India-Pakistan Conflict: भारत के साथ सीजफायर करने के महज 4 घंटे के अंदर ही पाकिस्तान ने एक बार फिर 'दोगलापन' दिखाया है. पाकिस्तान की सेना ने जम्मू-कश्मीर से गुजरात तक भारत में कई शहरों को ड्रोन अटैक से निशाना बनाने की कोशिश की है, जबकि सीमावर्ती इलाकों में भी भारी आर्टिलरी फायरिंग की गई है. पाकिस्तानी सेना के इस रुख ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनमें सबसे अहम सवाल ये उठ रहा है कि क्या पाकिस्तान सरकार ने पाकिस्तानी सेना से 'अनुमति' लिए बिना ही सीजफायर की घोषणा कर दी. दरअसल पाकिस्तान में सेना ही असली 'सत्ता प्रतिष्ठान' है, जिसकी इजाजत से ही वहां की सरकारें कोई भी कदम उठाती हैं. ऐसे में इस सीजफायर उल्लंघन को पाकिस्तान की सरकार और सेना के बीच के 'विवाद' के तौर पर देखा जा रहा है, जिसका नतीजा पाकिस्तानी इतिहास में लोकतांत्रिक सरकार के तख्तापलट और सैन्य जनरलों के तानाशाह के तौर पर गद्दी संभालने के तौर पर मिलता रहा है. क्या एक बार फिर ऐसा ही होने जा रहा है?
चलिए 5 पॉइंट्स में जानते हैं कि पाकिस्तान की इस हरकत से क्या संकेत मिल रहे हैं-
1. सेना के अंदर बगावत रोकने की कोशिश
पाकिस्तानी आर्मी चीफ आसिम मुनीर के खिलाफ उनके निचले अधिकारियों में अशांति होने की बात लगातार सामने आ रही है. इसके चलते ही दो दिन पहले मुनीर को हटाकर जनरल शमशाद मिर्जा बेग को सेना प्रमुख बना दिए जाने की अफवाह भी उड़ी थी. यह चर्चा है कि पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी भारत के खिलाफ अपनाई गई मुनीर की रणनीति से खुश नहीं हैं. खासतौर पर इस समय पाकिस्तानी सेना के पास पर्याप्त संसाधन नहीं होने के बावजूद ऐसे भारत से टक्कर लेने को पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों ने बेहद गलत माना है. सेना के अंदर उठ रही बगावत की इस आवाज को दबाने के लिए ही माना जा रहा है कि मुनीर ने टकराव को बरकरार रखने का निर्णय लिया और इसी के बाद सीजफायर का उल्लंघन किया गया है.
2. शरीफ के 'कठपुतली' से पॉवरफुल बनने की कोशिश से नाराज
यह सभी जानते हैं कि पाकिस्तानी आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने शहबाज शरीफ की सरकार बनवाने और उन्हें पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनवाने में अहम भूमिका निभाई थी. इसके चलते पाकिस्तानी आर्मी पर इमरान खान के चुनाव से हटने के बाद वोटिंग को मैनेज करने और शरीफ की पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाने के भी आरोप लगे थे. मुनीर के दबाव में ही बिलावल भुट्टो भी अपनी पार्टी का समर्थन शहबाज शरीफ की सरकार को देने के लिए तैयार हुए थे. ऐसे में शहबाज शरीफ को मुनीर का 'कठपुतली' पीएम पाकिस्तानी नेता ही कहते रहे हैं, लेकिन अब शरीफ के सीधे डोनाल्ड ट्रंप के सीजफायर के निर्देश को बिना सेना से सलाह लिए मान लेने से मुनीर नाराज हैं. सूत्रों के मुताबिक, मुनीर इसे शहबाज शरीफ के पॉवरफुल बनने की कोशिश मानते हैं, जो पाकिस्तानी सेना कभी नहीं चाहेगी.
3. सीजफायर पर सेना की नहीं थी सहमति
यह भी बताया जा रहा है कि पाकिस्तान में भारत के साथ सीजफायर समझौता करने का फैसला राजनीतिक नेतृत्व का था. इसमें पाकिस्तानी सेना की सहमति नहीं ली गई थी. यही कारण है कि सीजफायर की घोषणा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने की और इसका समर्थन उपप्रधानमंत्री इशाक डार ने किया. इसके उलट पाकिस्तानी सेना की तरफ से इसे लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई. पाकिस्तानी सेना के मीडिया विंग DG-ISPR की तरफ से भी इसे लेकर कोई कमेंट नहीं किया गया है. इसके चलते माना जा रहा है कि इस सीजफायर पर पाकिस्तानी सेना की सहमति नहीं थी.
4. सीजफायर तोड़कर दिखाया असली 'सरकार' कौन
पाकिस्तानी सेना की सहमति के बिना सीजफायर करने के शहबाज शरीफ के फैसले को गलत साबित करने का मकसद भी इसका उल्लंघन करने के पीछे माना जा सकता है. यह माना जा सकता है कि सीजफायर उल्लंघन करके पाकिस्तानी सेना ने यह दिखाने की कोशिश की है कि उनके देश में असली 'सरकार' राजनीतिक दल नहीं बल्कि सेना चलाती है.
5. क्या पाकिस्तान में दोहराया जाएगा तख्तापलट का इतिहास?
पाकिस्तानी सेना के चुनी हुई सरकार के खिलाफ दिखाए गए इस रुख के बाद यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या पाकिस्तान में फिर से तख्तापलट का इतिहास दोहराया जाएगा? दरअसल पाकिस्तान में सेना प्रमुख पद पर तैनात अफसरों के सफल तख्तापलट करने की लंबी सीरीज है. 1958 में जनरल अयूब खान ने ऐसा किया तो 1977 में जनरल जिया उल हक ने तख्तापलट किया था. इसके बाद 1999 में कारगिल युद्ध में हार के बाद परवेज मुशर्रफ ने भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे नवाज शरीफ को गद्दी से उतार दिया था. आसिम मुनीर की कट्टर धार्मिक सोच और धार्मिक तकरीरों के चलते उन्हें जिया उल हक 2.0 कहा जाता है. ऐसे में यह भी हो सकता है कि वे जिया उल हक की तरह शहबाज शरीफ को गद्दी से उतारकर खुद उस पर बैठ जाएं. इस सवाल का जवाब अगले कुछ दिन में मिल जाएगा.
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पाकिस्तान ने तोड़ा सीजफायर, क्या ये सरकार और Pakistan Army के बीच विवाद का संकेत तो नहीं?