अक्टूबर 2024 में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपये को डॉलर के मुकाबले कमजोर होने से रोकने के लिए बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप किया. रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा बाजार में 44.5 अरब डॉलर खर्च किए, जिसमें 9.3 अरब डॉलर की स्पॉट बिक्री और 35.2 अरब डॉलर की फॉरवर्ड बिक्री शामिल है. यह कदम तब उठाया गया, जब अमेरिकी डॉलर की मांग में तेजी आई और विदेशी निवेशकों (FPI) ने भारी मात्रा में भारतीय शेयर और बॉन्ड मार्केट से पैसा निकाला. अक्टूबर में अकेले 10.9 अरब डॉलर की निकासी की गई, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ गया.
डॉलर की मांग और रुपये पर प्रभाव
अक्टूबर में अमेरिकी डॉलर का मूल्य 3.2% बढ़ा और वैश्विक बाजारों में उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं में औसतन 1.6% की गिरावट देखने को मिली. इसके बावजूद, भारतीय रुपया अपनी स्थिति बनाए रखने में सफल रहा और केवल 30 पैसे की गिरावट के साथ महीने के अंत में 84.06 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर RBI ने यह कदम नहीं उठाया होता, तो रुपया 85 रुपये प्रति डॉलर के स्तर से भी नीचे जा सकता था. नवंबर में भी डॉलर की मांग बनी रही, जिससे FPI ने 2.4 अरब डॉलर की और निकासी की.
रुपये की गिरावट के पीछे कारण
- भारतीय रुपये की गिरावट के पीछे कई कारण हैं:
- GDP ग्रोथ में गिरावट: जुलाई-सितंबर तिमाही में भारत की GDP 18 महीने के निचले स्तर 5.4% पर पहुंच गई.
- विदेशी निवेशकों का पलायन: अक्टूबर-नवंबर में विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से 1.16 लाख करोड़ रुपये के शेयर बेचे.
- अमेरिकी ब्याज दरों में वृद्धि: अमेरिकी डॉलर की मजबूती और बढ़ती ब्याज दरों ने निवेशकों का रुझान जोखिम भरे बाजारों से हटा दिया.
RBI की रणनीति
आरबीआई का हस्तक्षेप रुपये को बड़ी गिरावट से बचाने में प्रभावी रहा. इससे यह सुनिश्चित हुआ कि बाजार में नकदी की कमी न हो. हालांकि, अमेरिकी डॉलर की बढ़ती ताकत और विदेशी निवेशकों की वापसी भारतीय मुद्रा पर आगे भी दबाव बना सकती है.
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RBI ने 1 महीने में खर्च किये 44 अरब डॉलर, रूपये को गिरने से बचाने के लिए खेला बड़ा दांव, जानिए पूरी कहानी