डीएनए हिंदीः किसान आंदोलन भले ही खत्म हो गया हो लेकिन सरकार के प्रति किसानों के मन में अभी भी नाराजगी दिखाई दे रही है. इसी नाराजगी को विपक्षी दल अवसर के रूप में देख रहे हैं. अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी (SP) और राष्ट्रीय लोकदल (RLD) का गठबंधन हो चुका है. आरएलडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) किसान आंदोलन को उत्तर प्रदेश में पार्टी के जनाधार को मजबूत करने के अवसर के तौर पर देख रहे हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी का मजबूत वोट बैंक रहा है. इसे दोबारा हासिल करने के लिए जयंत चौधरी पूरा दम लगा रहे हैं.
आरएलडी क्यों उत्साहित?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी का खासा प्रभाव रहा है. किसान और खास तौर पर जाट वोट बैंक पार्टी को कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में पहुंचाता रहा है. किसान आंदोलन और लखीमपुर खीरी जैसे मामलों से बीजेपी के खिलाफ पैदा हुई नाराजगी को पार्टी अपने लिए फायदे के तौर पर देख रही है. यही कारण है कि आरएलडी सीटों के बंटवारे को लेकर सपा के सामने झुकने को तैयार नहीं है. पहले खबरें सामने आ रही थीं कि आरएलडी और सपा में 36 सीटों को लेकर सहमति बनी है, वहीं अब आरएलडी 40 सीटें मांग रही है. आरएलडी के कुछ उम्मीदवार सपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ सकते हैं.
लगातार गिर रहा पार्टी ग्राफ
आंकड़ों की बात करें तो आरएलडी का ग्राफ चुनाव-दर-चुनाव नीचे गिर रहा है. 1996 में आरएलडी ने पहली बार उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव लड़ा. इस चुनाव में 38 सीटों पर पार्टी ने अपने प्रत्याशी उतारे जिनमें 8 ने जीत दर्ज की. 2002 में आरएलडी ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. इसमें पार्टी ने 38 में से 14 सीटों पर जीत दर्ज की. 2007 के चुनाव में पार्टी ने यूपी की 254 सीटों पर प्रत्याशी उतारे, हालांकि इनमें 10 सीटों पर ही पार्टी को जीत मिली. 2012 के विधानसभा चुनाव में 46 में से 9 सीटों पर जीत मिली. 2017 के विधानसभा चुनाव में आरएलडी ने 171 सीटों पर उम्मीदवार उतारे लेकिन मोदी लहर में वह मजह एक सीट पर सिमट गई.
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