हरियाणा विधानसभा चुनाव ट्रेंड में है. चुनाव में अब बस कुछ ही दिन शेष हैं. सत्ताधारी दल भाजपा राज्य में तीसरी बार सत्ता में बने रहने के लिए हरसंभव प्रयास करती हुई नजर आ रही है. बावजूद इसके कि सरकार के खिलाफ़ लोगों में एक स्पष्ट अंतर्धारा है.
ग्रामीण इलाकों में मतदाताओं तक पहुंचने और गैर-जाट और दलित मतदाताओं को एकजुट करने के लिए सक्रिय रूप से काम करने के अलावा, हरियाणा में भाजपा के अभियान को कांग्रेस में कथित अंदरूनी कलह से भी लाभ मिला है.
हरियाणा, जहां 5 अक्टूबर को मतदान होना है, में जातिगत समीकरण और पार्टी की अंदरूनी कलह केंद्र में रहे हैं. हरियाणा में बहुकोणीय मुकाबला होने के साथ, भाजपा को उम्मीद है कि लोकसभा में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद वोटों का विभाजन उसके पक्ष में हो सकता है.
हरियाणा में 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में परचम लहराने वाली भाजपा को इसबार सिर्फ़ 5 सीटें मिलीं, जबकि बाकी सीटें कांग्रेस के खाते में गईं. हालांकि 1966 में अपनी स्थापना के बाद से कोई भी पार्टी लगातार तीसरी बार राज्य में नहीं जीत पाई है. लेकिन बावजूद इसके हरियाणा में ऐसे 3 प्रमुख कारक है जो भाजपा के अभियान को फायदा पहुंचाते हुए नजर आ रहे हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों पर भाजपा का ध्यान
2024 के हरियाणा विधानसभा चुनावों की खास बात ये है कि इस बार भाजपा रणनीतिक रूप से ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रही है. इन क्षेत्रों में पकड़ बनाने के लिए भाजपा आरएसएस की संगठनात्मक पहुंच और जमीनी स्तर पर मौजूदगी का लाभ उठा रही है.
ध्यान रहे भाजपा द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान तब दिया गया जब कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों में 45 ग्रामीण विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की. बताते चलें कि हरियाणा में सितंबर से, आरएसएस ने ग्रामीण मतदाता आउटरीच कार्यक्रम शुरू किया, जिसमें प्रत्येक जिले में 150 स्वयंसेवकों को तैनात किया गया.
इन स्वयंसेवकों को मंडल कार्यकर्ताओं (कार्यकर्ताओं) के साथ सहयोग करने का काम सौंपा गया, जिन्होंने मतदाताओं से जुड़ने के लिए पंचायत स्तर के स्वयंसेवकों के साथ 'चौपालों' के माध्यम से काम किया.
गैर-जाट और दलित मतदाताओं पर निशाना
चुनावों से पहले, भाजपा गैर-जाट मतदाताओं को एकजुट करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है. भाजपा ने हरियाणा में दलितों के बीच विभाजन को भी महसूस किया है.
माना जा रहा है कि हरियाणा में भाजपा अगर 36 बिरादरियों को एक साथ लाने में सफल हो जाती है, तो यह कांग्रेस के ग्रामीण मतदाता आधार को नुकसान पहुंचाएगा.
दूसरी ओर, भाजपा विभाजित दलित वोटों से लाभ उठाने की कोशिश कर रही है. भाजपा को उम्मीद है कि ये कारक उसे सम्मानजनक आंकड़े तक ले आएंगे.
गौरतलब है कि 36 बिरादरियों में शामिल जातियों और समुदायों में ब्राह्मण, बनिया (अग्रवाल), जाट, गुर्जर, राजपूत, पंजाबी (हिंदू), सुनार, सैनी, अहीर, सैनी, रोर और कुम्हार शामिल हैं.
कांग्रेस के भीतर आंतरिक विभाजन
कांग्रेस को एकजुट करने के लिए राहुल गांधी द्वारा अपनी पिछली दो रैलियों में किए गए प्रयासों के बावजूद, पार्टी के भीतर दो गुटों के गठन के साथ महत्वपूर्ण आंतरिक विभाजन बना हुआ है. (हरियाणा कांग्रेस में एक गुट दलित चेहरे और सांसद कुमारी शैलजा के साथ है. जबकि दूसरा भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पक्ष में है.)
ज्ञात हो कि सैलाजा, जो ज्यादातर चुनाव प्रचार से दूर रही हैं, को डर है कि भूपेंद्र हुड्डा गुट उनके वफादार उम्मीदवारों के खिलाफ कांग्रेस के बागियों को खड़ा करके उनकी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है.
हरियाणा में सियासत का ऊंट किस करवट बैठता है इसका फैसला जल्द ही हो जाएगा लेकिन जैसे हालात है और जिस तरह के समीकरण भाजपा की तरफ से बैठाए जा रहे हैं मुश्किल ही है कि दांव खाली जाए. वहीं बात अगर कांग्रेस की हो तो लोकसभा चुनावों में अपनी सफलता से उत्साहित कांग्रेस भी अपनी जीत के प्रति खासी गंभीर है.
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