भारत की अर्थव्यवस्था इन दिनों सुस्त है. आर्थिक मोर्चे पर भारत को बड़ा झटका लगा है. विनिर्माण, उपभोग और खनन में गिरती वृद्धि दर के कारण वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही के दौरान भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि धीमी होकर 5.4% हो गई. इसकी तुलना में, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ), सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) द्वारा शुक्रवार, 29 नवंबर, 2024 को जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2023-24 की दूसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर 8.1% थी.
2024-25 की दूसरी तिमाही में भारत की जीडीपी में गिरावट का क्या कारण रहा?
सभी क्षेत्रों में विनिर्माण और खनन में सबसे ज्यादा गिरावट आई. विनिर्माण का सकल मूल्य वर्धित (GVA) पिछले साल की दूसरी तिमाही के 14.3% से गिरकर सिर्फ 2.2% रह गया. खनन और उत्खनन क्षेत्र ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र था जिसने इस बार -0.1% की नकारात्मक GVA दर दर्ज की. पिछले साल इसमें 11.1% की वृद्धि हुई थी. सभी संकटों के अलावा, बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवाओं की वृद्धि दर में भी भारी गिरावट आई, जो खपत वृद्धि में भारी गिरावट को दर्शाती है. यह पिछले साल के 10.4% से गिरकर इस साल सिर्फ़ 3.3% रह गई. यहां तक कि निर्माण क्षेत्र में भी पिछली बार की 13.6% की वृद्धि दर से इस बार मात्र 7.7% की महत्वपूर्ण गिरावट आई है.
जीडीपी की तरह ही, रियल जीवीए भी 2024-25 की दूसरी तिमाही में 5.6% पर आ गया, जबकि 2023-24 में यह 7.7% था. इस बार नॉमिनल जीवीए भी पिछले वर्ष की इसी तिमाही के 9.3% की तुलना में घटकर 8.1% रह गया. हालांकि, कृषि, पशुधन, वानिकी और मछली पकड़ने के क्षेत्र में सकारात्मक संकेत दिखे. इसकी वृद्धि दर दोगुनी से अधिक देखी गई, जो पिछले वर्ष की तुलना में इस तिमाही में 3.5% तक पहुंच गई, जबकि पिछले वर्ष यह केवल 1.7% थी.
GDP गिरने से लोगों पर क्या असर पड़ता है?
इस सवाल के जवाब में मध्य प्रदेश में शासकीय महाविद्यालय बरगवां में सहायक प्रध्यापक अर्थशास्त्र बुद्धसेन प्रजापति बताते हैं कि जीडीपी गिरने से देश की जनता और सरकार दोनों प्रभावित होते हैं. जीडीपी किसी देश की आर्थिक गतिविधियों को मापने का तरीका है. जब जीडीपी गिरती है तो लोगों की नौकरियों के हाथ से नौकरियां जाती हैं. सरकार के पास कम पैसे आते हैं क्योंकि लोगों के पास पैसे नहीं होते. लोग अधिक खर्च नहीं कर पाते और इसका असर सरकार पर भी पड़ता है. सरकार कल्याणकारी कामों पर खर्च नहीं कर पाती. इसके अलावा डीजल-पेट्रोल की कीमतों पर भी नेगेटिव असर पड़ता है. सरकार पर कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है. टैक्स आय को भरने के लिए सरकार निजी क्षेत्र से ब्याज लेती है. इस वजह से सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ता है.
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विकसित देशों की सोची-समझी साजिश भी हो सकती है?
सहायक प्रध्यापक अर्थशास्त्र बुद्धसेन प्रजापति यह भी बताते हैं कि अमेरिका, चीन ब्रिटेन या जापान जैसे विकसित देशों की सोची समझी चाल जो कैपिटल या शेयर बाजार के माध्यम से सीधे तौर पर प्रभावित करती है. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, कच्चा तेल या समाचार के माध्यम से किसी भी देश को प्रभावित कर सकते हैं, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से उभरती हुई विकसित अर्थव्यवस्था बन रही थी और विकास की श्रेणी में अग्रणी देश अन्य देशों को अपनी बराबरी में आने नहीं देना चाहते.
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