डीएनए हिंदी: मापन्ना मल्लिकार्जुन खड़गे अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, विधिवत निर्वाचित अध्यक्ष. वह दक्षिणात्य दलित नेता हैं. उम्र के मान से सयाने. कर्नाटक उनका गृहराज्य है. पार्टी के 137 वर्षों के आरोह-अवरोह भरे इतिहास में वह छठवीं शख्सियत हैं, जो मतदान के जरिये चुनी जाकर संगठन के शीर्ष पद पर पहुंची है. दिलचस्प तौर पर इस मतदान की नौबत भी सदी में पहली बार आई. इसके पूर्व संगठन के शीर्ष पद के लिए चुनाव सन् 2000 में हुए थे, जब श्रीमती सोनिया गांधी ने लगभग एकतरफा मुकाबले में जितेंद्र प्रसाद को परास्त किया था.

उस प्रतिष्ठित द्वंद्व में श्रीमती गांधी को 7448 और प्रसाद को 94 मत मिले थे. इस हिलाज से खड़गे के मुकाबले शशि थरूर को एक हजार से अधिक मत मिलना गौरतलब है और कई जरूरी संदर्भों की ओर संकेत करता है. यह कांग्रेस में अभी तक शेष पारदर्शिता, लोकतंत्र और असहमति के प्रति सम्मान की ओर इंगित करता है और इसे रेखांकित करता है कि पार्टी की शक्तिशाली धुरी के खिलाफ खड़ा होना अपसारी (सेंट्रीफ्यूगल) बल को न्यौता देना नहीं है.

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80 वर्षीय खड़गे आज देश की सबसे पुरानी पार्टी के निर्वाचित अध्यक्ष हैं और राजनीति में आधी सदी बखूबी बिता चुके हैं. दलित समुदाय के खड़गे के खाते में लगातार 10 चुनाव जीतने का चमकीला कीर्तिमान दर्ज है, लेकिन डेक्कन के इस कर्मठ नेता के बारे में हम अधिक नहीं जानते. वह आधा दर्जन से अधिक भाषाएं जानते हैं. सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉलेज से सनद के बाद उन्होंने जस्टिस शिवराज पाटिल के दफ्तर में जूनियर की हैसियत से वकालत शुरू की और सन् 1969 में कांग्रेस से जुड़ गये. 

आज से 50 साल पहले वह पहले पहल कर्नाटक विधानसभा के लिए चुने गये. लगातार नौ चुनावों तक यह क्रम जारी रहा. पहले छात्रसंघ और फिर श्रमिक नेता के तौर पर सार्वजनिक जीवन में उतरे खड़गे देवराज अर्स, गुंडूराव, बंगरप्पा, वीरप्पा मोइली और एशएम कृष्णा की सरकारों में मंत्री रहे. दिलचस्प तौर पर वह काहिल या निठल्ले राजनेताओं की जमात में कभी शामिल नहीं रहे. सन् 1974 में उन्हें चर्म विकास निगम का चेयरमैन बनाया गया था. उन्होंने उपेक्षित और फटेहाल मोचियों की दशा सुधारने के लिए भरसक प्रयास किया. सन् 76 में वह प्राथमिक शिक्षा मंत्री बने तो उन्होंने करीब 16000 अजा-अजजा शिक्षकों की भर्ती का अपूर्व उपक्रम किया. 

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अगले दशक में वह राजस्व मंत्री बने तो उन्होंने भूमि-सुधारों को वरीयता दी. उन्होंने करीब 400 पंचाटों की स्थापना की और हजारों भूमिहीनों को भूमि की ठोस पहल. अलग-अलग समय में उन्होंने सहकारिता, यातायात और गृह विभाग भी संभाला. उपरोक्त सन्दर्भों का जिक्र इसलिए कि खड़गे हमेशा पार्टी के अनुशासित और समर्पित सिपाही रहे. खफगी या बगावत से उनका कोई नाता नहीं रहा. सन् 1999 और सन् 2004 में वह मुख्यमंत्री पद के सशक्त दावेदार थे. एक तो दलित, दूसरे अपराजेय, लेकिन बाजी जीती एसएम कृष्णा और धर्म सिंह ने. खड़गे ने चूं न की और दोनों की सरकारों में मंत्री रहे. अपनी क्षमता के चलते वह सन् 2005 में कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष बने और उन्होंने स्थानीय चुनाव में अच्छे नतीजे दिये. यह अकारण नहीं है कि सन् 2018 में वह लोकसभा का चुनाव हारे तो आलाकमान ने उन्हें राज्यसभा के लिए उपयुक्त माना.

नाजुक हालात में हुए इस सांगठनिक चुनाव में भी वह गांधई-नेहरू परिवार के घोषित या अधिकृत प्रत्याशी नहीं थे, लेकिन यह धारणा या संदेश चौतरफा फैल चुकी थी कि खड़गे गांधी-नेहरू की ‘च्वॉइस’ या पसंद हैं. देखना बस यह था कि शशि थरूर की ‘चुनौती’ के पीछे कितने लोग खड़े होते हैं. यह देखना इस नाते भी मानीखेज था कि उनके मुकाबले शशि थरूर अपेक्षाकृत युवा, बेहतर वक्ता, अधिक चर्चित व सुपरिचित थे.

—डॉ. सुधीर सक्सेना
लेखक ने माया पत्रिका के ढाई दशक तक संपादन किया. अब दुनिया इन दिनों पत्रिका के संपादक हैं.

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mallikaarjun khadge biography know political career and life by sudhir saxena
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लगातार 10 चुनाव जीतकर बनाया था कीर्तिमान, मल्लिकार्जुन खड़गे के बारे में कितना ज
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मल्लिकार्जुन खड़गे
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लगातार 10 चुनाव जीतकर बनाया था कीर्तिमान, मल्लिकार्जुन खड़गे के बारे में कितना जानते हैं आप?