डीएनए हिंदी: राजनीति में युवा चेहरे अक्सर हाशिए पर होते हैं. युवता और प्रौढ़ता के बीच एक महीन सी रेखा होती है जिसे अनदेखा कर दिया जाता है. सियासत में युवा बच्चे समझे जाते हैं और प्रौढ़ युवा. गुजरात ने साल 2015 से 2017 के बीच युवा नेताओं की धमक देखी थी. हार्दिक पटेल (Hardik Patel), जिग्नेश मेवाणी (Jignesh Mevani) और अल्पेश ठाकोर (Alpesh Thakor), तीन ऐसे नेता उभरकर सामने आए थे कि लगा अब सूबे की सियासी बागडोर युवा नेताओं के हाथ में होगी.
प्रौढ़ और अनुभवी नेताओं की सूझबूझ ने ऐसी पलटी मारी है कि यही तीनों नेता एक बार फिर हाशिए पर चले गए हैं. न हार्दिक पटेल के अच्छे दिन चल रहे हैं न जिग्नेश मेवाणी के. अल्पेश ठाकोर की भी सियासी पारी बहुत आगे नहीं जा पाई है. एक वक्त लगा था कि अब गुजरात की दशा और दिशा युवा चेहरे तय करेंगे लेकिन समय ने साबित कर दिया कि राजनीति में अनुभव सबसे जरूरी फैक्टर है.
ऐसा नहीं है कि इन युवाओं की जनता पर पकड़ कमजोर हो गई है, बस इन युवाओं ने अपनी लहर को संभालना नहीं सीखा. हार्दिक पटेल पाटीदारों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे थे. हार्दिक पटेल कांग्रेस में किनारे कर दिए गए हैं. जिग्नेश मेवाणी का भी हाल कुछ ऐसा है. अल्पेश जिस धारा की ओर मुड़े हैं वहां दिग्गजों के पर कुतर दिए गए हैं, वह तो अभी उड़ना सीख रहे हैं.
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3 नेता, 3 वर्गों पर पकड़
जिग्नेश मेवाणी गुजरात के दलितों की आवाज बनकर आए थे. अल्पेश ठाकोर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के नेता के तौर पर खुद को स्थापित कर रहे थे. सियासी समीकरण बदले तो सभी दरकिनार हो गए. ज्यादा दिन नहीं हुए, ठीक 5 साल पहले 2017 के विधानसभा चुनावों में शायद ही कोई ऐसा न्यूज चैनल रहा हो जहां इन तीनों नेताओं की तिकड़ी न पहुंची हो. चुनाव इस बार भी हैं.
जिग्नेश मेवाणी को क्या कांग्रेस में मिल रहा है भाव?
जिग्नेश मेवाणी गुजरात की वडगाम विधानसभा सीट से विधायक हैं. कांग्रेस नेता जिग्नेश मेवाणी सूबे के प्रमुख दलित चेहरों में शुमार हैं. वह भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खिलाफ हमेशा मुखर रहे हैं. एक केस के सिलसिले में जिग्नेश को गुजरात के पालनपुर सर्किट हाउस से गिरफ्तार कर लिया गया है. केस असम में दर्ज हुआ है. 42 साल के जिग्नेश मेवाणी राज्य और केंद्र सरकार की सूबे में हमेशा मुश्किलें बढ़ाते रहे हैं.
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साल 2016 में पहली बार जिग्नेश मेवाणी चर्चा में आए थे. उन्होंने उना में दलित उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था. उना में कुछ दलित युवाओं ने मृत गाय की चमड़ी को निकाला था. गौ रक्षक समिति के कुछ सदस्यों ने कथित तौर पर उन्हें सड़क पर पीटा था. पिटाई का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था. जिग्नेश मेवाणी ने बीजेपी सरकार को घेरते हुए आंदोलन खड़ा कर दिया था. लोग सड़कों पर उतर आए थे. इस आंदोलन में उन्हें एक बड़े तबके का समर्थन मिला था. दलितों ने उन्हें मसीहा मान लिया था. अपने पहले ही चुनाव में जिग्नेश ने धूम मचा दिया था.
जिग्नेश मेवाणी की गिरफ्तारी के बाद भले ही पार्टी उनके समर्थन में उतर आई हो और कानूनी मदद की पेशकश करने में जी-जान लगा दी हो लेकिन पार्टी में उनका कद बढ़ा नहीं है. कांग्रेस ने न ही उन्हें सूबे में बहुत महत्वपूर्ण पद भी दिया है. जिग्नेश ने खुद को प्रांसगिक बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच पार्टी की कमान अपने हाथों में ही रखी है.
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हालांकि हार्दिक पटेल की तरह जिग्नेश मेवाणी की उपेक्षा भी कांग्रेस ने नहीं की है. बनासकंठा जिले की 9 विधानसभा सीटों में से 6 पर कांग्रेस पार्टी का कब्जा है. दरअसल इन सीटों पर दलित वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. जिग्नेश 2016 से ही दलित वर्ग के बड़े नेताओं में शुमार हो गए हैं. कांग्रेस उनकी उपेक्षा भी नहीं कर सकती लेकिन उन्हें ज्यादा महत्व देने की भी पक्षधर नहीं है. गुजरात में 7 फीसदी आबादी दलित है जिन्हें लुभाने के लिए बीजेपी के पास चेहरा नहीं है वहीं कांग्रेस के पास जिग्नेश मेवाणी हैं.
क्या कहती है अल्पेश ठाकोर की सियासी उड़ान?
हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर के सियासी सफर की असली शुरुआत कांग्रेस से ही हुई. अल्पेश ठाकोर ने सबसे पहले कांग्रेस का हाथ थामा. उन्होने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की. उनका थोड़े ही दिनों में कांग्रेस से मोहभंग हुआ तो बीजेपी का हाथ थाम लिया. अल्पेश ठाकोर बीजेपी से भी बहुत खुश नहीं हैं. उन्हें अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए ठाकोर सेना का नाम जपना पड़ रहा है. वह अपनी ही पार्टी के समानांतर गुजरात क्षत्रिय ठाकोर सेना का भी नेतृत्व कर रहे हैं. बीजेपी पर दबाव लगातार बनाया है कि अगर साथ छोड़ा तो समर्थन छोड़ेंगे. हालांकि बीजेपी उन्हें ज्यादा भाव देती नजर नहीं आ रही है.
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क्या है हार्दिक पटेल का हाल?
हार्दिक पटेल पाटीदार आंदोलन के बाद पाटीदारों के सबसे बड़े नेता बन गए हैं. हार्दिक पटेल पर कई केस दर्ज हैं. हाल ही में उन्होंने कहा था कि पार्टी का प्रदेश नेतृत्व उन्हें परेशान कर रहा है और राज्य के कांग्रेस नेता चाहते हैं कि वह पार्टी छोड़ दें. उन्होंने कहा था कि उनकी ओर से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी इस स्थिति के बारे में कई बार अवगत कराया गया, लेकिन दुख की बात है कि कोई निर्णय नहीं हुआ.
ऐसी स्थिति में खुद हार्दिक पटेल भी कांग्रेस में अपने भविष्य पर बहुत निश्चिंत नहीं हैं. वह बीजेपी की भी तारीफ कर चुके हैं. गौर करने वाली बात यह है कि वह गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं लेकिन पार्टी में उनकी गैरमौजूदगी में स्टेट लेवल की बैठकें तक हो जा रही हैं. ऐसे में गुजरात के तीनों युवा नेताओं का सियासी भविष्य अभी अधर में ही लटकता दिख रहा है. देखने वाली बात यह है कि उनकी राजनीतिक पार्टियों में आने वाले विधानसभा चुनाव 2022 में कैसी भूमिका दी जाती है.
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Gujarat Election: अल्पेश, जिग्नेश और हार्दिक पटेल, गुजरात के 3 धाकड़ युवा चेहरे अपनी ही पार्टी में हाशिए पर क्यों हैं?