डीएनए हिंदी: पहले कोरोना महामारी फिर रूस-यूक्रेन समेत कई देशों के बीच जारी टकराव के बीच दुनिया भारत को बड़ी उम्मीद के रूप में देख रहा है. भारत की लगातार मजबूत हो रही अर्थव्यवस्था और राजनीतिक इच्छाशक्ति ने इसे और बल दिया है. केंद्र सरकार द्वारा पिछले कुछ सालों में आम लोगों के लिए जो कल्याणकारी योजनाएं शुरू की गई हैं उनसे लोगों को काफी फायदा पहुंचा है. इस बात का जिक्र केंद्रीय वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) ने सितंबर 2022 की अपनी रिपोर्ट में भी किया है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2022-23 ने अभी आधा ही रास्ता पार किया है लेकिन देश का विकास और स्थिरता दुनिया के कई देशों के मुकाबले कम है. 

तेजी से विकास कर रहा भारत
आंकड़ों पर गौर करें तो भारत ने मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल से सितंबर तक पीएमआई कंपोजिट इंडेक्स (PMI Composite) पर 56.7 फीसदी ग्रोथ की जबकि दुनिया में इसका औसत 51 था. वहीं इसी दौरान अगर महंगाई दर (Inflation Rate in India) की बात करें तो यह 7.2 फीसदी देखने को मिली जबकि दुनिया भर में इसका औसत 8 फीसदी रहा. अर्थशास्त्री भी भारत की ग्रोथ को कई विकसित देशों के मुकाबले बेहतर बता चुके हैं.  

कई देशों के मुकाबले भारतीय रुपया मजबूत
डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में पिछले कुछ समय में गिरावट देखने को मिली है. इसके बाद भी जानकारी इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत बता रहे हैं. डीएक्सवाई (DXY) इंडेक्स की बात करें तो दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं में 8.9 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है. वहीं इसके मुकाबले भारतीय रुपये में 5.4 फीसदी की गिरावट देखी गई है.  बता दें कि DXY बास्केट में यूरो, यूके पाउंड, कैनेडियन डॉलर, जापानी येन, स्वीडिश क्रोनर और स्विस फ्रैंक शामिल हैं. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि भारतीय करेंसी दुनिया की बाकी करेंसी के मुकाबले ज्यादा नहीं गिरी है. 

रूस-यूक्रेन युद्ध से बदले हालात 
पिछले करीब एक साल से रूस और यूक्रेन के बीच स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. इस युद्ध का अप्रत्ययक्ष रूप से कई देशों पर असर पड़ा है. रूस पर कई देशों ने प्रतिबंध लगा दिया. यूरोपीय देशों के असर के कारण भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है. विकसित देशों की भी अर्थव्यवस्था इस युद्ध से प्रभावित हुई है. इसके बावजूद भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती से संभाला है. जानकारों का कहना है कि इस युद्ध को बातचीत की टेबल से समझाया जा सकता है लेकिन जब तक इसके नतीजे सामने नहीं आते हैं, इसका असर कई देशों पर देखने को मिलेगा. 

कोरोनाकाल में भी भारत ने मजबूती से संभाली अर्थव्यवस्था  
कोरोना महामारी का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है. मार्च 2020 की दूसरी छमाही में पूरी दुनिया इससे प्रभावित थी. कई देशों में लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था खराब होने लगी. इस मुश्किल दौर में भी भारत ने अच्छा प्रदर्शन किया है. इसका श्रेय मोदी सरकार की पिछली 8 साल की नीतियों को दिया जा रहा है. मोदी सरकार ने कई छोटे बड़े बदलाव किए जिनका असर भी देखने को मिल रहा है. जैम ट्रिनिटी (पीएम जन-धन खातों, आधार पहचान और मोबाइल कनेक्टिविटी) के माध्यम से डिजिटल क्रांति, जीएसटी, कर सुधार और पूंजी निवेश के माध्यम से विकास पर ध्यान केंद्रित जैसी कई ऐसी योजनाएं थी जिन्होंने अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढ़ने में मदद की है. 

जनधन योजना से लोगों को सीधा फायदा
पीएम मोदी ने शपथग्रहण के बाद 2014 में लालकिले से अपने संबोधन में सरकार योजनाओं की आम लोगों तक सीधा लाभ पहुंचाने की घोषणा की थी. इसके बाद पीएम जन-धन योजना की शुरुआत की गई. बैंकों को ज्यादा से ज्यादा अकाउंट्स की संख्या बढ़ाने के लिए पीएम जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) की शुरूआत करना. आधार के लिए और उन्हें मोबाइल कनेक्टिविटी के लिए बुनियादी ढांचा प्रदान करना. उन्होंने गरीबों के लिए बैंकिंग सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करने के लिए 15 अगस्त 2014 को योजना की घोषणा की. यह योजना उसी वर्ष 28 अगस्त को शुरू की गई थी. और अब पीएमजेडीवाई दुनिया का सबसे बड़ा वित्तीय समावेशन कार्यक्रम है, जिसमें 472 मिलियन से अधिक खातों में 1.75 लाख करोड़ रुपये से अधिक की जमा राशि है.

दुनिया का सबसे बड़ा फूड प्रोग्राम 
इसकी पूरी क्षमता को कोविड की अवधि के दौरान महसूस किया गया था, जब भारत को 24 मार्च, 2022 से 68 दिनों के कठिन लॉकडाउन का सामना करना पड़ा था. मोदी सरकार ने विधवाओं सहित लाखों वंचितों को तुरंत वित्तीय सहायता भेजी, एक बटन के दबाने से पैसा उनके खातों में पहुंच गया. मोदी की दूरदर्शिता ने लाखों लोगों को बचाया. यह प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत 800 मिलियन गरीबों को प्रति माह 5 किलोग्राम प्रति व्यक्ति मुफ्त अतिरिक्त खाद्यान्न से अधिक था. यह कार्यक्रम अभी भी अप्रैल 2020 से 3.90 लाख करोड़ रुपये से अधिक की लागत पर जारी है. यह दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम है जिसने न केवल भारतीय गरीबों को भुखमरी से बचाया, बल्कि मांग पैदा करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी उत्प्रेरित किया.

जीएसटी रेवेन्यू डेढ़ लाख करोड़ के पार
मोदी सरकार के लिए ऐसे सुधारों की राह हमेशा आसान नहीं रही. 1 जुलाई, 2017 को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) शासन शुरू करने के लिए इसकी आलोचना की गई. आलोचकों, मुख्य रूप से विपक्ष ने कहा कि इसे जल्दबाजी में लागू किया गया था. आज भारत के पास एक मजबूत रेवेन्यू फ्लो है, जो जीएसटी की स्थापना के बाद से दूसरी बार 1.50 लाख करोड़ रुपये को पार कर गई है और 1.40 करोड़ रुपये न्यू नॉर्मल है. एक समय था जब 1 लाख करोड़ रुपये पार करना बड़ी बात थी. जबकि जीएसटी ने व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए देश को एकीकृत किया, सरकार ने विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए कॉर्पोरेट टैक्स को काफी कम कर दिया. नतीजतन, जब चीन सहित सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं मंदी के कगार पर हैं, तो भारत को पिछले साल 84 अरब डॉलर का रिकॉर्ड विदेशी निवेश प्राप्त हुआ था. ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को 1,500 से अधिक पुराने कानूनों को हटाकर ईज ऑफ लिविंग तक बढ़ा दिया गया है. 

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How is India's economy standing firmly between Covid-19 and Russia-Ukraine war?
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कोविड और वॉर के बीच मजबूती से क्यों खड़ी है भारत की इकोनॉमी?
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कोरोना और युद्ध के हालात के बीच भी कैसे मजबूती से खड़ी है भारतीय अर्थव्यवस्था? ये हैं बड़े कारण