डीएनए हिंदी: बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने औरंगाबाद से जुड़े एक केस में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि भले ही किसी नाबालिग ने कोई जघन्य अपराध किया हो लेकिन फिर भी उस पर वयस्कों की तरह मुकदमा नहीं चलाया है जा सकता है. इसके साथ ही कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार और एटीएस (Maharashtra Government) की याचिका को सिरे से खारिज कर दिया है.
दरअसल हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति मुकुंद सेवलीकर की एक पीठ औरंगाबाद एटीएस विंग द्वारा दायर एक पुनरीक्षण आवेदन पर सुनवाई कर रही थी जिसमें एक विशेष अदालत द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें सीसीएल को एक वयस्क के रूप में एक आतंकवाद के मामले में वयस्क के रूप में पेश करने की मांग की गई थी लेकिन इस याचिका को खारिज कर दिया गया था.
वहीं इस मामले में एटीएस के अनुसार, विचाराधीन सीसीएल उस समूह का सदस्य था जिसके आईएसआईएस से संबंध थे. इसने दावा किया कि समूह ने 2018 में औरंगाबाद में और मुंबई में भी एक पानी के टैंकर में एक जहरीला पदार्थ मिलाने की योजना बनाई थी ताकि सामूहिक हत्या की जा सके.
एटीएस को इस समूह उम्मत-ए-मोहम्मदिया की प्लानिंग की गुप्त सूचना मिलने के बाद योजना को विफल कर दिया गया था. विचाराधीन CCL को 2019 में गिरफ्तार किया गया था और चूंकि वह नाबालिग था, इसलिए उसे किशोर न्याय बोर्ड (JJB) के सामने पेश किया गया था और बाद में अभियोजन एजेंसी ने JJB के समक्ष CCL का आकलन करने और यह तय करने के लिए एक याचिका दायर की कि क्या उस पर वयस्कों की तरह ही केस चलाया जा सकता है.
जेजेबी ने एक वयस्क के रूप में उसके मुकदमे की अनुमति देने से इनकार कर दिया. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 यह प्रावधान करता है कि यदि कोई बच्चा अपराध के समय लगभग 16 वर्ष का है तो उस पर एक बच्चे द्वारा वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जा सकता है. एटीएस ने अपनी याचिका में भी यही तर्क दिय
वहीं इस मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए न्यायमूर्ति सेवलीकर ने सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों का उल्लेख किया है. न्यायमूर्ति सेवलीकर ने एक फैसले का हवाला देते हुए कहा, "यहां तक कि अगर कोई बच्चा जघन्य अपराध करता है, तो भी उस पर एक वयस्क के रूप में स्वचालित रूप से मुकदमा नहीं चलाया जाता है."
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न्यायाधीश ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि ऐसे मामले जो गंभीर हैं लेकिन जघन्य नहीं तो अपराधी किशोरों पर नाबालिग स्तर के मुकदमे चलाए जाने चाहिए. उन पर वयस्कों की तरह मुकदमें नहीं चलाने चाहिए. जेजेबी ने भी कोर्ट के फैसले पर सहमति जाहिर की है.
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