डीएनए हिंदी: Goa Election को लेकर राष्ट्रीय मीडिया में कम ही खबरें आ रही हैं. इसकी वजह है कि यह समुद्री प्रदेश बेहद छोटा है और इसके नतीजों को देश की राजनीति में कोई बड़े संकेत नहीं समझा जाने वाला है. हालांकि, गोवा की लड़ाई इस बार दिलचस्प है क्योंकि TMC और AAP भी मैदान में. ममता बनर्जी पड़ोसी राज्यों बिहार, झारखंड और ओडिशा को छोड़कर गोवा पहुंच गई हैं. इसी तरह से इस ईसाई बहुल प्रदेश में बीजेपी और संघ की मजबूत पकड़ के पीछे की कहानी भी दिलचस्प है.
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गोवा का यह है गणित
गोवा की 25% आबादी ईसाई और 8% आबादी मुस्लिम. गोवा में ईसाई बहुल वोट वाले 10 विधानसभाएं हैं और प्रदेश में कुल 40 सीटें हैं. इसके बावजूद भी 2012 में गोवा में बीजेपी सरकार बनाने में सफल रही थी और 2017 में कांग्रेस से कम सीटें लाकर भी बीजेपी ने गठबंधन के साथ मिलकर सरकार बना ली थी और 5 साल चलाई भी.
ईसाई बहुल वोटों पर चर्च का है प्रभाव
गोवा के ईसाई बहुल वोटों पर चर्च का खासा प्रभाव है. माना जाता है कि चर्च की ओर से स्पष्ट तौर पर किसी को वोट देने या नहीं देने का आदेश नहीं दिया जाता है लेकिन इशारों में सारी बात स्पष्ट कर दी जाती है. अमूमन इसका असर भी साफ दिखता है. यही वजह है कि चुनाव के दौरान प्रत्याशी समर्थन जुटाने के लिए चर्च का चक्कर लगाते हैं.
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गोवा में सांस्कृतिक पहचान की बात कर बीजेपी ने बनाई जगह
गोवा में संघ और बीजेपी को मजबूत बनाने में दिवंगत बीजेपी नेता मनोहर पर्रिकर को खास तौर पर याद किया जाता है. इस ईसाई बहुल प्रदेश में संघ ने ईसाई आबादी को भी सांस्कृतिक पहचान से जोड़ने की कवायद की. बार-बार बीजेपी और संघ की नेताओं की ओर से स्थानीयता और संस्कृति की बातें की जाती रही हैं. इसके अलावा, गोवा में संघ की ओर से मछुआरों और ऐसे ही छोटे समुदायों के लिए कई सहायता कार्यक्रम भी चलाए गए.
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पर्रिकर ने कहा था, 'गोवा के ईसाई ब्राजील कैथलिक जैसे नहीं है'
दिवंगत बीजेपी नेता मनोहर पर्रिकर ने न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में इस बात को खास तौर पर उभारा है. पर्रिकर ने कहा था, 'गोवा के कैथलिक ईसाई सांस्कृतिक रूप से हिंदू ही हैं. उनका रहन-सहन, खान-पान, बोली-भाषा, लोककथाएं अलग नहीं हैं. गोवा के ईसाई ब्राजील के कैथलिक की तरह नहीं है.'
गोवा की परिस्थितियां भी अलग
गोवा की परिस्थितियां भी बाकी देश से अलग हैं. यह छोटा समुद्री प्रदेश मुख्य रूप से टूरिज्म उद्योग पर आधारित है. इसके अलावा यहां खनन उद्योग और कृषि, मछली पालन जैसे काम आजीविका के साधन हैं. इस वजह से भी बीजेपी और संघ की रणनीति यहां हमेशा समावेशी रही है. यहां उग्र राजनीति के साथ आगे बढ़ने के बजाय संघ ने ईसाई समुदाय को सांस्कृतिक और आर्थिक सिरे से जोड़कर रखने की कोशिश की है. यही वजह है कि 2017 के चुनावों में बीजेपी ने 8 ईसाई नेताओं को टिकट दिया था.
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