Pahalgam Terror Attack: पहलगाम आतंकी हमले के बाद देश में बने रोष के माहौल के बीच पाकिस्तान को करारा जवाब देने की मांग की गई थी. हमले को 8 दिन से ज्यादा बीत चुके हैं. भारत और पाकिस्तान, दोनों तरफ से सैन्य तैयारियां पुख्ता की जा चुकी हैं. हमले के तत्काल बाद खुले मंच से बदला लेने का ऐलान कर चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय सेना को जवाब देने के लिए 'फ्री हैंड' देने की घोषणा भी की है. विपक्षी दल भी इस मुद्दे पर सरकार के हर कदम के समर्थन का ऐलान कर चुके हैं. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला तो खुलेआम जंग को ही कश्मीर समस्या के समाधान का इकलौता तरीका बता चुके हैं, जबकि अमूमन मोदी सरकार के फैसलों के खिलाफ रहने वाले AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी भी इसे पाकिस्तान से PoK (पाकिस्तानी कब्जे वाला कश्मीर) वापस लेने का बढ़िया मौका बता चुके हैं. इसके बावजूद केंद्र सरकार पाकिस्तान के खिलाफ डायरेक्ट एक्शन नहीं ले रही है तो इसके खास कारण हैं.

चलिए आपको 5 पॉइंट्स में उन सब कारणों के बारे में बताते हैं, जिन्हें युद्ध से पहले आंक लेने की कोशिश मोदी सरकार कर रही है-

1. भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में है 'चीनी' छाया
भारत और पाकिस्तान 1947 में बंटवारे के बाद अलग-अलग हुए थे. इसके बाद पिछले 77 साल में दोनों देश चार बार 1948, 1965, 1971 और 1999 में आपस में युद्ध लड़ चुके हैं. हालांकि इस बार का युद्ध उन जंगों से अलग माना जा रहा है. इसका खास कारण है भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में इस बार 'चीन' की छाया होना. दरअसल चीन ने पहलगाम आतंकी हमले की आलोचना की है, लेकिन उसने इसमें पाकिस्तान का नाम नहीं लिया है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि चीन ने सिल्क रूट प्लान के तहत चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के जरिये पाकिस्तान में 62 अरब डॉलर का निवेश किया है. CPEC गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजर रहा है, जो PoK का हिस्सा है. यदि भारत की तरफ से पाकिस्तान पर हमला किया जाता है तो चीन का यह निवेश खतरे में पड़ सकता है, जो चीन कभी नहीं चाहेगा. 

इसके अलावा चीन और पाकिस्तान के बीच रक्षा गठजोड़ भी है. पाकिस्तान चीनी हथियारों का बड़ा खरीदार है और दोनों देशों की सेनाएं साथ-साथ युद्धाभ्यास भी करती हैं. चीन को पाकिस्तान के रास्ते खाड़ी देशों तक छोटा रास्ता भी मिलता है. ऐसे में माना जा रहा है कि भारत के हमले की स्थिति में चीन पाकिस्तान का साथ दे सकता है. हालांकि माना जा रहा है कि चीन सीधे युद्ध में हस्तक्षेप नहीं करेगा, क्योंकि भारत उसका बड़ा व्यापारिक साझेदार है. इसके उलट चीन की तरफ से भारत से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर गलवां घाटी और पैंगोंग लेक जैसे मोर्चे खोले जा सकते हैं, जिससे भारत को अपनी सेना दोहरे मोर्चे पर बांटने के लिए विवश होना पड़ सकता है. इसका सीधा लाभ पाकिस्तान को मिलेगा. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान के खिलाफ डायरेक्ट एक्शन से पहले भारत फिलहाल यही आंकने की कोशिश कर रहा है कि चीन किस तरह के कदम उठा सकता है.

2. अमेरिका के साथ देने का अभी भरोसा नहीं
भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते अपने सबसे गोल्डन पीरियड में कहे जाते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच करीबी दोस्ती भी बताई जाती है. इसके बावजूद पहलगाम आतंकी हमले के बाद अमेरिका के बयान यह स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं कि यदि दोनों देशों में जंग होती है तो वह किसी का साथ देगा या नहीं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान अमेरिका का पुराना सहयोगी रहा है और आतंकवाद को बढ़ावा देने में स्पष्ट रूप से हाथ सामने आने पर भी अमेरिका ने कभी पाकिस्तान के खिलाफ कोई कठोर एक्शन नहीं लिया है. हालांकि भारत के साथ अमेरिका के व्यापारिक और सामरिक, सभी रिश्ते पहले से ज्यादा ऊंचाई पर बढ़े हैं, लेकिन तब भी पुराने सहयोगी को अमेरिका छोड़ेगा या नहीं, ये तय नहीं है. साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर धनंजय त्रिपाठी ने BBC को दिए इंटरव्यू में हाल ही में साफ कहा है कि सीधे शब्दों में अमेरिका किसी के साथ नहीं है. वह केवल अपने फायदे को देखता है. अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान के खिलाफ भारत का साथ देकर वो उसे पूरे दक्षिण एशिया पूरी छूट दे दे. अमेरिका ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत का स्ट्रैटेजिक पार्टनर होने के बावजूद इस घटना की आलोचना करते हुए एक बार भी पाकिस्तान का नाम नहीं लिया है. ट्रंप प्रशासन में FBI चीफ काश पटेला और खुफिया एजेंसियों की चीफ तुलसी गाबार्ड ने इस्लामिक आतंकवाद की आलोचना की है, लेकिन पाकिस्तान का नाम नहीं लिया है. यही वो बात है जो अमेरिका को संदेह के घेरे में डाल रही है.

3. युद्ध शुरू करना आसान, लेकिन इसका असर बहुत महंगा
किसी भी जंग को शुरू करना बेहद आसान होता है, लेकिन इसका असर बेहद महंगा पड़ता है. भारत के मुकाबले भले ही पाकिस्तान की सैन्य शक्ति आधी है, लेकिन फिर भी जंग लंबी और खर्चीली होगी. एक्सपर्ट्स इसके लिए दुनिया में कुछ हालिया जंगों को मिसाल के तौर पर देखने की सलाह दे रहे हैं. इजरायल की हमास के खिलाफ जंग हो या रूस और यूक्रेन का युद्ध, दोनों ही मामलों में सालों बीतने पर भी फाइनल रिजल्ट नहीं निकल सका है. रूस तो वैश्विक महाशक्ति से आर्थिक रूप से बेहद कमजोर होने के स्तर पर आ गया है. इजरायल के भी हालात बहुत अच्छे नहीं बताए जा रहे हैं. ऐसे में युद्ध शुरू करने से पहले कई बातों का जवाब लेना आवश्यक है. वरिष्ठ पत्रकार जुगल पुरोहित ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा है कि भारत ने एक्शन लेने से पहले ये देखने की बात कही है कि सामने की तरफ (पाकिस्तान द्वारा) से क्या किया जा रहा है? जुगल का मानना है कि सीधे सैन्य कार्रवाई यानी युद्ध नहीं होगा, क्योंकि जंग शुरू करना आसान है, लेकिन इसे खत्म करना किसी के हाथ में नहीं है.  इस बार सीधे सैन्य कार्रवाई नहीं की जाएगी क्योंकि सभी जानते हैं कि जंग शुरू करना आसान है लेकिन इसे ख़त्म करना किसी के हाथ में नहीं है." प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को विकासशील से विकसित कैटेगरी में ले जाने के लिए मिशन-2047 भी य कर रखा है. फिलहाल भारत की इकोनॉमी आर्थिक रूप से 'कटोरा' थाम चुके पाकिस्तान से करीब 12 गुना ज्यादा बड़ी है. यदि युद्ध होता है तो इसका असर भारतीय इकोनॉमी पर भी होगा, जो अब तक आर्थिक मंदी की चपेट में आने से बची रही है. ऐसे में युद्ध का विकल्प चुनने से पहले इस मुद्दे पर भी सोचना होगा.

4. पूर्वी सीमा पर भी भड़क सकती है अशांति
पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारत के लिए चीन के अलावा एक खतरा अपनी पूर्वी सीमा पर भी है, जहां बांग्लादेश पिछले साल शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से पाकिस्तान के कट्टर सहयोगी के तौर पर उभरा है. पाकिस्तान ने एक साल के दौरान बांग्लादेश की सेना के साथ गहरा गठजोड़ किया है. बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस भारत की 'चिकन नेक' का जिक्र करके अपनी महत्वाकांक्षा पहले ही दर्शा चुके हैं. यह भी स्पष्ट है कि अब बांग्लादेश को भारत का पहले जैसा विश्वसनीय सहयोगी नहीं माना जा सकता है. उत्तराखंड पुलिस के पूर्व DGP अशोक कुमार के मुताबिक, ऐसे में यह भी संभावना है कि भारत की तरफ से युद्ध छेड़ने पर बांग्लादेश की तरफ पूर्वी सीमा पर, खासतौर पर पश्चिमी बंगाल में अशांति भड़काने की कोशिश की जाए, जो भारत के लिए तीसरे मोर्चे जैसा साबित हो सकता है.

5. परमाणु शक्ति संपन्न होना भी है देरी का कारण
भारत और पाकिस्तान, दोनों ही परमाणु शक्ति से संपन्न हैं. हालांकि भारत ने परमाणु बम को लेकर साल 1999 से ही 'नो फर्स्ट यूज' का नियम तय कर रखा है, लेकिन पाकिस्तान का जिस तरह का चाल-चरित्र और इतिहास रहा है, उसके लिए ऐसी बात नहीं कही जा सकती है. वहां के नेता बात-बात में परमाणु बम की धमकी देते हैं. कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान ने 'नो फर्स्ट यूज' (NFU) नीति को बेकार बताते हुए जरूरत पड़ने पर 'फर्स्ट यूज पॉलिसी' तय कर रखी है. इसका मतलब है कि सीधे युद्ध में अपनी पराजय सामने देखकर पाकिस्तान परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने से नहीं चूकेगा. यह एक कारण हो सकता है, जिसके चलते पीएम मोदी की सरकार सीधे युद्ध के बजाय बालाकोट एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे ही विकल्पों को इस बार भी उपयोग करे. हालांकि यह तय माना जा रहा है कि मोदी सरकार जो भी विकल्प अपनाएगी, वो आतंकवाद पर आखिरी चोट जैसा होगा. यही कारण है कि पाकिस्तान के नेताओं के बयानों में खौफ की झलक स्पष्ट दिखाई दे रही है.

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फारुख अब्दुल्ला युद्ध से समाधान तो ओवैसी की PoK वापस लेने की मांग, फिर पाक पर एक
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फारुख अब्दुल्ला युद्ध से समाधान तो ओवैसी की PoK वापस लेने की मांग, फिर पाक पर एक्शन में क्या है रुकावट, 5 प्वॉइंट में समझें

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