डीएनए हिंदी: उत्तराखंड 2022 में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के लिए पूरी तरह से तैयार है. राज्य की 70 विधानसभा सीटों पर होने वाला यह चुनाव भारतीय जनता पार्टी (BJP) हर हाल में जीतना चाहती है. शीर्ष नेतृत्व में यह साफ कर दिया है कि उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के चेहरे पर ही विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा. पुष्कर सिंह धामी के अलावा सतपाल महाराज, डॉक्टर हरक सिंह रावत, धन सिंह रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत चुनावी समर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
त्रिवेंद्र सिंह रावत भले ही मुख्यमंत्री के तौर पर अपने 5 साल के कार्यकाल को नहीं पूरा कर पाए हों लेकिन उनकी भूमिका चुनाव में बेहद महत्वपूर्ण होने वाली है. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाया है लेकिन पार्टी के कार्यकर्ता वे बने हुए हैं. उत्तराखंड में वे अब भी एक लोकप्रिय चेहरा हैं. ऐसे में पार्टी उन्हें भी चुनावों में अहम जिम्मेदारी देगी. वहीं तीरथ सिंह रावत भी एक अहम चेहरा होंगे, जिनका कार्यकाल महज 114 दिन का रहा. देखें किन 6 नेताओं के भरोसे बीजेपी सत्ता में वापस आने की कोशिश करेगी.
1. पुष्कर सिंह धामी
पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के मुख्यंमत्री हैं. पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. दरअसल केंद्रीय नेतृत्व त्रिवेंद्र सिंह रावत के काम से खुश नहीं था. पार्टी के कई खेमे उनके विरोध में उतर आए थे. विरोध को देखते हुए उनसे इस्तीफा मांगा गया और तीरथ सिंह रावत को सत्ता सौंपी गई. महज 114 दिन बाद तीरथ सिंह को भी संवैधानिक संकट की वजह से इस्तीफा देना पड़ा. फिर पुष्कर सिंह रावत मुख्यमंत्री बनकर आए. त्रिवेंद्र सिंह रावत खाटीमा, उधमसिंह नगर से विधायक हैं. 1990 से लेकर 1999 तक ये अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में रहे. 2002 से लेकर 2008 तक ये बीजेपी युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे. 2012 में पहली बार विधानसभा पहुंचे. 2017 में भी ये खाटीमा से विधायक चुने गए. पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में ही उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव बीजेपी लड़ेगी.
2. त्रिवेंद्र सिंह रावत
त्रिवेंद्र सिंह रावत की गिनती बीजेपी के दिग्गज नेताओं में होती है. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ 18 मार्च 2017 को ली थी. मुख्यमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल 10 मार्च 2021 को खत्म हो गया. त्रिवेंद्र सिंह रावत बीजेपी की अंदरुनी राजनीति का शिकार हुए. बीजेपी में ही कई खेमे उनके खिलाफ हो गए थे. मजबूरन केंद्रीय नेतृत्व को उन्हें हटाना पड़ा. त्रिवेंद्र सिंह रावत, जमीनी स्तर के नेता रहे हैं. संगठन के भीतर मजबूत पकड़ मानी जाती है. ऐसे में मुख्यमंत्री पद से हटाकर बीजेपी ने उन्हें पूरी तरह से साइडलाइन नहीं किया है. उनकी भी चुनाव में एक अहम भूमिका होने वाली है. वे अब संगठन में रहकर पार्टी को मजबूत करेंगे.
3. सतपाल महाराज
सतपाल महाराज उत्तराखंड के दिग्गज नेताओं में शुमार हैं. जब तीरथ सिंह रावत ने इस्तीफा दिया तब मुख्यमंत्री पद के लिए इनके नाम की भी चर्चा हो रही थी हालांकि सहमति पुष्कर सिंह धामी के नाम पर बनी. राज्य की राजनीति में इनका कद महत्वपूर्ण है. सतपाल धामी कैबिनेट में मंत्री हैं. उनके पास पीडब्लूडी, टूरिज्म और संस्कृति मंत्रालय है. 2 बार ये सांसद भी रह चुके हैं. 2017 में विधायक बने. चौबट्टाखाल से विधायक सतपाल की गिनती कद्दावर नेताओं में होती है. अपनी लोकप्रियता की वजह से इन्हें भी बीजेपी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे सकती है.
4. डॉक्टर हरक सिंह
डॉक्टर हरक सिंह भी उत्तराखंड के कद्दावर बीजेपी नेताओं में गिने जाते हैं. हरक सिंह रावत के पास वन मंत्रालय है. हरक सिंह रावत कोटद्वार विधानसभा सीट से विधायक हैं. 1991 में ये पहली बार पुरी से विधानसभा चुनाव जीते थे और यूपी के सबसे कम उम्र के मंत्री बने थे. इन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा कांग्रेस के साथ शुरू की थी. डॉक्टर हरक सिंह रावत की अपने क्षेत्र में मजबूत पकड़ है यही वजह है कि वे लगातार जीतते रहे हैं. ऐसे में उनकी कैंपेनिंग पर भी लोगों की नजर है.
5. धन सिंह रावत
धन सिंह रावत, धामी कैबिनेट के महत्वपूर्ण चेहरों में से एक हैं. तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद इन्हें भी मुख्यमंत्री बनाने को लेकर अटकलें लगाई जा रही थीं. धन सिंह रावत के पास सहकारिता, उच्च शिक्षा, दुग्ध विकास और प्रोटोकॉल विभाग है. धन सिंह रावत पुरी, गढ़वाल क्षेत्र से आते हैं. धन सिंह रावत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े रहे हैं. सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर धन सिंह लगातार अरसे से सक्रिय रहे हैं. 2001 में संघ से इन्होंने बीजेपी की सदस्यता ली. समाजिक मुद्दों को लेकर लगातार से आंदोलनरत रहे हैं. 2012 में ये बीजेपी उत्तराखंड के उपाध्यक्ष थे. अलग उत्तराखंड राज्य को लेकर ये 2 बार जेल भी जा चुके हैं. जमीनी नेता होने की वजह से धन सिंह रावत पर भी विधानसभा चुनावों में बीजेपी अहम जिम्मेदारी डाल सकती है.
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