डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को कमजोर या "नुकसान" पहुंचाने वाला माना जाता है लेकिन आजमगढ़ की मुबारकपुर सीट पर स्थिति अलग है. मुबारकपुर विधानसभा सीट  पर AIMIM को "गंभीर प्रतिद्वंद्वी"माना जा रहा है. AIMIM सालों से यहां पर मजबूत पैठ रखने वाली बसपा और सपा के लिए चुनौती पेश कर रही है.

इस सीट को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का ‘गढ़’ माना जाता है जिसे वर्ष 1996 से यहां पर हराया नहीं जा सका है. 2002 के चुनाव को छोड़कर समाजवादी पार्टी (सपा) यहां दूसरे स्थान पर रहती आई है. 2002 के चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी यहां दूसरे स्थान पर थी. AIMIM ने इस सीट से शाह आलम उर्फ ‘गुड्डू जमाली’ को अपना प्रत्याशी बनाया है, जो लगातार दो बार बसपा के टिकट पर यहां से चुनाव जीतते रहे हैं. वहीं सपा ने अखिलेश यादव को प्रत्याशी बनाया है जो पिछले दो चुनावों में दूसरे स्थान पर रहे थे.

इस निर्वाचन क्षेत्र के लोगों का कहना है कि AIMIM नहीं बल्कि आलम मजबूत उम्मीदवार हैं जिनकी वजह से सपा और बसपा के मुकाबले में AIMIM ‘‘गंभीर दावेदार’’ के तौर पर उभरी है. भाजपा ने इस मुस्लिम बहुल सीट से अरविंद जयसवाल को अपना प्रत्याशी बनाया है. भाजपा समर्थकों को उम्मीद है कि मुस्लिम मतों के तीन प्रत्याशियों में बंटने की वजह से उनकी जीत संभव है.

सपा प्रत्याशी अखिलेश यादव लोगों को बिहार और पश्चिम बंगाल चुनाव की याद दिलाते हुए कहते हैं कि बिहार में AIMIM के पक्ष में मतों का विभाजन होने का नतीजा रहा कि भाजपा की जीत हुई जबकि पश्चिम बंगाल जहां पर ओवैसी की पार्टी को अधिक समर्थन नहीं मिला, वहां भाजपा की हार हुई.

उन्होंने जोर देकर कहा कि उत्तर प्रदेश में जनता अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की सरकार चाहती है और इसलिए राज्य और मुबारकपुर में AIMIM का कोई स्थान नहीं है. अखिलेश यादव ने कहा, "यह चुनाव विचारधारा और विकास का है. मैं धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक सिद्धांतों में विश्वास करता हूं, मैं समाजवादी हूं, अखिलेश यादव की सरकार में चारों तरफ विकास हुआ था जबकि भाजपा के शासन में वित्तीय, सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं में वृद्धि हुई है."

आलम ने उत्तर प्रदेश में नई पार्टी से चुनाव लड़ने की वजह से जीत की संभावना क्षीण होने की धारणा को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने दो बार जीत दर्ज की है और उनका चुनाव चिह्न अलग हो सकता है लेकिन वह जीत रहे हैं और लोग भी उन्हें जानते हैं. उन्होंने कहा, "इससे फर्क नहीं पड़ता कि AIMIM जीत रही है या नहीं लेकिन मैं खुद को जीतने के लिए सक्षम मानता हूं. मैंने पूरी ईमानदारी से काम किया है और लोगों की सेवा की है जो मेरा और AIMIM का समर्थन कर रहे हैं."

आपको बता दें कि मुबारकपुर विधानसभा में कुल करीब 3,17,000 मतदाता है जिनमें से करीब 1,10,000 मुस्लिम, 78 हजार दलित, 65 हजार यादव मतदाता हैं. इस सीट पर मुस्लिम विभाजित प्रतीत हो रहे हैं क्योंकि कई मुस्लिम आलम का उनके संसाधन युक्त होने और कोविड-19 महामारी की दौरान मदद के लिए समर्थन करते दिख रहे हैं जबकि अन्य सपा प्रत्याशी का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि सपा ही भाजपा को सत्ता में दोबारा आने से रोक सकती है.

मुस्लिमों में एक धड़ा ऐसा भी है जिसकी निष्ठा बसपा के प्रति बनी हुई है लेकिन ऐसे लोगों की संख्या में कमी आई है. वहीं, दलित समुदाय मजबूती से बसपा के समर्थन में खड़ा दिखाई देता है. बसपा समर्थक अमीरचंद कहते हैं, इस निर्वाचन क्षेत्र के दलित किसी और ओर नहीं देखते और इस बार भी वही स्थिति है. उन्होंने जोर देकर कहा कि वे केवल ईवीएम मशीन में एक ही चुनाव चिह्न देखते हैं और वह है हाथी (बसपा का चुनाव चिह्न) है. 

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इस सीट पर ओवैसी की पार्टी ने बिगाड़ा दिग्गजों का गणित
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