डीएनए हिन्दी:  कल कर्नाटक  विधानसभा ने कर्नाटक राईट टू फ्रीडम बिल (Right to Freedom Bill) पास किया है. इसे एंटी-कन्वर्ज़न बिल (Anti Conversion Bill) भी कहा जा रहा है.  घोर विपक्षी विरोध के मध्य पास हुए इस बिल को कांग्रेस ने अमानवीय क़रार दिया है. क्या यह बिल सचमुच अमानवीय है?  

फ्रॉड, बहलावे या शादी करके धर्म बदलने से रोकता है यह

इस बिल का सबसे बड़ा हाईलाइट यह है कि यह झूठ बोलकर, धोखे से, बहला-फुसला कर या शादी के द्वारा धर्म बदलने की कवायदों को ग़ैर-कानूनी बताता है. इस बिल का कहना है, "किसी भी व्यक्ति द्वारा सीधे तौर पर अथवा किसी भी अन्य तरीके से धोखे, ग़लत पहचान, धमकी के द्वारा, बहलावे से या शादी के ज़रिये धर्म नहीं बदलना है, न किसी को धर्म बदलने के लिए बाध्य किया जाना है.'

इस बिल में हालाँकि उन लोगों को छूट दी गयी है जो वापस अपने धर्म में लौटना चाहते हैं. कहा गया है कि इसे धर्मांतरण नहीं माना जाए.

क्या सज़ा होगी इसकी?

विधानसभा में पास हुए इस बिल के मुताबिक किसी भी व्यक्ति के धर्म बदलने की शिकायत परिवार के किसी सदस्य या उससे सम्बंधित किसी व्यक्ति द्वारा दायर की जा सकती है. कानून भंग होने की अवस्था में दोषी को तीन से पांच साल जेल की सज़ा और पच्चीस हज़ार का ज़ुर्माना देना होगा. ये नियम सामान्य वर्ग के दोषियों पर लागू है. अगर किसी माइनर, महिला या अनुसूचित जाति/जनजाति के किसी व्यक्ति का धर्म परिवर्तन करवाये जाने की अवस्था में जेल की अवधि दस साल और फाइन पचास हज़ार तक हो सकता है.

यह बिल धर्मान्तरण के लिए मज़बूर करने वाले को पीड़ित के परिवार को पाँच लाख रूपये ज़ुर्माना भी देने की बात करता है. बार-बार अपराध करने वाले के लिए दुगुनी सज़ा का प्रावधान है. धर्मांतरण के उद्देश्य से हुई शादियाँ अमान्य क़रार दी जाएँगी.  ऐसा करने को आपराधिक काम माना जाएगा. यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि यह हालिया पास हुआ बिल दक्षिणपंथी पार्टियों के द्वारा मांगे गये 'लव ज़िहाद' के ख़िलाफ़ के कानून के मद्देनज़र आया है.

क्या होगी धरमांतरण की कानूनी प्रक्रिया

बिल के आने के बाद किसी भी व्यक्ति को अगर धर्म बदलने की इच्छा हुई तो उसे डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास दो महीने पहले सूचना देनी होगी. इसके बाद डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट अपनी ओर से  इन्क्वारी करेंगे, धर्मांतरण का सही कारण जानेंगे. इसके बाद ही धर्म बदलने की अनुमति मिलेगी, एवम् अन्य सम्बंधित विभागों को सूचित करेंगे. बिना अथॉरिटीज को जानकारी दिये हुए धर्म बदलना छः महीने से तीन साल तक की सज़ा दिलवा सकता है.

भारतीय संविधान की भूमिका

भारतीय संविधान के आर्टिकल 25 के अनुसार सभी भारतीय को अपनी पसंद के धर्म का पालन करने और अन्य धार्मिक आस्थाओं की खुली छूट देता है. इस मसले में Rev Stanislaus vs State of Madhya Pradesh and Orissa (1977) 1 SCC 677  का मामला भी  गौर करने लायक है जिसके अनुसार धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में किसी और का धर्म परिवर्तन करवाना शामिल नहीं है.

 

 

 

 

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कर्नाटक में पास हुआ एंटी-कन्वर्ज़न बिल
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