Benfits of Gandharaj: नींबू की कई किस्में होती हैं लेकिन गंधराज (Gandharaj Lemon) का कोई जवाब नहीं. गंधराज पेड़ के आसपास से गुजरते ही उसकी खुशबू आपकी नाक से होकर सीधे आत्मा के दरवाजे पर दस्तक देती है और इंसान अगले कई घंटों तक उसकी यादों में खोया रह सकता है. पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, त्रिपुरा आदि राज्यों में इसके जायके को लेकर लोगों में इसकी दीवानगी देखी जा सकती है. विश्व में सबसे ज्यादा नींबू का उत्पादन भारत में होता है. इनकी प्रमुख किस्मों में कागजी, प्रमालिनी, विक्रम, चक्रधर, पीकेएम-1 और साईं शर्बती लेकिन गंधराज की बात तो कुछ और ही है.
गंधराज की खुशबू बना लेती है दीवाना
गंधराज को बिहार के मिथिला क्षेत्र में जमीरी नींबू और अंगिका क्षेत्र में जमाली नींबू (Jamali Nimbu) कहा जाता है. अंगिका क्षेत्र में इसे संतरास भी कहा जाता है. तरास शब्द का प्रयोग अंगिका में बहुत जोरदार तरीके से प्यास लगने या गला सूखने के संदर्भ में किया जाता है. बंगाल में इसे गंधराज यानी 'खुशबू का राजा' कहा जाता है. वहीं जमाली शब्द जमाल से बना है और इसका मतलब सुंदरता से लगाया जाता है. गंधराज एक फूल का भी नाम है. यह कहा जाता है कि गंधराज पौधा अपने फूल के लिए बरसों इंतजार करता है.
जुबान पर देर तक डेरा जमा लेता है इसका स्वाद
एक सवाल आपके मन में उठ सकता है कि नींबू की बहुत सारी किस्में हैं लेकिन दूसरे नींबू से गंधराज का रूप, रंग और स्वाद अलग कैसे होता है? सामान्य नींबू पीले या हल्के हरे रंग का होता है लेकिन गंधराज गहरे हरे रंग का होता है. सामान्य नींबू का छिलका पतला जबकि इसका मोटा होता है. सामान्य नींबू का खट्टापन गंधराज की तुलना में ज्यादा धारदार या पतला होता है जबकि इसका स्वाद थोड़ा मोटा होता है. मतलब यह कि सामान्य नींबू का खट्टापन जितना तेजी से जुबान पर चढ़ता है उसी अनुपात में यह उतरता भी है लेकिन गंधराज का खट्टापन आपकी जुबान पर बहुत देर तक खुद को संभाल पाता है. अंग्रेजी के दो शब्दों के सहारे इसकी तीव्रता को समझा जा सकता है- स्टार्क (Stark) और सूथिंग (Soothing).
खाने में कहां-कहां होता है इसका प्रयोग
आमतौर पर दाल में नींबू निचोड़कर खाने का प्रयोग होता है. बंगालियों के घर मेहमानों की थालियां (Bengali Dishes) गंधराज नींबू के बिना अधूरी मानी जाती है. यह चलन आपको बिहार के मिथिला, अंगिका क्षेत्र से लेकर पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा तक में देखने को मिलता है. तंदूरी तरीकों से बने कई डिशेज पर नींबू निचोड़कर खाने का रिवाज रहा है. अंगीठी पर सिकी मछली, चिकन या मांस पर गंधराज को निचोड़कर खाने का चलन पश्चिमी बंगाल में आमतौर पर देखने को मिल जाता है. इस नींबू के शर्बत से अतिथियों के स्वागत की पुरानी परंपरा भी रही है. नींबू का काम स्वाद बढ़ाने के साथ खाने के क्रम में जीभ पर चढ़ चुके स्वाद को हटाना होता है और दूसरे व्यंजन के लिए जमीन तैयार करना भी होता है. नींबू अपनी प्रकृति में बहुत डॉमिनेटिंग होता है और यही वजह है कि जायका बढ़ाने और जायका उतारने दोनों ही के काम आता है. इस गुण के चलते इसको नशा उतारने के काम में भी प्रयोग में लाया जाता है.
बांग्लादेश के रंगपुरा में भी होती है बड़े पैमाने पर खेती
गंधराज की खेती पश्चिमी बंगाल (Production of Gandharaj in West Bengal) में बड़े पैमाने पर होती है. यह माना जाता है कि बांग्लादेश के रंगपुरा इलाके में सबसे उत्तम कोटि के गंधराज नींबू की खेती होती है और यही वजह है कि इसे रंगपुरा नींबू भी कहा जाता है. रंगपुरा नींबू की खेती बिहार के पूर्णिया में भी बड़े पैमाने पर होने लगी है.
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औषधीय गुणों से भरपूर गंधराज नींबू
गंधराज नींबू में अन्य नींबू की तरह विटामिन सी की प्रचुरता तो होती ही है लेकिन इसके पत्तों और छिलकों को भी औषधीय उपयोग में लाया जाता है. इसका सेवन रोगों को दूर भगाने और रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाने में किया जाता है. इसका उपयोग खट्टी डकार, मितली, उल्टी, पेट दर्द, मुंह से बदबू आने, मुंहासे, गला दर्द आदि को दूर करने में किया जाता है.
कैंसर की दवा बनाने के आता है काम
इस नींबू का उपयोग कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी (Treatment of cancer from Gandharaj Lemon) से लड़ने के औषधि निर्माण में किया जा रहा है. बिहार के पूर्णिया के हिमकर मिश्र बड़े पैमाने पर गंधराज नींबू उपजाते हैं. मुंबई की एक लॉजिस्टिक कंपनी ने हिमकर मिश्र से हर साल 50 हजार टन नींबू खरीदने की डील की है. मुंबई की इस कंपनी के जरिए पूर्णिया में उपजाया गया नींबू अमेरिका, हॉलैंड, जर्मनी और दुबई तक पहुंचाया जाएगा.
#फिशमैनबोलताहै
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ से परामर्श करें.)
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Benefits of Gandharaj Lemon: दुनिया यूं ही नहीं है गंधराज की दीवानी, यह है बड़े काम की चीज