बीते कुछ सालों से हिंदी ट्रेंड में है और लोग दो वर्गों में विभाजित हैं. एक वर्ग वो है, जो अपने को हिंदी लवर कहता है. ऐसे लोग इस बात के पक्षधर हैं कि सभी काम हिंदी में होने चाहिए. और यही वो वक़्त है जब हिंदी को देश की भाषा घोषित कर देना चाहिए. इनके विपरीत दूसरा वर्ग वो है, जो हिंदी और हिंदी इम्पोजिशन का विरोधी है. ऐसे लोगों का मानना है कि जब देश की कोई घोषित भाषा ही नहीं है, तो एक भाषा के रूप में हिंदी पर इतना नेह क्यों? हिंदी को लेकर स्थिति कैसी है? बंटवारे का लेवल क्या हो गया है? यदि इसे समझना हो तो हम तमिलनाडु का रुख कर सकते हैं.
तमिलनाडु में जीवन बीमा निगम (LIC) की वेबसाइट को अपने होमपेज पर हिंदी को डिफ़ॉल्ट भाषा के रूप में सेट करने के लिए तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. तमिलनाडु में नेता हिंदी को लागू करने और साइट पर नेविगेट करने में कई उपयोगकर्ताओं को होने वाली कठिनाई के बारे में अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं.
ज्ञात हो कि वेबसाइट के डिफ़ॉल्ट रूप से हिंदी में प्रदर्शित होने से उन उपयोगकर्ताओं के लिए पहुंच संबंधी समस्याएं पैदा हो गई हैं जो इस भाषा से परिचित नहीं हैं. इन उपयोगकर्ताओं के लिए इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि अंग्रेजी में स्विच करने का विकल्प खुद हिंदी में लिखा हुआ है, जिससे उन लोगों के लिए सेटिंग बदलना मुश्किल हो जाता है जो भाषा नहीं समझते हैं.
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी अपना विरोध जताया और एलआईसी पर 'हिंदी थोपने के लिए प्रचार का साधन' बनने का आरोप लगाया. भारत की भाषाई विविधता पर पड़ने वाले प्रभाव को उजागर करते हुए स्टालिन ने कहा, 'एलआईसी सभी भारतीयों के संरक्षण में विकसित हुई है. इसकी हिम्मत कैसे हुई कि वह अपने अधिकांश योगदानकर्ताओं को धोखा दे सके?' उन्होंने 'भाषाई अत्याचार' कहे जाने वाले इस कदम को तुरंत वापस लेने की मांग की.
मामले पर अपना पक्ष रखते हुए उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने कहा है कि, 'केंद्र सरकार अभी तक यह नहीं समझ पाई है कि हिंदी समेत किसी भी चीज को जबरन थोपकर विकसित नहीं किया जा सकता. तानाशाही लंबे समय तक नहीं चलेगी.'
एआईएडीएमके नेता एडप्पादी के पलानीस्वामी (ईपीएस) ने इसे जानबूझकर हिंदी थोपने की कार्रवाई बताया. X पर ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा कि, 'यह निंदनीय है कि केंद्र सरकार हर संभव तरीके से हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है. भारत में, जो भाषा, संस्कृति, राजनीति आदि हर चीज में विविधतापूर्ण है, एकरूपता थोपना एक ऐसा कार्य है जो देश के संतुलन को प्रभावित करता है। यह स्वीकार्य नहीं है.
वहीं इस विवाद में एआईएडीएमके प्रवक्ता कोवई सत्यन ने कहा है कि, 'हम बार-बार कह रहे हैं कि जानबूझकर हिंदी थोपने की कोशिश की जा रही है. इसकी शुरुआत केंद्र सरकार द्वारा संचालित एजेंसियों से होती है. पहले डाकघर, रेलवे और अब एलआईसी। हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं. अगर वे इसे आगे भी जारी रखते हैं, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे.
ऐसा नहीं है कि हिंदी के प्रति ये नफरत सिर्फ तमिलनाडु तक सीमित है. केरल में भी इसे लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है. केरल कांग्रेस ने भी एक्स पर एक पोस्ट शेयर करते हुए एलआईसी के इस कदम की आलोचना की और कहा है कि, 'पुरानी वेबसाइट में क्या गड़बड़ थी, जहां अंग्रेजी डिफ़ॉल्ट भाषा थी? गैर-हिंदी भाषी राज्यों के नागरिक @LICIndiaForever क्या करते हैं?
बताते चलें कि इस विवाद ने सोशल मीडिया पर व्यापक बहस छेड़ दी है, जिसमें हैशटैग #StopHindiImposition ट्रेंड कर रहा है.
आक्रोश के जवाब में, LIC ने इस मुद्दे पर एक बयान जारी किया है और कहा है कि,'हमारी कॉर्पोरेट वेबसाइट licindia.in कुछ तकनीकी समस्या के कारण भाषा के पन्नों को नहीं बदल पा रही थी. समस्या का समाधान हो गया है, और वेबसाइट अब अंग्रेजी और हिंदी दोनों में उपलब्ध है. हमें हुई किसी भी असुविधा के लिए गहरा खेद है.
मामले पर अपना पक्ष रखते हुए तमिलनाडु भाजपा के उपाध्यक्ष नारायणन थिरुपथी ने कहा है कि, 'उन्होंने (LIC ने ) स्पष्टीकरण दिया है कि यह एक तकनीकी समस्या के कारण हुआ. हमने इसे पीछे छोड़ दिया है. लेकिन इसे भाषाई अत्याचार कहना मूर्खतापूर्ण राजनीति है. मुझे खुशी है कि LIC ने इसे वापस ले लिया है. यह केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई समस्या नहीं है. कोई आदेश या कुछ भी नहीं था. यह एक तकनीकी समस्या के कारण हुआ.
भले ही ये स्पष्टीकरण आ गया हो लेकिन बावजूद इसके, देश की प्रमुख भाषा के रूप में हिंदी के लिए कथित रूप से बढ़ता दबाव तमिलनाडु में वर्षों से विवाद का विषय रहा है. उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने हाल ही में राज्य के लोगों से अपने बच्चों के नाम तमिल रखने का आह्वान किया ताकि हिंदी को थोपे जाने से रोका जा सके.
एमके स्टालिन ने गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी माह मनाए जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखा. उन्होंने तर्क दिया कि इस तरह के समारोहों को बहुभाषी राष्ट्र में अन्य भाषाओं को नीचा दिखाने के प्रयास के रूप में देखा जाता है. स्टालिन ने सुझाव दिया कि गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों से बचना चाहिए ताकि अन्य भाषाओं को और अधिक अलग-थलग होने से रोका जा सके.
बहरहाल भले ही तमिलनाडु में हिंदी को लेकर बयान से लेकर राजनीति तक सब हो चुका हो. लेकिन यहां स्थानीय लोगों से लेकर नेताओं तक हिंदी का विरोध कोई नई बात नहीं है. पूर्व में भी कई मामले ऐसे सामने आ चुके हैं जिसमें चाहे वो डीएमके हो या फिर एआईएडीएमके इनके नेताओं द्वारा हिंदी को लेकर खूब राजनीति की गयी है और हिंदी को एक ऐसा विलेन बनाया गया जिसे अब दक्षिण विशेषकर तमिलनाडु के लोग घृणा करने लगे हैं.
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तमिलनाडु में भले ही अपनी गलती को LIC ने टेक्निकल इश्यू बताया हो, लेकिन हिंदी से नफरत कोई नई बात नहीं है!