डीएनए हिंदी: कानपुर कैंट सीट प्रदेश की पुरानी और चर्चा में रहने वाली सीट रही है. मुस्लिम बहुल इस सीट पर 1991 से 2012 तक बीजेपी का कब्जा था. 2017 में मोदी-योगी की लहर के बावजूद कांग्रेस उम्मीदवार ने बाजी मार ली थी. उस बार भी कांग्रेस ने विधायक सोहिल अख्तर को ही उम्मीदवार बनाा है. बीजेपी ने भी हार के बाद भी रघुनंदन सिंह भदौरिया को ही टिकट दिया है.
कांग्रेस और बीजेपी के बीच माना जा रहा मुकाबला
कानपुर कैंस से यूं तो सपा गठबंधन, आम आदमी पार्टी और बीएसपी ने भी अपने उम्मीदवार दिए हैं. मुख्य मुकाबला इस बार भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है. बीजेपी ने पूर्व विधायक रघुनंदन सिंह भदौरिया पर ही भरोसा दिखाया है. वह 2012 में यहां से विधायक चुने गए थे. भदौरिया पर भरोसा जताने की वजह है कि पिछले चुनाव में उनकी हार का अंतर बहुत ज्यादा नहीं था. कांग्रेस ने सोहिल अख्तर को टिकट दिया है. एसपी गठबंधन ने मोहम्मद हसन रूमी को उम्मीदवार बनाया है.
2017 में ऐसा रहा था रिजल्ट:
पार्टी | प्रत्याशी | वोट | वोट% |
कांग्रेस | सोहिल अख्तर अंसारी | 81169 | 46.00% |
बीजेपी | रघुनंदन सिंह भदौरिया | 71805 | 40.69% |
बीएसपी | नसीम अहमद | 14079 | 7.98% |
मुस्लिम बहुल सीट कैसे बनी बीजेपी का गढ़
कानपुर कैंट सीट पूरी तरह से शहरी सीट है. यहां 40 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. इसके बाद भी भी 1991 से 2012 तक यहां से बीजेपी की जीत कुछ लोगों को हैरान कर सकती है. इसकी वजह है कि मुस्लिम बहुल इलाका होने के बावजूद भी यह शहरी क्षेत्र है. 60 फीसदी आबादी मिली-जुली है और इसके अलावा यहां सैन्यकर्मियों के परिवार, पूर्व सैन्यकर्मी भी इधर रहते हैं.
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2017 के चुनाव में हुआ था बड़ा उलटफेर
पहली बार इस विधानसभा सीट पर किसी मुस्लिम प्रत्याशी ने 2017 के चुनाव में जीत दर्ज की थी. चुनाव में सोहिल अख्तर अंसारी को 81169 वोट मिले थे. इस बार भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए पिछली बार हारी हुई प्रमुख सीटों के लिए रणनीति बना ली है. इसमें कानपुर की कैंट विधानसभा सीट भी शामिल है. 2017 में कानपुर की 10 विधानसभा सीटों में से 7 सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी.
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