Lachit Borphukan 400th Birth Anniversary: आज मेरे प्रिय योद्धाओं में से एक लचित बड़फुकान की 400वीं जयंती है. हर साल भारत की राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defence Academy) के सबसे बढ़िया कैडेट को एक मेडल मिलता है. मेडल का नाम लचित बड़फुकान मेडल है लेकिन उनके गृह राज्य असम से बाहर कम ही लोग लचित के बारे में जानते हैं. कहा जाता है कि लचित उनके पिता मोमई तामुली बोरबरुआ को रक्त में लथपथ मिले थे इसलिए उन्हें लचित (लहू से आवृत्त) नाम दिया गया. जिस वक़्त छत्रपति शिवाजी महाराज ने पश्चिम और दक्षिण भारत में औरंगज़ेब की नाक में दम कर रखा था उसी दौर में उत्तर-पूर्व भारत में औरंगज़ेब से अहोम साम्राज्य टक्कर ले रहा था और उसके सेनापति थे लचित.
ब्रह्मपुत्र नदी में मार्च 1671 में लचित ने ऐसी लड़ाई लड़ी थी जिसे पानी पर लड़ी गई सबसे महान लड़ाई समझा जाता है। इस लड़ाई को सरायघाट की लड़ाई कहा जाता है. असल में 17वीं सदी की शुरुआत में मुग़लों को ब्रह्मपुत्र घाटी की अहमियत का अंदाज़ा हो गया था. उन्होंने अहोम राजाओं के साथ दो लड़ाइयां लड़ी और 1639 में असुरार अली (असमिया में अली का मतलब पुल होता है) की संधि कर ली. तय यह हुआ था कि मुग़ल गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के दक्षिण में रहेंगे, लेकिन बादशाह बनने के बाद, साल 1661 में औरंगज़ेब ने ढाका में अपने सूबेदार मीर जुमला से असम पर कब्ज़ा करने को कहा.
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मीर जुमला ने बड़ी सेना के साथ असम पर चढ़ाई चढ़ी और अहोम राजधानी पर कब्ज़ा कर लिया.
नई संधि की शर्तों के तहत अहोम राजा जयध्वज सिंह को गुवाहाटी से मानस नदी तक ज़मीन और बहुत सारी रकम चुकानी पड़ी. कुछ ही समय बाद मीर जुमला और जयध्वज सिंह दोनों की मौत हो गई.
मुगलों को परास्त करने के लिए बदली रणनीति
नए राजा चक्रध्वज सिंह ने लचित को अपना बरफुकान (सेनापति) बनाया. लचित को पता था कि खुली लड़ाई में उनके लिए मुग़लों के सामने टिकना संभव नहीं होगा. ऐसे में लचित ने गुरिल्ला लड़ाई शुरू की और मुग़लों को परेशान कर दिया. साल 1667 तक उन्होंने कई किलों पर भी फिर कब्ज़ा कर लिया, लेकिन एक वक़्त के बाद चक्रध्वज सिंह के दबाव में आकर लचित को 1669 ईसवीं में मुग़लों पर मैदान में हमला करना पड़ा. अहोम सेना को मुगल घुड़सवार सेना ने बुरी तरह हराया और इस लड़ाई में लचित भी घायल हो गए.
औरंगज़ेब के सेनापति और आमेर के राजा राम सिंह अहोम राजा चक्रध्वज सिंह पर फिर से साल 1639 की स्थिति मानने का दबाव बनाने लगे. इस बीच चक्रध्वज सिंह की भी मौत हो गई और उनके भाई उदयादित्य सिंह राजा बने. जब लंबे समय के बाद भी बातचीत नाकाम हो गई तो मार्च 1671 में राम सिंह 40 बड़ी नावों के साथ ब्रह्मपुत्र में गुवाहाटी की तरफ़ बढ़ने लगे. गुवाहाटी पहुंचकर ब्रह्मपुत्र संकरी हो जाती है, ऊपर चढ़ती सेना के लिए इसका मतलब था बहुत तेज़ पानी का सामना करना.
मुगलों की सेना से लोहा लेने के लिए मामा को दी मौत की सजा
मुग़ल सेना पैदल गुवाहाटी में न घुस सके इसलिए लचित ने किले की मरम्मत शुरू करवाई. यह कहा जाता है कि इसी दौरान एक अहम परकोटे की मरम्मत का काम उन्होंने अपने मामा को सौंपा और अगली सुबह तक काम पूरा करने को कहा. मामा ने थकान का बहाना बनाकर काम पूरा नहीं किया, ग़ुस्से में लचित ने मामा का सिर धड़ से अलग कर दिया. इस जगह को मोमाई कोटा गढ़ (जहां मामा का सिर काट दिया गया वह गढ़) कहा जाता है.
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परिस्थितियां मुग़लों के लिए ठीक नहीं थी, उनकी घुड़सवार सेना को उतारने के लिए ज़मीन नहीं थी और आपसी झगड़े भी थे लेकिन अहोम सेनापति लचित बीमार थे और हार के बाद उनकी सेना का मनोबल भी टूट चुका था.
बीमार लचित ने सराय घाटी में मोर्चा लिया
लड़ाई की शुरुआत में मुग़ल सेना अहोम सेना पर भारी पड़ रही थी. किले में बैठे बीमार लचित ने जब देखा कि कुछ अहोम नावें वापस मुड़ रही हैं तो उन्होंने सेना की अगुवाई करने का फ़ैसला कर लिया. लचित ने सिर्फ़ सात नावों के साथ मुग़ल सेना पर धावा बोल दिया. लचित के आने से सैनिकों में ज़बरदस्त जोश आ गया. मुग़ल सेना के लिए बड़ी नावों को मोड़ना मुश्किल था. वहीं लचित की छोटी-छोटी नावों ने मुग़ल सेना पर तीन तरफ़ से हमला किया. दिन का अंत होते-होते मुग़लों के तीन बड़े अमीर और 4,000 सैनिक या तो मारे जा चुके थे या घायल थे. यह मुग़लों के लिए बड़ी हार थी, जो उन्हें मैदानों में नहीं एक नदी में मिली.
हार के बाद मिर्ज़ा राजा राम सिंह ने औरंगज़ेब को लिखा, “हर असमी सैनिक नाव चलाने, तीर चलाने, खाई खोदने, और बंदूक-तोप चलाने में माहिर है. मैंने भारत में किसी सेना में ऐसा नहीं देखा. एक ही आदमी सारी सेनाओं का नेतृत्व करता है. मुझे मोर्चे में कहीं भी कोई कमी नहीं दिखाई दी."
सरायघाट की लड़ाई के सिर्फ़ एक साल बाद लचित की मौत हो गई. दुख इस बात का है कि लचित जैसे महान योद्धा को वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हक़दार थे.
(अनुराग शर्मा की भारतीय संस्कृति में गहरी रुचि है. उनसे फ़ेसबुक पर facebook.com/HinduNamesOnline, YouTube पर उनके चैनल HinduNames और ट्विटर पर @Hindihainham हैंडल पर सम्पर्क किया जा सकता है. यह लेख अनुराग शर्मा की फेसबुक से साभार लिया गया है. लेख में इस्तेमाल की गई तस्वीर गुवाहाटी में स्थित लचित के स्मारक की है. )
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