वेस्ट और यूरोप की राजनीति को समझने वाले राजनीतिक पंडित लाख दावे कर लें. मगर इस बात को छिपाया नहीं जा सकता कि यूरोप के कई प्रमुख राजनेता डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों/ फैसलों से बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं. इन तमाम नेताओं ने व्हाइट हाउस के शीर्ष पर बैठे लोगों से जो कुछ भी सुना, वो ये बताने के लिए काफी है कि मौजूदा वक़्त में अमेरिका के चलते उनके किले ध्वस्त होने की कगार पर हैं. अब वे इसके परिणामों को लेकर चिंतित हैं.

जैसे हालात बने हैं उसमें इमैनुएल मैक्रों, अनिवार्य रूप से, एक बार फिर खुद को महाद्वीप के वास्तविक राजनीतिक नेता के रूप में स्थापित करते हुए, सामने आए हैं.

बताया जा रहा है कि मैक्रों इस नई विश्व व्यवस्था पर चर्चा करने के लिए एलिसी में एक आपातकालीन शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेंगे. ध्यान रहे कि यह सब उस वक़्त हो रहा है जब अमेरिका अचानक से रूस के साथ दोस्ती शुरू करने और अपने सैनिकों को यूरोप से बाहर निकालने के लिए उत्सुक है.

अगर वह डर पहले से ही था, तो तीन चीजों ने उस भावना को मजबूत किया है.

सबसे पहले, और सबसे स्पष्ट रूप से, यूरोप को छोड़कर और शायद खुद यूक्रेन को भी छोड़कर जिस तरह से डोनाल्ड ट्रम्प ने यूक्रेन के भविष्य पर शांति वार्ता स्थापित करने का फैसला किया है उसने तमाम कयासों को आंच दे दी है.  

याद दिला दें कि यूक्रेन यूरोप की पूर्वी सीमा पर है. इसके शरणार्थी बड़ी संख्या में यूरोप भाग गए हैं. इसकी अर्थव्यवस्था यूरोप से जुड़ी हुई है, जैसा कि इसका इतिहास और संस्कृति है.

आप इसे चाहे जिस तरह से पेश करें, यूक्रेन में युद्ध अमेरिका के भविष्य से ज़्यादा यूरोप के भविष्य को प्रभावित करता है.

दूसरा तरीका यह है कि ट्रंप ने ग्रीनलैंड और गाजा दोनों पर कब्ज़ा करने के विचार को आगे बढ़ाया है. किसी भी मामले में उन्होंने किसी नैतिक अधिकार का सुझाव नहीं दिया, बल्कि सिर्फ़ इतना कहा कि पैसा ही सब कुछ कहेगा. दिलचस्प यह कि गाजा के मामले में ये ट्रंप का अपना पैसा होगा.

कुछ यूरोपीय राजनयिकों को इस पूरे घटनाक्रम में उपनिवेशवाद की बू आ रही है. और बात क्योंकि ग्रीनलैंड की भी हुई है तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह डेनमार्क का क्षेत्र है.

और तीसरा जेडी वेंस का वह भाषण था, जिसने पूरे यूरोपीय महाद्वीप में कई लोगों की रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा कर दी थी. भले ही भाषण को अमेरिकी लोगों को ध्यान में रखकर लिखा गया हो लेकिन म्यूनिख में बैठे लोगों में से अधिकांश के लिए, इस भाषण ने अपने कई चेहरे एकसाथ दिखाए थे.

शायद यह भाषण वह क्षण था जब कुछ राय बनाने वालों ने निष्कर्ष निकाला कि, मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में वे वास्तव में अमेरिका की वफादारी पर भरोसा नहीं कर सकते. इसे जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस के हाव भाव से भी समझ सकते हैं जिन्हें ये भाषण अटपटा लगा था.

बता दें कि जेडी वेंस ने एक बार ट्रंप को एक फासीवादी कहा था. वेंस का मानना  था कि ट्रंप एक ऐसे शख्स हैं जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. इन तमाम बातों के बाद सवाल खड़ा होता है कि क्या वास्तव में ट्रंप इन तमाम मामलों को लेकर कभी सही फैसला ले पाएंगे? इस पर पूरी दुनिया की नजर रहेगी.  

ध्यान रहे कि म्यूनिख में रहते हुए, वेंस ने जर्मनी की दक्षिणपंथी AfD पार्टी की नेता एलिस वीडेल से मुलाकात की, जो अगले सप्ताहांत के चुनाव से पहले दूसरे स्थान पर चल रही हैं. उनकी पार्टी को पहले एलन मस्क से उत्साहपूर्ण समर्थन मिला है. मैक्रोन ने अन्य लोगों के साथ मिलकर मस्क पर चुनाव में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया है. 

बेशक, यह एक समान नहीं है.  ट्रंप के अभी भी यूरोप भर में बहुत सारे दोस्त हैं जैसे हंगरी में विक्टर ओर्बन उनके करीबी दोस्त हैं और बहुत सारे लोकलुभावन लोग हैं जो ट्रंप  की प्रशंसा करते हैं, और उनके MAGA ब्लूप्रिंट का अनुसरण करते हैं - उदाहरण के लिए स्लोवाकिया के रॉबर्ट फ़िको.

इतालवी प्रधान मंत्री जियोर्जिया मेलोनी, जो ट्रंप के उद्घाटन के समय एकमात्र यूरोपीय संघ की नेता थीं, खुद को एक संभावित ट्रांसअटलांटिक मध्यस्थ के रूप में पेश कर रही हैं.

लेकिन अधिकांश यूरोपीय नेता अभी भी राजनीतिक केंद्र से आते हैं - और इस बात को लेकर भ्रमित हैं कि अटलांटिक के दूसरी ओर से आने वाले तीखे लोकलुभावनवाद पर कैसे प्रतिक्रिया दें.

कुल मिलकर उन्हें तेजी से सोचने की जरूरत है, ऐसा इसलिए भी क्योंकि इस बात के बहुत कम संकेत देखने को मिल रहे हैं कि ट्रंप का बवंडर अपने आप खत्म होगा. 

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A new world order is emerging America suddenly becoming friends with Russia is giving tension to european leaders
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यूरोपीय नेताओं के किले ध्वस्त कर चुके हैं ट्रंप, क्यों एकजुटता है जरूरी?
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राष्ट्रपति ट्रंप यूरोप के कई नेताओं के लिए एक बड़ी मुसीबत बन गए हैं
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यूरोपीय नेताओं के किले ध्वस्त कर चुके हैं डोनाल्ड ट्रंप, क्या उन्हें एकजुट हो जाना चाहिए?

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