डीएनए हिंदी: आज भारत में करोड़ों की संख्या में बेरोजगार युवक रोजगार की तलाश में घूम रहे हैं. जहां युवाजन रोटी कमाने की चाहत में नौकरी की तलाश में हैं. वहीं सत्ता इसी बेरोजगारी पर चुनाव में रोजगार दिलाने के नए-नए वादे करती है. दरअसल बेरोजगारी दर (Unemployment Rate) श्रम शक्ति का वह हिस्सा है जिसके पास नौकरी नहीं है. किसी देश की बेरोजगारी दर वर्तमान आर्थिक स्थिति के आधार पर गिरती और बढ़ती है. बेरोजगारी की दर एक अपंग अर्थव्यवस्था के साथ बढ़ती है और यह घट जाती है तो अर्थव्यवस्था मजबूत हो जाती है.
प्रत्येक देश में राष्ट्रीय सांख्यिकीय संस्थान द्वारा किए गए श्रम-बल सर्वेक्षणों के जरिए बेरोजगारी दर को राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तर (क्षेत्रीय स्तर) पर मापा जाता है. बेरोजगारी दर को अर्थव्यवस्था को मापने का आधार माना जाता है.
बेरोजगारी दर की गणना करने का क्या फार्मूला है?
बेरोजगारी दर के प्रतिशत की गणना बेरोजगार व्यक्तियों/कुल श्रम बल × 100 के रूप में की जाती है.
नीति निर्धारण में बेरोजगारी दर का ऐसे इस्तेमाल होता है
नीति निर्माता और केंद्रीय बैंक इसका इस्तेमाल अर्थव्यवस्था पर मंदी के प्रभाव को समझने और मापने के लिए करते हैं. पड़ने वाले प्रभाव के आधार पर, नीति निर्माता फिर प्रभावों को कम करने के लिए अपनी रणनीति तैयार करते हैं. इस दौरान केंद्रीय बैंक भी आर्थिक गिरावट (Economic Downfall) को रोकने के उपायों के साथ आने की कोशिश करते हैं.
आम जनता के लिए, बेरोजगारी दर देश की अर्थव्यवस्था को समझने का एक उपकरण है और यह सरकार को और बेहतर बनाने में योगदान देती है.
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बेरोजगारी दर का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या पड़ता है असर? कैसे मापते हैं इसे?