Bihar Politics: लोकसभा में नेता विपक्ष के तौर पर हो या सड़क पर कांग्रेस सांसद के रूप में, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का नया रूप दिख रहा है. राहुल आपको हर जगह संविधान, उसमें दिए दलितों के अधिकार और बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की बात करते दिखेंगे. यह राहुल गांधी की उस कवायद का हिस्सा है, जिसमें वे दलित वोटर्स को दोबारा कांग्रेस के साथ जोड़ने की कोशिश में जुटे हुए हैं. इसी के चलते वे हर जगह जातीय जनगणना की भी बात करते रहे हैं. साथ ही बिहार में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार द्वारा कराए गए जातीय सर्वे के पीछे भी कांग्रेस का दबाव होने का दावा करते रहे हैं, जो सर्वे के समय नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ सरकार में हिस्सेदार थी. राहुल गांधी की इस कवायद का पहला इम्तहान बिहार है, जहां अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2025) होने जा रहे हैं. बिहार की राजनीति में दलित वोटर्स की खास अहमियत रही है. यही कारण है कि राहुल गांधी गुरुवार (15 मई) को तमाम अवरोधों के बावजूद दलित छात्रों से मिलने के लिए दरभंगा पहुंचे और इसके बाद पटना पहुंचकर उन्होंने दलित समाज सुधारक ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले पर आधारित फिल्म 'फुले' देखी. राहुल के लिए इस दौरे की अहमियत ऐसे लगाई जा सकती है कि उन्होंने दरभंगा में प्रशासन के तमाम विरोध के बावजूद आंबेडकर छात्रावास में दलित छात्रों से मुलाकात की. इसके लिए उनके खिलाफ दो FIR भी दर्ज हो गई हैं.
आइए आपको 5 पॉइंट्स में बताते हैं कि बिहार में दलित वोटर्स कितने अहम हैं और क्यों यहां चुनाव राहुल गांधी की परीक्षा साबित होने जा रहे हैं-
1. बिहार में 19 फीसदी है दलित वोटर्स की आबादी
बिहार की राजनीति दलित और महादलित वोटबैंक के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है. यहां बिहार में करीब 19 फीसदी दलित वोटर हैं. राज्य के दलित वोटबैंक पर अब तक LJP (रामविलास पासवान), जीतनराम मांझी की HAM, CPI (ML) का प्रभाव रहा है. इसके अलावा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जेडीयू और लालू प्रसाद यादव की राजद भी इसमें हिस्सेदारी करती रही हैं. नीतीश कुमार ने इसी दलित वोटबैंक के बीच महादलित का कार्ड खेलकर नए समीकरण भी निकाले हैं. लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के उभार से पहले दलित वोटर्स कांग्रेस के हिस्से में रहते थे. राहुल गांधी की कवायद कांग्रेस के लिए दलित वोटर्स का यही प्यार लौटाने की है, जिसकी उम्मीद उन्हें साल 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद बढ़ी है.
2. राज्य में 40 विधानसभा सीटें हैं आरक्षित
बिहार विधानसभा की 243 में से 40 सीटें आरक्षित हैं. इनमें से 38 पर दलित अनुसूचित जाति और 2 सीट पर अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार खड़े होते हैं. कांग्रेस को बिहार में मुस्लिम वोटर्स का साथ मिलता रहा है, जिसकी उम्मीद उसे इस बार भी है. यदि राहुल गांधी की कवायद से कांग्रेस को दलित वोटर्स का साथ मिला तो दलित-मुस्लिम समीकरण की बदौलत कांग्रेस वह चमत्कार कर सकती है, जो पिछले कई दशक से उससे दूरी बनाए हुए है.
3. किस तरह कोशिश कर रहे हैं बिहार में राहुल गांधी?
राहुल गांधी पिछले 5 महीने में 4 बार बिहार का दौरा कर चुके हैं. इन दौरों पर वह लगातार भाजपा पर दलितों के अधिकार छीनने की कोशिश करने का आरोप लगाते रहे हैं और नीतीश कुमार को इसमें भाजपा का साथी बताते रहे हैं. साथ ही वे जातीय जनगणना के जरिये दलितों को हक दिलाने की भी बात करते रहे हैं. इससे पहले 'भारत जोड़ो यात्रा' में भी राहुल गांधी लगातार दलितों का मुद्दा उठाते रहे हैं. राज्य में दलितों को लुभाने के लिए ही राहुल गांधी के कहने पर कांग्रेस ने अखिलेश प्रसाद सिंह जैसे कद्दावर नेता को हटाकर दलित नेता राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है, जबकि सुशील पासी को बिहार का सह प्रभारी नियुक्त किया गया है.
4. दलित फोकस तीन मांग उठा रहे हैं राहुल गांधी
राहुल गांधी दलित वोटर्स को अपने खेमे में लुभाने के लिए तीन मांग उठाते रहे हैं, जिनमें से पहली मांग देश में जातीय जनगणना कराने की है. मोदी सरकार द्वारा जातीय जनगणना कराने की घोषणा के बाद राहुल ने जोर-शोर से इसे कांग्रेस के दबाव का नतीजा बताकर श्रेय लेने की कोशिश की है. दूसरी मांग सरकार के SC/ST सब प्लान योजना के तहत फंडिंग तय कराना और तीसरी मांग निजी संस्थानों में भी आरक्षण लागू कराना है. बता दें कि SC/ST सब प्लान फंड हर राज्य की योजना में दलितों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए बजट का तय हिस्सा होता है. राहुल गांधी का कहना है कि यह फंड दलितों को नहीं मिल रहा है.
5. कांग्रेस उठी तो नीतीश को होगा सीधा नुकसान
बिहार में कांग्रेस और दलित वोटर्स के बीच का अलगाव नीतीश कुमार की JDU के उभार के बाद शुरू हुआ था. ऐसे में माना जाता है कि यदि दलित वोटर दोबारा कांग्रेस से जुड़े तो सीधा नुकसान नीतीश कुमार को ही होगा. NDA गठबंधन में बिहार के अंदर JDU का दर्जा BJP से ऊपर है. इसका मतलब है कि यदि नीतीश कुमार की पार्टी डाउन गई तो यानी यह नुकसान भाजपा का ही होगा. इस गणित को निम्न आंकड़ों से समझ सकते हैं-
- बिहार चुनाव 1990 में कांग्रेस को 24.78% वोट मिले.
- बिहार चुनाव 1995 में कांग्रेस के खाते में 16.30% वोट आए.
- बिहार चुनाव 2000 में 11.06% वोट ही कांग्रेस को मिले.
- बिहार चुनाव 2005 में 6.09% वोट के साथ कांग्रेस का किला ध्वस्त.
- बिहार चुनाव 2010 में कांग्रेस ने 8.37% वोट के साथ उठने की कोशिश की.
- बिहार चुनाव 2015 में कांग्रेस को महज 6.7% वोट ही हासिल हुए.
- बिहार चुनाव 2020 में कांग्रेस को RJD से जुड़कर फिर 9.48% हासिल हुए.
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बिहार में Rahul Gandhi ने बजाया कांग्रेसी बिगुल, कितने अहम हैं राज्य में दलित वोटर्स, पढ़ें 5 पॉइंट्स