डीएनए हिंदी: भारत की दो तेल कंपनियों भारत पेट्रोलियम और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम को क्रूड ऑइल देने के करार से रूस की राजकीय कंपनी रोसनेफ्ट (Rosneft) के इंकार से भारत की परेशानियां बढ़ गई हैं. रोसनेफ्ट ने यह इंकार ऐसे नाजुक वक्त में किया है जब सऊदी अरब,कतर,ओमान और ईरान समेत मध्यपूर्व और खाड़ी देशों की भृकुटि में भारत के फ्रिंज तत्वों के गैरजरूरी और अटपटे बोलों की वजह से बल पड़े हुए हैं और बाजार में तेल के दामों का बढ़ना लगातार जारी है. साथ ही भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के संकुचन के आसार दिखाई दे रहे हैं.
बहुत पुराना मुहावरा है, तेल देखो, तेल की धार देखो. लगता है कि हिन्दुस्तान ने इस देसी मुहावरे पर गौर नहीं किया. अगर गौर किया होता तो यह नौबत नहीं आती. यहां तेल से अभिप्राय वनस्पति तेलों से नहीं, बल्कि कच्चे तेल या क्रूड ऑइल से है, जो विश्व में परिवहन और कल-कारखानों के लिए जरूरी है और राजनयिक हथियार भी.
तेल ताकत है और डर भी
दिलचस्प तौर पर युद्ध लड़ने के लिए जरूरी तेल अपने आप में लड़ाई का अचूक अस्त्र बनकर उभरा है. तेल ताकत है और डर भी. ओपेक जैसे संगठनों की त्यौरियों की वजह कुछ और नहीं, बल्कि तेल है. तेल युद्धाग्नि भड़काता है, प्रगति के चक्कों को गति देता है और बाज वक्त मुल्कों के लिए रपटने का सबब भी बनता है. विश्व-राजनय में तेल की इतनी महत्वपूर्ण भूमिका है कि पूछिये मत. रूस-यूक्रेन युद्ध इसका ताजातरीन उदाहरण है. इसे वेनेजुएला-प्रसंग से भी समझा जा सकता है. वेनेजुएला तेल समृद्ध लातिनी-अमरीकी मुल्क है. इसी तेल के कारण बलशाली अमेरिका ने उसकी मुश्कें कस दी हैं और उसे जरूरी चीजों का मोहताज बना दिया है. प्रसंगवश पड़ोसी देश श्रीलंका का जिक्र मौजूं होगा, जिसके पास तेल खरीदने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा नहीं है, लिहाजा वहां त्राहि-त्राहि मची हुई है.
रूस-यूक्रेन जंग का नुकसान
भारत की कच्चे तेल की जरूरतों और आयात की तालिका पर गौर करें तो गौरतलब और दिलचस्प तस्वीर उभरती है. भारत ने इस वर्ष अकेले मार्च में 13.7 बिलियन डॉलर का कच्चा तेल मंगाया, जबकि गत वर्ष इसी अवधि में यह आंकड़ा 8.4 बिलियन डॉलर था. सन् 2020-21 में 62.2 बिलियन डॉलर और सन् 2021-22 में 119.2 बिलियन के मुकाबले अनुमान है कि भारत को सन् 2022-23 में क्रूड ऑइल-इंपोर्ट पर 74.11 बिलियन डॉलर की भारी-भरकम राशि खर्च करनी पड़ेगी. गौरतलब है कि बीते दो बरसों में तेल आयात पर व्यय दोगुना बढ़ गया है और रूस और यूक्रेन के बीच जंग तथा अमेरिकी पाबंदियों ने उसमें नए पेंच डाल दिए हैं. रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध से तेल बाजार में उछाल आया है और प्रति बैरल कीमतें सौ डालर पार कर गई हैं.
ये भी पढ़ें- Crude Oil के दाम आसमान पर, जाने आपको कितनी चुकानी होगी Petrol और Diesel की कीमत
भारत क्रूड ऑइल की 85.5 फीसद जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है. भारत के पास तेल शोधन की क्षमता है और कुछ पेट्रो उत्पादों का वह निर्यात भी करता है, लेकिन ईंधन गैस की किल्लत से वह उबर नहीं पाया है. आयात के लिए वह सऊदी अरब पर अधिक अवलंबित है. सन् 2001-22 में उसने 194.3 मिलियन टन पेट्रो उत्पादों का निर्यात किया. बहरहाल, रूस के ‘स्टॉक नहीं है’ कहकर हाथ उठा देने से भारत के समक्ष विषम स्थिति उत्पन्न हो गई है. रूस के दरवाजे पर दस्तक से अमेरिका पहले ही खिन्न है. अब रोसनेफ्ट की सिर्फ इंडियन ऑइल कॉरपोरेशन से ही डील फाइनल हुई है. अन्य दोनों कंपनियों को रोसनेफ्ट के इंकार ने भारत की मुसीबतें बढ़ा दी हैं. रोसनेफ्ट आईओसी को प्रतिमाह 6 मिलियन बैरल तेल देगा, जो नाकाफी है. तय है कि सितंबर में अंतरराष्ट्रीय कर्ज की अदायगी के बाद भारत नए भंवर में फंसेगा और तेलपट्टी पर फिसलने की भी आशंका है.
ये भी पढ़ें- Crude Oil की बढ़ती कीमतों के बीच Petrol और Diesel के दाम में राहत जारी, देखें फ्रेश प्राइस
डॉ. सुधीर सक्सेना लेखक, पत्रकार और कवि हैं. 'माया' और 'दुनिया इन दिनों' के संपादक रह चुके हैं.)
(यहां दिए गए विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों पर अलग नज़रिया, फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.
- Log in to post comments
रूस की कंपनी Rosneft ने बढ़ाई भारत की परेशानी, जानें क्या हो सकता है असर