Delhi Election 2025: दिल्ली में वो दिन आ गया है, जिसका इंतजार पिछले कई महीने से चल रहा था. दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election 2025) के लिए कल यानी बुधवार (5 फरवरी) को मतदान होगा. इसके साथ ही 70 विधानसभा सीटों पर अपना भाग्य आजमा रहे 699 कैंडिडेट्स का भाग्य भी EVM में बंद हो जाएगा. इनमें 58 सीट सामान्य हैं तो 12 सीट पर आरक्षित उम्मीदवार खड़े किए गए हैं. मतदान के बाद 8 फरवरी को मतगणना होगी, जिसमें फैसला होगा कि पिछले 12 साल से सत्ता सुख भोग रही आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) सत्ताविरोधी लहर से बचने में कामयाब रही या भाजपा-कांग्रेस ने उसके किले में सेंध लगा दी. AAP के नेशनल कन्वेनर और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने फिर से अपनी सरकार बनने का दावा किया है तो BJP और Congress नेता भी अपने-अपने आकलन लगा रहे हैं. ज्यादा से ज्यादा सीट जीतने के लिए हर पार्टी ने उम्मीदवारों के चयन में जातीय से लेकर सामुदायिक तक, हर तरह के समीकरण साधने की कोशिश की है. आइए आपको बताते हैं कि दिल्ली में किस जाति की कितनी हिस्सेदारी है और कहां-कहां कौन भारी है?
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पहले जान लेते हैं दिल्ली में वोटर्स का गणित
- दिल्ली में 1.55 करोड़ वोटर्स इस बार अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे.
- 83.49 लाख पुरुष वोटर्स होंगे, जबकि 71.74 लाख महिला वोटर्स शामिल होंगी.
- 2.08 लाख वोटर्स 18 से 19 साल की उम्र के हैं, जो पहली बार वोट डालेंगे.
- चुनाव में सबसे अहम 20 से 29 साल की उम्र के 25.89 लाख युवा वोटर्स रहेंगे.
अब जानिए पूरी दिल्ली का क्या है धार्मिक और सामुदायिक गणित
दिल्ली देश की राजधानी है. यहां देश के सभी राज्यों से आकर लोग बसे हुए हैं, जो चुनावों में अपने वोट का प्रयोग करते हैं. सामुदायिक आधार पर देखा जाए तो सबसे ज्यादा प्रभावशाली पूर्वांचली (पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड) वोटर हैं, जो करीब 25 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं. इनके बाद 22 फीसदी पंजाबी वोटर हैं, जबकि 6 फीसदी हिस्सेदारी उत्तराखंड के वोटर्स की है. साथ ही 10 फीसदी वोटर खत्री समुदाय के हैं, जो पंजाब और हरियाणा से संबंध रखते हैं.
धार्मिक बंटवारा देखा जाए तो दिल्ली में 81 फीसदी हिंदू वोटर हैं, जबकि 12 फीसदी मुस्लिम, 5 फीसदी सिख और 1-1- फीसदी जैन व ईसाई वोटर हैं. जातीय आधार पर दिल्ली में सबसे बड़ी हिस्सेदारी जाट वोटर्स की है, जो करीब 18 फीसदी हैं. दलित वोटर 17 फीसदी और ब्राह्मण वोटर 10 फीसदी हैं. राजधानी में 8 फीसदी वैश्य, 3 फीसदी गुर्जर, 2 फीसदी यादव और 1 फीसदी राजपूत वोटर हैं.
जाट करते हैं 8 सीटों का फैसला
दिल्ली में पंजाबी समुदाय के बाद जाट सबसे बड़ा वोटर वर्ग है. राजधानी के 364 में से करीब 60% यानी 225 गांवों में 20 फीसदी से ज्यादा वोट जाटों की. इन गांवों में जीत-हार का फैसला जाट समुदाय करता है. यदि सीटों के हिसाब से बात करें तो दिल्ली विधानसभा की महरौली, मुंडका, रिठाला, नांगलोई, मटियाला, नजफगढ़ और बिजवासन समेत 8 सीटों पर जाट समुदाय का समर्थन ही कैंडिडेट को जिताता है.
18 सीटों पर भारी हैं दलित मतदाता
दिल्ली में दलित समुदाय को आम आदमी पार्टी का सबसे बड़ा तारणहार माना जाता है. पिछले दोनों चुनाव में दलितों के लिए आरक्षित सभी 12 सीट AAP के खाते में गई थी. आबादी के हिसाब से जाटव और वाल्मिकी दलित समुदाय के 17 फीसदी में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी रखते हैं. दलितों के दबदबे वाली 18 सीट मानी जाती हैं, जिनमें राजिंद्र नगर (22 फीसदी), आरके पुरम (15 फीसदी), ग्रेटर कैलाश (10 फीसदी), कस्तूरबा नगर (11 फीसदी), मालवीय नगर (10 फीसदी), करोल बाग (38 फीसदी), पटेल नगर (23 फीसदी), मोती नगर (11 फीसदी) और दिल्ली कैंट (16 फीसदी) हैं. इनके अलावा शाहदरा, चांदनी चौक, आदर्श नगर और तुगलकाबाद में भी दलित वोटर्स का प्रभाव रहता है.
मुस्लिम हैं 12 सीट पर जिताऊ वोटबैंक
दिल्ली में करीब 12 फीसदी हिस्सेदारी वाले मुस्लिम सीधेतौर पर 10 विधानसभा सीटों का परिणाम बदलने में सक्षम माने जाते हैं. इनमें ओखला, सीलमपुर, जंगपुरा, मटिया महल, करावल नगर, मुस्तफाबाद आदि सीटें शामिल हैं. पहले ये कांग्रेस का वोटबैंक माने जाते थे, लेकिन पिछले दो चुनाव से आप ने इन पर अपना दबदबा दिखाया है.
8 सीट पर नतीजा प्रभावित करते हैं ब्राह्मण
करीब 10 फीसदी आबादी वाले ब्राह्मण वोटर भी कम से कम 6 से 8 सीट पर असर डालने में सक्षम माने जाते हैं. ब्राह्मण वोटर आमतौर पर भाजपा के साथ माने जाते हैं, लेकिन इस बार पुजारियों को वेतन की घोषणा करके आप ने खेल पलटने की कोशिश की है. ऐसे मे ब्राह्मण वोटर्स के रुख पर नजर रहेंगी.
8 सीट पर खेल बदल देता है पंजाबी समुदाय
दिल्ली में पंजाबी समुदाय कम से कम 8 सीटों पर खेल बदलने में सक्षम माना जाता है. करीब 22 फीसदी आबादी के साथ दूसरा सबसे बड़ा सामुदायिक वोटबैंक होने के चलते सभी पार्टियां इन्हें रिझाने में जुटी रहती हैं. दिल्ली की तिलक नगर, राजौरी गार्डन, मोती नगर, जनकपुरी, हरीनगर, कृष्णा नगर, करोल बाग और जंगपुरा सीटों पर पंजाबी समुदाय का रुख जिस पार्टी के पक्ष में झुकेगा, वो ही जीतता नजर आएगा.
राजधानी में पूर्वांचली सबसे ज्यादा भारी
दिल्ली में सबसे ज्यादा भारी और राजनीतिक रूप से एक्टिव समुदाय पूर्वांचलियों का माना जाता है. यूपी, बिहार और झारखंड से रोजगार के लिए राजधानी आकर कई पीढ़ियों से यहीं बस गए पूर्वांचली समुदाय की करीब 25 फीसदी वोट में हिस्सेदारी है और 20 सीटों पर इनके इशारे पर जीत-हार होती है. इनमें गोकलपुर, मटियाला, द्वारका, नांगलोई, करावल नगर, जनकपुरी, त्रिलोकपुरी, बुराड़ी, उत्तम नगर, संगम विहार, जनकपुरी, त्रिलोकपुरी, किराड़ी, विकासपुरी और समयपुर बादली जैसी सीटें शामिल हैं.
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दिल्ली में कल है मतदान, जानें सीटों का जातीय गणित, कितने भारी हैं पूर्वांचली, जाट और पंजाबी वोटर