी स्थिति बनाए रखना भी है.
आगे क्या करेगा पाकिस्तान? इसपर है दुनिया की नजर
पाकिस्तान हाइपरसोनिक मिसाइल हासिल करने में सफल होगा या नहीं, यह अनिश्चित है। हालांकि, भारत की हालिया प्रगति ने निस्संदेह उपमहाद्वीप में प्रतिस्पर्धा की एक नई लहर को प्रज्वलित किया है. यह उभरती हुई हथियारों की दौड़ क्षेत्र में सैन्य संतुलन को फिर से परिभाषित कर सकती है, जिसका क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है.
अब सबसे अहम सवाल यह है कि पाकिस्तान इस खाई को पाटने के लिए कितनी दूर तक जाएगा और दक्षिण एशिया के लिए इस प्रयास के क्या परिणाम होंगे? जबकि यह क्षेत्र संभावित वृद्धि के लिए तैयार है, दुनिया इस बात पर बारीकी से नज़र रखे हुए है कि सैन्य रणनीति में यह खुला अध्याय दक्षिण एशिया के भविष्य को कैसे आकार देगा.
बहरहाल, भारत द्वारा हाइपरसोनिक मिसाइल की सफलता से इतना तो साफ़ हो गया है कि अब भारत पर नजर डालने से पहले दुश्मन को एक नहीं बल्कि दो बार सोचना होगा. वहीं बात अगर पाकिस्तान की हो तो भले ही एक मुल्क के रूप में पाकिस्तान दाने दाने को मोहताज हो मगर विषय चूंकि भारत से बराबरी है, भले ही भारी नुकसान हो जाए लेकिन पाकिस्तान इसके लिए किसी भी सूरत में पीछे हटने वाला नहीं है.
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