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Anurag
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पत्रकारिता में 25 वर्ष से ज्यादा वक्त गुजारा. झारखंड से प्रकाशित दैनिक देशप्राण से पत्रकारिता की शुरुआत कर प्रभात खबर के धनबाद संस्करण का प्रभार संभाला. दिल्ली के नवभारत टाइम्स में रहते हुए गाजियाबाद, नोएडा, गुड़गांव और फरीदाबाद संस्करणों की लॉन्चिंग में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. नोएडा से प्रकाशित अमर उजाला और जनसत्ता में महत्त्वपूर्ण जिम्मेवारियों का निर्वहन. इस बीच रांची के दैनिक भास्कर की लॉन्चिंग टीम का हिस्सा रहा. वेबसाइट के लिहाज से न्यूज18 हिंदी की नौकरी पहली रही. इन संस्थानों में रहते हुए खबरों की भाषा, उसके कंटेंट, अखबार की प्लानिंग और ग्राफिक के क्षेत्र में विशेष भूमिका निभाई. रांची विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए किया और गुरु जांभेश्वर विश्वविद्यालय से एमएमसी. झारखंड में पला बढ़ा, दिल्ली एनसीआर में गुजर-बसर. साहित्य-संस्कृति और भाषा-बोलियों में खास रुचि. अपराध, सामाजिक सरोकार और साहित्य की खबरों पर विशेष निगाह. फिलहाल, डीएनए इंडिया हिंदी से संबद्ध.
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नेवले का आधा शरीर इस वजह से हो गया था सोने का, जानें महाभारत काल की यह रोचक कथा

Strange Mongoose: सोने के आधे शरीर वाले नेवले ने युधिष्ठिर को एक बेहद गरीब परिवार की कहानी सुनानी शुरू की. नेवले ने बताया कि कैसे इस परिवार ने अपनी रोटियां एक अनजान साधु की भूख मिटाने के लिए दे दिया. फिर कई दिन भूखे रहने की वजह से इस परिवार के सभी सदस्यों की मौत हो गई.

कौन था सोने के आधे शरीर वाला विचित्र नेवला? युधिष्ठर का दान-पुण्य क्यों पड़ा फीका? जानें पूरी कथा

Strange Mongoose: एक नेवला राजमहल के भंडार गृह से निकलकर धरती पर लोटने लगा. ऐसा उसने चार-पांच बार किया. यह विचित्र हरकत देख पांडवों को बड़ा आश्चर्य हुआ. धर्मराज युधिष्ठिर पशु-पक्षियों की भाषा समझते थे. वह उठे और भंडार गृह तक जाकर बोले- ‘हे नेवले, यह तुम क्या कर रहे हो? तुम्हें किस वस्तु की तलाश है?’

Online से सस्ती मिलती हैं Book Fair में किताबें, लेखकों से मिलने का भी मिलता है मौका

Online Shopping Vs Book Fair Shopping: मेले में आए पुस्तक प्रेमियों का कहना था कि यहां कई किताबें ऑनलाइन के मुकाबले सस्ती मिल जाती हैं, साथ ही साथ अपने प्रिय लेखकों से मुलाकात की भी संभावना रहती है. अगर वे मिल जाएं तो किताबों पर उनके साइन भी मिल जाते हैं. यह एक बड़ा आकर्षण होता है.

Gulzar Jnanpith Award: थोड़ा और 'गुलजार' हुआ भाषा को प्रोत्साहित करने वाला ज्ञानपीठ पुरस्कार

Gulzar Work As Lyricist: साल 2023 के ज्ञानपीठ पुरस्कार (Jnanpith Awards 2023) की घोषणा हो चुकी है. मशहूर गीतकार गुलजार और संस्कृत के विद्वान रामभद्राचार्य को यह सम्मान दिया जा रहा है.

अब AI astrologer बताएगा आपका भविष्य, नई दिल्ली के इन जगहों पर लगेंगे कियोस्क

AI Astrologer: नई दिल्ली के प्रगति मैदान के हॉल नंबर 7 में लगे 'नक्षत्र' में 'एआई एस्ट्रोलॉजर' के 3 कियोस्क लगे हैं. यहां आपको हींग से लेकर हर तरह के नग और कई-कई ज्योतिषियों के स्टॉल लगे हैं. यह प्रदर्शनी 18 फरवरी तक चलेगी.

बाल मंडप में कल्पनाओं की दुनिया को मिले पंख, अंतरिक्ष की उड़ान भरी बच्चों ने

Children's Pavilion:नेहरू तारामंडल ने सौर मंडल, ग्रहों, सूर्य, चंद्रमा और चंद्रयान मिशन के बारे में बच्चों से बात की. कार्यक्रम में वक्ताओं ने बच्चों के साथ समुद्री प्रदूषण के महत्त्व और अंतरिक्ष अन्वेषण के बारे में भी संवाद किया. इसी मंडप में 'ए टू जेड लोअर केस लेटर फॉर्मेशन' के बारे में बताया गया.

इस यहूदी बच्चे का साहस और संघर्ष आपको कर सकता है प्रेरित

Maxim Gorky: गोर्की का लिखा 'मेरा बचपन' के सारे चरित्र तत्कालीन संघर्षों और कठिनाइयों का ब्योरा पेश करने जैसे हैं. अपने अंतिम उपन्यास 'द लाइफ ऑफ क्लीम समगीन' में गोर्की ने पूंजीवाद के उत्थान और पतन की कहानी है. गोर्की ने इसे विकास का नाम दिया है.

क्यों रो रहा था वो घुंघराले बालों वाला यहूदी लड़का?

Maxim Gorky Story: कहने की जरूरत नहीं कि मैक्सिम गोर्की की आस्था मार्क्सवाद में गहरे थी. 'वह लड़का' कहानी भी आर्थिक विषमता की ओर इशारे करती है, मेहनतकश बच्चे के साहस का वर्णन करती है. यह वर्णन ऐसा है कि आप भी उत्साह से भर जाएं. पढ़ें 'वह लड़का' की दूसरी किस्त.

'वह लड़का' कितना करिश्माई है, बेजान मन में जान भर देने वाला - जानें कौन है वो

Maxim Gorky Story: मैक्सिम गोर्की का भरोसा मार्क्सवाद में रहा. 1884 में गोर्की का मार्क्सवादियों से परिचय हुआ और महज चार साल बाद यानी 1888 में गोर्की पहली बार गिरफ्तार किए गए. 1892 में गोर्की की पहली कहानी "मकर छुद्रा" छपी. गोर्की की शुरुआती रचनाओं में रोमांसवाद और यथार्थवाद का मेल दिखाई देता है.

प्रकाशकों के बीच उपेक्षित हैं आदिवासी, Book Fair में आदिवासी साहित्य लेकर मौजूद है सिर्फ एक प्रकाशक

Tribal Literature: हजार प्रकाशकों के मेले में आदिवासी साहित्य के साथ सिर्फ एक प्रकाशक मौजूद है. आदिवासी भाषाओं में उनका साहित्य छापने वाला प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन प्रगति मैदान के हॉल नंबर 1 में 'आदिवासी फर्स्ट नेशंस बुक अखड़ा' के नाम से मौजूद है. इनके पास 35 से 40 आदिवासी भाषाओं की किताबें हैं.