डीएनए हिंदी: आज बेहद ही गौरवशाली दिन है जिसे हम भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मना रहे हैं. आपको बता दें कि इस वर्ष भारतीय स्वतंत्रता दिवस की 77वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है. क्या आप जानते हैं साल 1947 में आजाद हुए भारत की अर्थव्यवस्था की आज क्या हालत है. आजादी के बाद भारत की अर्थव्यवस्था को करीब साढ़े सात दशक हो चुके हैं. हर 1 दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था में क्या बदलाव हुए, किस अर्थव्यवस्था में क्या मुद्दे केंद्र में रहे, आज हम आपको इसी के बारे में बताने वाले हैं.
साल-दर-साल यूं बदली भारतीय अर्थव्यवस्था
1950 का दशक
भारत के आजाद होने के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी कि खुदका संविधान और कानून को बनाना जिसके तहत देश को सुचारू रूप से चलाया जा सके. इतना ही नहीं आजादी के बाद देश को आगे बढ़ाने के लिए औद्योगीकरण (Industrialisation) भी बेहद जरूरी था जिससे भारतीयों को रोजगार और भारत की GDP में ग्रोथ हो सके. इसलिए 1950 के दशक में सरकार ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अपना ध्यान औद्योगीकरण और कृषि सुधारों की ओर लगाया. इसके अलावा देश के आर्थिक विस्तार और सुधार को प्रोत्साहित करने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं भी शुरू की गई.
1960 के दशक
1960 का दशक भी अलग नहीं था, क्योंकि महत्वपूर्ण वैश्विक परिवर्तन हुए थे, जिन्होंने गरीबी और पिछड़ेपन से जूझ रहे एक युवा देश भारत को प्रभावित किया था. खाद्य पदार्थों का बड़े पैमाने पर आयात किया गया और 1966 में जब मुद्रा का मूल्य 4.76 रुपये से बढ़कर 7.5 रुपये प्रति डॉलर हो गया, तब सबसे बड़ा अवमूल्यन हुआ. 1962 और 1965 के युद्धों के दौरान, भारत को अपनी सीमाओं पर समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिसके कारण रक्षा खर्च में तेज से बढ़ोतरी हुई और हथियारों के आयात में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हुई. जिसका असर गरीबी के खिलाफ लड़ाई पर पड़ा. खाद्य स्वतंत्रता की आवश्यकता को महसूस करने के बाद श्रीमती इंदिरा गांधी ने हरित क्रांति की शुरुआत की. इसके चलते से भोजन की कमी को कम किया गया और कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई. वित्तीय क्षेत्र को मजबूत करने के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण भी किया गया.
1970 का दशक
1970 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था गति धीमी गति, उच्च मुद्रास्फीति और बढ़ते सरकारी हस्तक्षेप के लिए जानी जाती है. शुरुआती साल में फिर से पाकिस्तान के साथ युद्ध ने अर्थव्यवस्था को काफी झटका दिया. अर्थव्यवस्था की औसत वार्षिक वृद्धि दर केवल 3.5% थी, जो जनसंख्या वृद्धि दर से बमुश्किल अधिक थी. मुद्रास्फीति औसतन 7.7% थी, और दो वर्ष ऐसे थे जब यह 20% को पार कर गई थी. सरकार ने बैंकों, बीमा कंपनियों और अन्य उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करके अर्थव्यवस्था में भारी हस्तक्षेप किया. इससे अकुशलता और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला और इसने निजी निवेश को दबा दिया. परिणामस्वरूप, 1970 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था अन्य विकासशील देशों से पिछड़ गयी.
1970 के दशक की कुछ प्रमुख चुनौतियां
- 1973 और 1979 में तेल की कीमत में भारी वृद्धि हुई, जिसका भारत की अर्थव्यवस्था पर बड़ा प्रभाव पड़ा. भारत एक प्रमुख तेल आयातक है, और तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण व्यापार घाटा हुआ और विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई.
- हरित क्रांति, जिसके कारण 1960 के दशक में कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई थी, 1970 के दशक में स्थिर होने लगी. इससे भोजन की कमी हो गई और भोजन की कीमतें बढ़ गईं.
- सरकार की आयात प्रतिस्थापन और आत्मनिर्भरता की नीतियों के कारण निर्यात में गिरावट और आयात में वृद्धि हुई. इससे भारत बाहरी झटकों के प्रति अधिक संवेदनशील हो गया.
- सरकार द्वारा उद्योगों के राष्ट्रीयकरण से अक्षमता और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला. इससे निजी निवेश अवरुद्ध हो गया और आर्थिक विकास धीमा हो गया.
- 1970 के दशक की आर्थिक चुनौतियों का भारत पर स्थायी प्रभाव पड़ा. 1970 के दशक की धीमी वृद्धि और उच्च मुद्रास्फीति के कारण कई भारतीयों के जीवन स्तर में गिरावट आई. सरकार की हस्तक्षेपवादी नीतियों ने भी 1970 के दशक की आर्थिक समस्याओं में योगदान दिया.
1980 का दशक
1980 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से ग्रोथ हुई जिसमें GDP प्रति वर्ष औसतन 5.6% की दर से बढ़ा. इसके पीछे कई कारण थे:
- उद्योग और व्यापार का उदारीकरण, जिससे भारतीय व्यवसायों के लिए वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करना आसान हो गया.
- विदेशी निवेश में वृद्धि हुई, जिससे आर्थिक विकास को फाइनेंस करने में मदद मिली.
- बुनियादी ढांचे और सामाजिक कार्यक्रमों पर सरकारी खर्च बढ़ा.
हालांकि, 1980 के दशक की आर्थिक वृद्धि टिकाऊ नहीं थी. सरकार का बजट घाटा तेजी से बढ़ा और देश का विदेशी कर्ज काफी बढ़ गया.
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1990 का दशक
1990 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था में एक बड़ा बदलाव आया, सरकार ने आर्थिक सुधारों की दिशा में काम करना शुरू किया, जिसने देश को विदेशी निवेश और व्यापार के लिए खोल दिया. इन सुधारों से तेजी से आर्थिक विकास का दौर शुरू हुआ, 1991 और 2000 के बीच GDP में प्रति वर्ष औसतन 6.7% की वृद्धि हुई. सुधारों ने गरीबी और असमानता को कम करने में भी मदद की और उन्होंने भारत की निरंतर आर्थिक वृद्धि की नींव रखी.
1990 के दशक के कुछ प्रमुख आर्थिक सुधार:
- आयात शुल्क कम करना.
- बाज़ारों को नियंत्रण मुक्त करना.
- टैक्स कम करना
- राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों का निजीकरण
- अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोलना
इन सुधारों से भारत में विदेशी पूंजी में वृद्धि हुई. इन सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्थ में सुधार करने में भी मदद की, और उन्होंने भारत में व्यवसायों के संचालन को आसान बना दिया. 1990 के दशक के आर्थिक सुधारों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा और उन्होंने 21वीं सदी में भारत की निरंतर आर्थिक वृद्धि की नींव रखने में मदद की.
20वीं सदी की अर्थव्यवस्था
2000वीं सदी में भारतीय अर्थव्यवस्था ने तेजी से विकास का अनुभव किया, जिसमें सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि प्रति वर्ष औसतन 7.5% थी. यह आर्थिक सुधारों, बढ़े हुए विदेशी निवेश और बढ़ते मध्यम वर्ग सहित कई कारकों से प्रेरित था. परिणामस्वरूप, भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया. हालांकि, 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने भारत की वृद्धि को धीमा कर दिया था, लेकिन तब से इसमें सुधार हुआ है और अब आने वाले वर्षों में प्रति वर्ष 8% की दर से बढ़ने की उम्मीद है.
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21वीं सदी में भारतीय अर्थव्यवस्था
21वीं सदी में भारतीय अर्थव्यवस्था औसतन 6-7% की दर से बढ़ी है, जिससे यह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गई है. यह वृद्धि कई कारकों से प्रेरित है. इसमें नीचे दिए हुए कई कारक शामिल हैं:
- आर्थिक सुधारों ने अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश और व्यापार के लिए खोला
- बढ़ती डिस्पोजेबल इनकम के साथ एक बढ़ता हुआ मिडल क्लास
- स्किल्ड यंग वर्कफोर्स और बुनियादी ढांचे के विकास पर फोकस.
आने वाले वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि जारी रहने की उम्मीद है, और 2030 तक इसके दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है. हालांकि, इस वृद्धि को बनाए रखने के लिए कुछ चुनौतियां हैं जिनसे भारतीय अर्थव्यवस्था को पार पाना होगा.
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