डीएनए हिंदी: COP28 Summit Dubai Updates- पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचाते हुए, औद्योगिक विकास की राह पर आगे बढ़ना ही, पूरे विश्व की समस्या है. औद्योगिक विकास की कीमत, पृथ्वी के जलवायु को चुकानी पड़ रही है, जिसका बुरा असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है. जलवायु परिवर्तन एक ऐसी समस्या है जो धीरे-धीरे महसूस होती है, लेकिन घातक असर दिखा रही है. आपको जानकर हैरानी होगी कि वर्ष 2022 में हमारी पृथ्वी के औसत तापमान में 1.4 डिग्री सेल्सियम की बढ़ोतरी हुई है यानी ये ज्यादा गर्म हुई है. तापमान में बढ़ोतरी की ये संख्या छोटी है, लेकिन इसका भयानक असर, लगभग हर देश पर पड़ा है. हालात ये है बहुत से देश मौसम का चरम रूप देख रहे हैं. गर्मियों के मौसम में भयानक गर्मी और सर्दियों में भयानक ठंड का सामना करना पड़ रहा है. बारिश भी, कई देशों में समस्या पैदा कर रही है. इस तरह के हालात पर चर्चा करना जरूरी है. इसीलिए हर साल संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में COP या Conference Of Parties की बैठक होती है. United Nation में शामिल लगभग सभी देश इसका हिस्सा हैं. जलवायु परिवर्तन पर चर्चा के लिए होने वाली COP की 28वीं बैठक यानी COP 28 इस वर्ष UAE में चल रही हैं, जिसमें इस बार 160 देश शामिल हुए हैं.

पीएम मोदी भी पहुंचे हैं बैठक में, की है दुनिया से ये अपील

इस बैठक में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दुबई पहुंचे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां पर अन्य देशों को संबोधित किया, जिसमें जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रही दिक्कतों के लिए उन्होंने कुछ विकसित देशों को जिम्मेदार बताया. उन्होंने किसी भी देश का नाम लिए बिना कहा कि चंद देशों के किए की कीमत पूरी दुनिया को चुकानी पड़ रही है.  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सम्मेलन में COP 33 की मेजबानी का दावा ठोका है, COP33 की बैठक वर्ष 2028 में होगी. उन्होंने दुनिया भर से इस समस्या से निपटने के लिए कुछ खास अपील की हैं.

  • विकसित देश जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए विकासशील और गरीब देशों की मदद करें.
  • विकसित देश Technology Transfer करें ताकि गरीब देश, जलवायु परिवर्तन के घातक परिणामों से रक्षा कर सकें.
  • पीएम मोदी ने भारत का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत ने Ecology & Economy के संतुलन का अच्छा उदाहरण दिया है.
  • दुनिया की 17 फीसदी आबादी भारत में रहती है, लेकिन कार्बन उत्सर्जन में भारत की हिस्सेदारी मात्र 4 प्रतिशत है.
  • मोदी ने कहा, भारत का लक्ष्य है कि वो वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 45 प्रतिशत तक कम करेगा.
  • यही नहीं भारत ने ग्लोबल बायो फ्यूल अलायंस भी बनाया है.

दुबई में क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस में 160 देश जलवायु परिवर्तन पर चर्चा कर रहे हैं. जलवायु परिवर्तन के खतरे से किस तरह से निपटा जाए, क्या कदम उठाए जाए, इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही तरह सभी देश सुझाव दे रहे हैं. 

जानिए कैसे बड़ा खतरा बन गया है जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन दुनियाभर के सामने एक बहुत बड़ा खतरा है. कल्पना कीजिए कि अगर आपके शहर का तापमान अचानक से लगभग 80 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाए तो कैसे हालात होंगे. यकीन मानिए ये स्थिति मौत से भी बदतर होगी. आपको 24 घंटे ऐसा लगेगा कि आप किसी जलते हुए तंदूर में बैठे हैं और इस स्थिति में कई लोगों की हीटस्ट्रोक की वजह से मौत हो जाएगी, लेकिन अब कल्पना की दुनिया से बाहर आकर उस Extreme Weather Events के बारे में बताते है, जो भारत में बहुत बड़ी मुसीबत बन गया है.

Center for Science and Environment यानि CSE ने एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट का नाम है India 2023 An Assessment of Extreme Weather Events'. CSE की इस रिपोर्ट में जनवरी से लेकर सितंबर तक के मौसम में आए बदलावों और आपदाओं की डिटेल्स हैं. इस तरह की घटनाओं को Extreme Weather Events भी कहा जाता है.

  • रिपोर्ट में इस वर्ष यानि 2023 के शुरूआती 9 महीनों में आई प्राकृतिक आपदाओं का जिक्र है.
  • रिपोर्ट कहती है कि भारत में पिछले 9 महीने में लगभग हर दिन प्राकृतिक आपदाएं आई हैं या खराब मौसम देखा गया.
  • 9 महीने में मौसम में आए बदलावों और आपदाओं की वजह से 2,923 लोगों की जान गई. 1.84 लाख हेक्टेयर की फसल खराब हो गई.
  • 80 हजार से ज्यादा घर गिर गए. 92 हजार से ज्यादा मवेशियों और जानवरों की मौत हो गई.

सोचिए, सिर्फ 9 महीने में हमारे देश में आई प्राकृतिक आपदाओं में करीब 2 हजार 923 लोगों की मौत हुई है. ये कोई छोटा आंकड़ा नहीं है. इंसान ने प्रकृति के साथ जो खिलवाड़ किया है अब प्रकृति उसी का बदला ले रही है. CSE की ये रिपोर्ट हम सबके लिए एक खतरे के अलार्म की तरह है. सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में इस तरह की घटनाएं बढ़ रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह है जलवायु परिवर्तन.

ये Extreme Weather Events क्या होता है?

आपके दिमाग में ये सवाल आ रहा होगा कि ये Extreme Weather Events होता क्या है? हो सकता है इसके बारे में आप पहली बार सुन रहे हों. दरअसल Extreme Weather Events मौसम की एक ऐसी घटना है जो उस समय और उस स्थान पर असमान्य होता है. उदाहरण के लिए अगर दिल्ली में नवंबर के महीने में तेज़ बारिश हो जाए, तो इसे एक Extreme Weather Events कहा जा सकता है, क्योंकि आमतौर पर नवंबर के महीने में तेज बारिश नहीं होती.

India 2023 An Assessment of Extreme Weather Events नाम की इस रिपोर्ट में देश के अलग-अलग राज्यों में हुए नुकसान का जिक्र भी है, लेकिन पहले मैं आपको बताती हूं कि Extreme Weather Events में क्या क्या शामिल है.

  • प्राकृतिक बिजली और तूफान.
  • भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन.
  • गर्म हवा जिसे हम हिटवेव भी कहते हैं.
  • भीषण ठंड और बर्फबारी.
  • क्लाउट बर्स्ट यानि बादल फटना.
  • चक्रवातों की संख्या में बढ़ोतरी.

लगातार बदल रहा है मौसम

तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम में बड़ा बदलाव आया है. आपने भी ये महसूस किया होगा कि जिस वक्त भीषण गर्मी पड़नी चाहिए थी उस वक्त इस वर्ष कई दिन जोरदार बारिश हुई और जब जोरदार बारिश होनी चाहिए थी. उस वक्त लोग बारिश का इंतजार ही करते रह गए. अब मैं आपको बताती हूं कि एक्सट्रीम वेदर की वजह से किस राज्य में कितने लोगों की मौत हुई.

  • एक्सट्रीम वेदर की वजह से बिहार में सबसे ज्यादा 642 लोगों की जान गई.
  • हिमाचल प्रदेश में 365 और फिर उत्तर प्रदेश में 341 लोगों की मौत एक्सट्रीम वेदर की वजह से हुई है.
  • मध्य प्रदेश में एक्सट्रीम वेदर की वजह से 249 लोगों की मौत हुई.
  • महाराष्ट्र में भी एक्सट्रीम वेदर का कहर दिखा यहां 173 लोगों की मौत हुई.
  • दक्षिण भारत में केरल में सबसे ज्यादा दिन मौसम खराब रहा और प्राकृतिक आपदाएं आईं.
  • केरल में 67 दिन एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स दिखे. कर्नाटक में 11 हजार घर आपदाओं में गिरे.
  • तेलंगाना में 62 हजार हेक्टेयर से ज्यादा फसलें खराब हुई. यहीं सबसे ज्यादा 645 मवेशी मारे गए.

आपको भी याद होगा इसी वर्ष जनवरी का महीना औसत से हल्का गर्म रहा था. जबकि फरवरी ने तो 122 वर्ष की गर्मी का रिकॉर्ड तोड़ दिया था. फरवरी में दिन का अधिकतम तापमान औसतन 29.54 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था और ये वर्ष 1901 के बाद सबसे गर्म फरवरी का महीना रहा था. कही भीषण बाढ़ आई तो कहीं चक्रवाती तूफान ने हालात खराब किए. पूरे साल इस तरह की तस्वीरें आई है. हम सब जलवायु परिवर्तन पर बातें तो करते है, लेकिन एक बार दिल से सोचिए, क्या हम इस खतरे से निपटने के लिए गंभीर है?

पूरी दुनिया की समस्या है जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन किसी एक या दो देश की समस्या नहीं है, ये दुनिया के हर देश की समस्या है. पूरी दुनिया की समस्या है. इसलिए इस खतरे से निपटने के लिए भी दुनिया को एक होना होगा और वो भी पूरी गंभीरता के साथ. मौसम का मूड लगातार बदल रहा है, जो इंसान पर बहुत भारी पड़ने लगा है. जलवायु परिवर्तन की मुख्य वजह जीवाश्म ईंधन यानि Fossil Fuels हैं, यानि कोयला, तेल और गैस का अत्यधिक इस्तेमाल.

  • वर्ष 2015 में पेरिस एग्रीमेंट के तहत औसत तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने का फैसला हुआ था.
  • पेरिस एग्रीमेंट के तहत प्री-इंडस्ट्रियल काल यानि 1850 से 1900 के दौर की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस कम रखने की बात कही गई थी.
  • दुनियाभर की रिपोर्ट को अगर देखें तो कोई भी देश इसमें सफल होता नहीं दिख रहा है.
  • इस टारगेट को हासिल करने के लिए पूरी दुनिया को जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल आधे से ज्यादा कम करना होगा.
  • ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन रोकना होगा. ये काम पूरी दुनिया को वर्ष 2030 तक करना है ताकि दुनिया को कार्बन डाईऑक्साइड से छुटकारा मिल सके.

NASA ने दी थी इस साल ये चेतावनी

  • अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने इसी वर्ष जुलाई को दुनिया का सबसे गर्म महीना बताया था.
  • NASA ने कहा था कि पिछले 1 लाख 20 हज़ार वर्षों में इतनी गर्मी कभी नहीं पड़ी.
  • NASA के मुताबिक दुनिया का औसत तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है.
  • विश्व का औसत तापमान पूरे वर्ष  12 Degree Celsius से 17 Degree Celsius के आसपास ही रहता है.
  • 1979 से 2000 के बीच इसका औसत 16.2 Degree Celsius रहा था.
  • इस साल 3 जुलाई को ये औसत तापमान 17.01 Degree Celsius दर्ज किया गया.
  • इसे ही पृथ्वी के इतिहास का सबसे गर्म दिन बताया गया था.
  • इससे पहले सबसे गर्म दिन का Record अगस्त 2016 में बना था.
  • उस वक्त दुनिया का औसत तापमान 16.92 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था.

दुबई में अब तक क्या चर्चा हुई है

दुबई में हुई क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस में दुनियाभर के नेताओं ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन से प्रभावी ढंग से निपटने के तरीकों पर चर्चा की है. जिसमें भारत ने भी वर्ष 2030 तक उत्सर्जन की तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करने और गैर-जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी को 50 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है. जलवायु परिवर्तन जैसे खतरे से निपटने के लिए इंटरनेशल डिजास्टर फंड्स भी है. ये फंड 475 मिलियन डॉलर का है. इस फंड का इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के लिए किया जाता है. ये अच्छी पहल है ताकि इस तरह के खतरे से निपटा जा सके. लेकिन फिर भी धरती का बढ़ता तापमान और जलवायु परिवर्तन हमारे लिए एक time bomb की तरह है. इसलिए अभी भी वक्त है, संभल जाइए, और पृथ्वी को बचाने के लिए जो कुछ भी आप कर सकते हैं. वो ज़रूर कीजिए.

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DNA TV Show: भयानक गर्मी और कंपकंपाने वाली ठंड, पर्यावरण में बदलाव कैसे बन रहा ह
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DNA TV Show: भयानक गर्मी और कंपकंपाने वाली ठंड, पर्यावरण में बदलाव कैसे बन रहा है जिंदगी के लिए मुसीबत

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