Himachal Pradesh Financial Crisis: हिमालय के ऊंचे पहाड़ों के लिए पर्यटकों के बीच सबसे ज्यादा मशहूर हिमाचल प्रदेश में एक और 'पहाड़' इससे भी ऊंचा हो गया है. यह पहाड़ राज्य पर बढ़ते जा रहे कर्ज का है, जो अब इतना ज्यादा बढ़ गया है कि गुरुवार को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को अपनी पूरी कैबिनेट के दो महीने तक वेतन-भत्ता नहीं लेने का ऐलान करना पड़ा है. सरकारी आंकड़ों के हिसाब से राज्य पर 87 हजार करोड़ रुपये का कर्ज हो, जो इस वित्त वर्ष के खत्म होने तक बढ़कर 94,992 करोड़ रुपये हो जाएगा. इसके चलते हिमाचल प्रदेश का हर व्यक्ति 1.17 लाख रुपये का कर्जदार (Per Capita Loan) हो गया है.
क्या किया है मुख्यमंत्री ने ऐलान
हिमाचल के मुख्यमंत्री सुक्खू ने गुरुवार को कहा,'राज्य के आर्थिक हालात खराब हैं. इसके चलते मैं, मेरे मंत्री, मुख्य संसदीय सचिव और बोर्ड-निगमों के चेयरमैन अगले दो महीने तक वेतन और किसी भी तरह का भत्ता नहीं लेंगे. विधायक भी हो सके तो दो महीने वेतन ना लें और किसी तरह एडजस्ट कर लें. इसके बाद आगे देखा जाएगा.
भाजपा पर फोड़ा कर्ज के बोझ का ठीकरा
कांग्रेस के मुख्यमंत्री सुक्खू ने राज्य के कर्ज के दलदल में फंसे होने का ठीकरा विपक्षी दल भाजपा पर फोड़ा है. उन्होंने कहा,'राज्य को आर्थिक संकट में धकेलने की जिम्मेदार पिछली BJP सरकार है, जिससे हमें ये कर्ज विरासत में मिला है. हमने अपनी राजस्व प्राप्ति सुधारी है. पिछली सरकार ने 5 साल में 665 करोड़ रुपये का राजस्व आबकारी से जुटाया था, जबकि हमने एक साल में ही 485 करोड़ रुपये कमाए हैं. हम राज्य की वित्तीय सेहत सुधारने को प्रतिबद्ध हैं.
देश का सबसे कर्जदार पहाड़ी राज्य
हिमाचल प्रदेश देश के 9 पहाड़ी राज्यों में सबसे ज्यादा कर्जदार है. देश का प्रति व्यक्ति कर्ज भी अरुणाचल प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर है. हालात ये है कि राज्य अपने 28 हजार कर्मचारियों की पेंशन, ग्रेच्युटी और दूसरे मद में बकाया 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम भी नहीं चुका पा रही है. हालांकि मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों का वेतन-भत्ता छोड़ना महज प्रतीकात्मक ही है, क्योंकि इससे दो महीने में राज्य सरकार को 77 लाख रुपये की ही बचत होगी, जो 87 हजार करोड़ रुपये के कर्ज के आगे महज सुई की नोंक के बराबर हैसियत रखता है.
वेतन, पेंशन और पुराने कर्जे चुकाने में खत्म हो रहा बजट
हिमाचल प्रदेश की सरकार का सबसे बड़ा बोझ सरकारी कर्मचारियों के वेतन, पेंशन और पहले से चल रहे कर्ज के ब्याज का है. आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सरकार अपने 58,444 करोड़ रुपये में से 42,079 करोड़ रुपये केवल इस मद में खर्ज कर देती, जिसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी चुनावी वायदों पर होने वाले खर्च की है. राज्य सरकार महिलाओं को 1,500 रुपये महीना देती है, जबकि बिजली सब्सिडी भी दी जाती है. इसके अलावा राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद नए कर्मचारियों के लिए भी ओल्ड पेंशन स्कीम लागू की गई है. इन तीनों मद में 800 करोड़, 18,000 करोड़ और 1,000 करोड़ रुपया खर्च होता है यानी कुल 19,800 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं. इसके चलते राज्य सरकार को अपना खर्च चलाने के लिए कर्ज का सहारा लेना पड़ता है. यही कारण है कि कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है.
अभी और बढ़ेगा सरकार पर बोझ
भले ही मुख्यमंत्री और उनकी कैबिनेट अपने वेतन-भत्ते छोड़ने की बात कर रही है, लेकिन राज्य सरकार पर आर्थिक बोझ घटने के बजाय बढ़ने वाला है. कांग्रेस ने राज्य में सरकार बनने पर 300 यूनिट फ्री बिजली का वादा किया था, जो अभी पूरा नहीं हुआ है. उसके विधायक और नेता लगातार यह वादा पूरा करने का दबाव बना रहे हैं. राज्य में साल 2030-31 तक पेंशनभोगियों की संख्या मौजूदा 1,89,466 से बढ़कर 2,38,827 हो जाने की संभावना है. केंद्र सरकार के कर्ज सीमा को जीडीपी के 5 फीसदी से घटाकर 3.5 फीसदी तक ही कर देने से भी राज्य सरकार की परेशानियां बढ़ने वाली हैं, क्योंकि अब वह अपने खर्च चलाने के लिए और ज्यादा कर्ज नहीं जुटा पाएगी.
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Himachal पर कर्ज का 'पहाड़', इतने ऋण में दबा है हर नागरिक, जानें क्यों सैलरी छोड़ रहे मुख्यमंत्री