डीएनए हिंदी: Coronavirus News- दुनिया भर में कोरोनावायरस (Coronavirus Cases) की नई लहर का असर भारत पर होने के आसार बन रहे हैं. इसे रोकने के लिए सरकार हर कदम उठा रही है, लेकिन इस बीच अमेरिका से आ रही खबरों ने चिंता पैदा कर दी है. अमेरिका में ताजा लहर के दौरान बच्चों में कोविड-19 (Covid-19) संक्रमण तेजी से फैलता दिखा है. ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में 1 दिसंबर के बाद से हर सप्ताह औसतन 48,000 बच्चों में कोरोना संक्रमण पाया गया है. हालांकि अमेरिका में बच्चों के अंदर कोरोना संक्रमण की दर महामारी की शुरुआत से ही तेज रही है. अमेरिकी बच्चों में बढ़ती संक्रमण दर के बाद ये सवाल उठ रहा है कि क्या भारत में भी बच्चों को इससे खतरा होने जा रहा है? भारत में एडल्ट्स को हाइब्रिड इम्युनिटी के कारण सुरक्षित बताया जा रहा है, लेकिन क्या बच्चों के लिए तो यह वायरस ज्यादा घातक साबित नहीं होगा?
आइए जानते हैं ऐसे ही सवालों के इन 7 पॉइंट्स में जवाब...
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1. अमेरिका में चार हफ्ते में बच्चों के 165,000 नए केस
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स व चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल एसोसिएशन की रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर महीने में करीब 165,000 अमेरिकी बच्चों में कोरोना संक्रमण पाया गया है. रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि यह बच्चों में संक्रमण के वहीं आंकड़े हैं, जिनकी जानकारी एडमिनिस्ट्रेशन को दी गई है. ऐसे में यह आंकड़ा इससे कई गुना ज्यादा होने की संभावना है. चीनी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, जनवरी 2020 से अब तक अमेरिका में करीब 15.2 मिलियन (करीब 1.70 करोड़) बच्चों को कोरोना पॉजिटिव (Corona Positive) पाया जा चुका है.
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2. अमेरिका में वैक्सीन के बावजूद बच्चों में संक्रमण!
अमेरिका में बड़ों के साथ ही बच्चों को भी मॉडर्ना और फाइजर कंपनियों की कोरोना वैक्सीन लगाई गई है. यहां तक कि जून, 2022 के बाद वहां 6 महीने से बड़ी उम्र के सभी बच्चों को कोरोना वैक्सीन की डोज देनी शुरू कर दी गई थी. इसके बावजूद वहां बच्चों में कोरोना संक्रमण की ज्यादा दर देखी गई है. यही फैक्ट भारत के लिए चिंता की बात हो सकता है, जहां अब तक 12 साल से कम उम्र के बच्चों को कोरोना वैक्सीन नहीं दी गई है. देश की आबादी में बच्चों की संख्या करीब 30 करोड़ है. वर्ल्ड बैंक के डाटा के मुताबिक, भारत की आबादी में करीब 26% हिस्सेदारी 0 से 14 साल तक की उम्र के बच्चों की है. इस हिसाब से देखें तो नई कोरोना लहर में देश की एक बड़ी आबादी 'हाई रिस्क' पर है.
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3. पहली तीन लहर में भारतीय बच्चों के लिए घातक नहीं रहा कोरोना
कोरोना की पहली तीन लहर के दौरान भारत में बच्चों में इस महामारी का माइल्ड लेवल ही दिखाई दिया था. भारत में इस दौरान करीब 40 से 50% बच्चों के कोरोना संक्रमित होने की संभावना विभिन्न सीरो सर्वे में की गई थी. इस दौरान केवल उन बच्चों को दिक्कत होने की बात सामने आई थी, जो पहले से ही किसी अन्य बीमारी से पीड़ित हैं. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि यदि पहली तीन लहर में बच्चों के गंभीर संक्रमण के मामले कम थे तो इसकी गारंटी नहीं है कि अब नई लहर में भी बच्चों को कोई खतरा नहीं होगा. इसलिए सावधानी बेहद जरूरी है.
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4. एक्सपर्ट ने की है बच्चों को वैक्सीन लगाने की मांग
महाराष्ट्र पीडियाट्रिक टास्क फोर्स के मेंबर डॉ. प्रमोद जोग ने सरकार को तत्काल 5 से 12 साल तक के बच्चों को वैक्सीन लगाने की मांग की है. उन्होंने खासतौर पर उन बच्चों को प्राथमिकता के तहत वैक्सीन लगाए जाने की अपील की है, जो पहले से किसी बीमारी से पीड़ित हैं यानी 'एट-रिस्क चिल्ड्रन' हैं. उन्होंने चेतावनी दी है कि ऐसे बच्चों को कोरोना के ज्यादा घातक संक्रण से जूझना पड़ सकता है, जिसे हम मल्टी-सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (multi-system inflammatory syndrome) या आम बोलचाल में 'हिट एंड रन संक्रमण' केस कहते हैं. उन्होंने बच्चो में MISC के अलावा 'लॉन्ग कोविड (long Covid)' के भी लक्षण दिखने की चेतावनी दी है.
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5. तीन चाइल्ड वैक्सीन को मिल चुकी है मंजूरी
देश में अब तक 5 साल से 12 साल तक के बच्चों के लिए तीन कोविड वैक्सीन (Covid Vaccine) को मंजूरी मिल चुकी है. कॉर्बेवैक्स (Corbevax), कोवोवैक्स (Covovax) और कोवैक्सिन (Covaccine) को सरकार ने इमरजेंसी यूज अप्रूवल दिया है यानी मानव परीक्षम में ये तीनों सुरक्षित पाई गई हैं और इनका इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि तीनों में से किसी भी वैक्सीन से अब तक 5 से 12 साल तक के बच्चों का वैक्सीनेशन प्रोग्राम शुरू नहीं किया गया है. डॉ. जोग ने इन वैक्सीन को कम से कम उन बच्चों को लगाने की अपील सरकार से की है, जो जन्मजात विसंगतियों, बच्चों की डायबिटिज, टीबी, मालन्यूट्रिशियन, किडनी और फेफड़ों की बीमारियों में से किसी एक से पीड़ित हैं. इसके अलावा उन्होंने थैलेसीमिया, रेनाल डिजीज, कैंसर, लॉन्ग-टर्म स्टेरॉयड यूज, इम्यूनो-कॉम्प्रोमाइज्ड स्टेज और ऑबेसिटी से पीड़ित बच्चों को भी हाई-रिस्क कंडीशन में शामिल किया है.
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6. बच्चों में कोरोना फैला तो नहीं हैं पर्याप्त तैयारियां
भारत में बच्चों में कोरोना का गंभीर प्रभाव होने के बाद के हालात पर एक्सपर्ट्स में चिंता है. दरअसल 50% बच्चों के कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुके होने के कारण उनमें हाइब्रिड इम्युनिटी मानी जा रही है यानी बड़ों की तरह उन्हें भी कोरोना से खतरा कम है. लेकिन बाकी बचे 50% बच्चे संक्रमित हुए तो देश में पर्याप्त तैयारियां ही नहीं हैं. हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, यदि 50% यानी करीब 15 करोड़ बच्चों में से 1% भी कोरोना के गंभीर संक्रमण की चपेट में आए तो देश के अस्पतालों में पर्याप्त संख्या में पीआईसीयू (बच्चों के स्पेशलाइज्ड आईसीयू) ही नहीं हैं. पिछले साल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में बच्चों के लिए महज 70 PICU ही मान्यताप्राप्त थे. यदि एक साल के दौरान इनकी संख्या में बढ़ोतरी हो गई हो तो भी अधिकतम 200 PICU ही देश में मौजूद होंगे, जिनमें मौजूद बेड संख्या में पर्याप्त साबित नहीं होंगे.
7. ऐसे अलग होता है आम ICU से PICU
पीआईसीयू में मशीनों से लेकर बेड और ऑक्सीजन मास्क तक, सबकुछ बच्चों के हिसाब से ही डिजाइन होता है. बच्चों को यदि बड़ों के आईसीयू में भर्ती कर दें तो वहां उनके मुंह के हिसाब से ऑक्सीजन मास्क उपलब्ध नहीं होगा और मशीनें भी बड़ों के शरीर की रीडिंग के हिसाब से रिजल्ट देती हैं, जबकि बच्चों के शरीर की रीडिंड अलग होती है.
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