डीएनए हिंदी: उत्तराखंड की विधानसभा में सबसे अधिक 11 सीटें हरिद्वार जिले से आती हैं. साल 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग राज्य उत्तराखंड बनने के बाद भाजपा यहां से कभी नहीं हारी है. हालांकि इस बार कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदलकर मुकाबले को और कठिन बना दिया है.
कैसा रहा है राजनीतिक इतिहास?
अतीत की बात करें तो यहां साल 1957 और 1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस (Congress) के शांति प्रपन्न शर्मा विजेता रहे थे. जबकि 1967 में निर्दलीय घनश्याम गिरी ने अपनी जीत दर्ज की. इसके बाद 1969 में एक बार फिर प्रपन्न शर्मा ने वापसी की.
1974 में सीपीआई तो 1977 में जनता पार्टी के उम्मीदवार यहां से विजेता रहे. 1980 और 1985 में दो बार हरिद्वार निर्वाचन क्षेत्र में फिर कांग्रेस का दबदबा रहा. 1989 में जनता दल, 1991 और 1993 में हवा भाजपा के पक्ष में रही. साल 1996 में सपा के अंबरीश कुमार यहां से चुनाव जीत चुके हैं और फिर 2002, 2007, 2012 और 2017 में यहां भाजपा के मदन कौशिक का बोलबाला रहा.
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क्या रहे हैं पिछले चुनाव के नतीजे?
पिछले चुनाव में BJP के उम्मीदवार मदन कौशिक ने कांग्रेस के उम्मीदवार ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी को रिकॉर्ड 35,927 वोटों से हराया था. इसके अलावा 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक ने हरिद्वार (लोकसभा सीट) से कांग्रेस के अंबरीश कुमार को 2,58,729 वोटों से हराया था.
इस बार कौन दर्ज करेगा जीत?
हालांकि यहां बीते बीस सालों से जीत को अपने नाम कर रहे मदन कौशिक को इस बार चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. दरअसल इस बार कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदलकर यहां बड़ा दांव खेला है. इस बार कांग्रेस से सतपाल ब्रह्मचारी मदन कौशिक का सामना करने वाले हैं. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि हरिद्वार नगर पालिका अध्यक्ष के रूप में ब्रह्मचारी का कामकाज, उनकी साफ छवि और भवगा दल के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के चलते इस बार दोनों के बीच कड़ाके की टक्कर होने वाली है.
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सामाजिक समीकरण
बता दें कि हरिद्वार में ब्राह्मण वोटरों का खासा वर्चस्व है. अनुमान के मुताबिक, यहां करीब 35 हजार ब्राह्मण मतदाता हैं. वैश्य 31 हजार और पंजाबी 28 हजार मतदाता हैं. पिछले ज्यादातर चुनावों में बड़े राजनीतिक दलों ने हर चुनाव में ब्राह्मण प्रत्याशियों पर ही दांव खेला है.
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Uttarakhand Election 2022: ब्राह्मण वर्चस्व वाली हरिद्वार सीट पर इस बार किसकी होगी जीत? टूटेगा रिकॉर्ड या फिर दोहराएगा इतिहास?