डीएनए हिंदी: सबसे कम Manufacturing Costs वाले देशों की लिस्ट में भारत दुनिया में नंबर वन हो गया है. चीन और वियतनाम भारत से पीछे दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं. जबकि भारत का पड़ोसी बांग्लादेश छठे स्थान पर है. जी हां, अगर हम दुनिया के सबसे सस्ते और कम लागत से सामान बनाने वाले देशों के स्कोर की बात करें तो भारत ने 100 में से 100 स्कोर किया है. ये खुलासा खुद यूएस न्यूज एंड वर्ल्ड की नई सर्वे रिपोर्ट के जारी होने के बाद हुआ है. इस रिपोर्ट की मानें तो दुनिया भर में कम्पनियां कम लागत के साथ भरोसेमंद मैन्युफैक्चरर के तौर पर भारत का रुख कर रही है. पहले Low Cost Manufacturing के लिए दुनिया भर के देशों की पहली पसंद चीन और वियतनाम थे.
भारत का 'ओपन फॉर बिजनेस' स्कोर 37
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का 'ओपन फॉर बिजनेस' के लिए कुल स्कोर 37 है. वहीं इस सर्वे में भारत ने अन्य पैमानों पर कम स्कोर किया है. जैसे 'Favourable Tax Environment' की बात आती है, तो भारत को सर्वे के मुताबिक 16.2/100 का अंक ही मिले हैं. वहीं ‘Not Corrupt' Sub-Category में 18.1/100 और 'Transparent Government Policies' में 3.5 अंक मिले है. हालांकि, रिपोर्ट भारत को 'Not Bureaucratic' Sub-Category में 81.9/100 का स्कोर देती है.
रिपोर्ट के मुताबिक चीन जो दक्षिण एशिया क्षेत्र में भारत का प्रमुख आर्थिक प्रतियोगी है. COVID-19 आने के बाद से दुनिया की ज़्यादातर बड़ी कंपनियों का रुझान कम हुआ है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कई बड़े Foreign Players चीन से अपनी यूनिट्स शिफ्ट करने का मन बना चुके हैं. वहीं बात करें चीन की तो सर्वे रिपोर्ट में 'ओपन फॉर बिजनेस' स्कोर 17 है. हालांकि, जब मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट की बात आती है, तो यह भारत के बाद दूसरे स्थान पर आज भी काबिज़ है. वियतनाम जिसने पिछले कुछ सालों में बड़ी संख्या में Apparel और Footwear निर्माताओं को आकर्षित किया है. वो इस लिस्ट में तीसरे स्थान पर बना हुआ है. वहीं ये देश 'ओपन फॉर बिजनेस' श्रेणी में 47वें स्थान पर है.
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सबसे सस्ती मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट वाले टॉप 10 देशों की सूची में थाईलैंड (चौथा), फिलीपींस (पांचवां), बांग्लादेश (छठा), इंडोनेशिया (सातवां), कंबोडिया (आठवां), मलेशिया (नौवां) और श्रीलंका (दसवां) स्थान पर है.
ये रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार भारत को Make In India के आधार पर Global Manufacturing का हब बनाने की कोशिश कर रही है. 2020 में COVID-19 के प्रकोप के बीच मोदी सरकार द्वारा शुरू किए गए 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान का उद्देश्य Foreign Players को आकर्षित करके देश की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने का था.
जानिए FDI को ले कर क्या कहते हैं भारत सरकार के आंकड़े
भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक सिंगापुर (27.01%) और यूएसए (17.94%) वित्त वर्ष 2021-22 में भारत में एफडीआई इक्विटी निवेश में टॉप 2 सोर्सिंग देशों के रूप में उभरे हैं. इसके बाद मॉरीशस (15.98%), नीदरलैंड (7.86%) और स्विट्जरलैंड (7.31%) हैं. वहीं UNCTAD World Investment Report (WIR) 2022 के अनुसार, एफडीआई निवेश में ग्लोबल रैंकिंग में भारत ने 2021 में टॉप 20 मेजबान अर्थव्यवस्थाओं में अपनी रैंकिंग सुधार कर 7वें स्थान पर पहुंच गया है.
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विदेशी निवेश के लिए भारत पसंदीदा देश के रूप में उभर रहा है
भारत सरकार के आंकड़े ये भी बताते हैं की विदेशी निवेश के लिए भारत तेजी से पसंदीदा देश के रूप में उभर रहा है. पिछले वित्त वर्ष 2020-21 (12.09 बिलियन अमरीकी डालर) की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 (यूएसडी 21.34 बिलियन) में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में एफडीआई इक्विटी इनफ्लो में 76% की बढ़त हुई है. सरकार ने बीमा, रक्षा, दूरसंचार, वित्तीय सेवाओं, फार्मास्यूटिकल्स, खुदरा व्यापार, ई-कॉमर्स, निर्माण और विकास, सिविल एविएशन, Construction (Infrastructure) Activities आदि जैसे क्षेत्रों में एफडीआई नीति व्यवस्था के तहत कई परिवर्तनकारी सुधार लागू किए हैं जिससे विदेशी निवेशकों को देश में लाना आसान तो हुआ है लेकिन अब भी इस सेक्टर में कई और नीति बदलाव की ज़रुरत है.
चल रही महामारी और ग्लोबल डेवलपमेंट्स के बावजूद, भारत ने वित्त वर्ष 21-22 में 84,835 मिलियन अमरीकी डालर का FDI द्वारा निवेश प्राप्त किया है जो पिछले साल के एफडीआई को 2.87 बिलियन अमरीकी डॉलर से आगे ले गया है. इससे पहले, एफडीआई इनफ्लो वित्त वर्ष 19-20 में 74,391 मिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 20-21 में 81,973 मिलियन अमरीकी डॉलर हो गया था.
पिछले 2 से 3 साल में कई विदेशी कंपनियों ने किया भारत का रुख
Goldman Sachs से लेकर IBM, DHL, Brookfield और कुछ सेमीकंडक्टर दिग्गज भारत को एक अच्छे विकल्प के रूप में देख रहे हैं. आपको बता दें कि Apple, Luxury Carmaker Mercedes-Benz सहित कई बड़ी कंपनियों ने 2-3 सालों में भारत में Operations में तेजी लाने की इच्छा व्यक्त की है. वहीं पैन्डेमिक के बाद से कई कंपनियां चीन पर अपनी निर्भरता को और कम करने की सोच रही हैं.
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