डीएनए हिंदीः पंजाब की राजनीति में अचानक पिछले वर्ष से एक बिखराव देखने को मिल रहा है. तीन कृषि कानूनों का पारित होना, उसके बाद किसान आंदोलन और फिर कृषि कानूनों की मोदी सरकार द्वारा ही वापसी. इस पूरे घटनाक्रम के बीच राजनीतिक उठापटक शुरु हो गई है. कांग्रेस जहां सिद्धू एवं पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह क बीच टकराव के कारण बिखरी हुई है तो दूसरी ओर किसान आंदोलन को समर्थन देने के नाम पर शिरोमणि अकाली दल ने भी भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया. इसके विपरीत अब जब कृषि कानूनों को अस्तित्व खत्म हो गया है तो प्रश्न यही है कि क्या भाजपा अकाली गठबंधन फिर होगा या दोनों के रास्ते अलग होंगे ही.
आलोचक बन गए हैं अकाली
कृषि कानूनों का विरोध कर गठबंधन तोड़ने वाले शिरोमणि अकाली दल ने मोदी सरकार पर जमकर हमले किए हैं. वहीं कानूनों के रद्द होने के बाद भी अकालियों ने ऐलान कर दिया है कि वो भाजपा के साथ किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं होंगे. भाजपा पर हमला बोलते हुए अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने कहा- “अगर बीजेपी ने हमारी बात सुनी होती तो उन्हें यह सब झेलने की जरूरत नहीं पड़ती और कई किसानों की जान बचाई जा सकती थी.”
नहीं होगा कोई गठबंधन
सुखबीर बादल ने स्पष्ट कर दिया है कि अब अकाली दल का भाजपा के साथ गठबंधन नहीं ही होगा. उन्होंने कहा- “जब इन कानूनों को पहली बार कैबिनेट में लाया गया था तब हमने उन्हें इस बारे में चेतावनी दी थी लेकिन दुर्भाग्य से मोदी सरकार ने सोचा कि वे अपना रास्ता आगे बढ़ा सकते हैं और उन्होंने ऐसा किया. नतीजतन हमें बिना कुछ लिए ही संकट से गुजरना पड़ा. इसके लिए पूरी तरह केंद्र सरकार जिम्मेदार है.
डैमेज कंट्रोल की कोशिश
पीएम मोदी द्वारा कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा पर पीएम की छवि को लेकर बादल ने कहा- “कानून पारित करने और फिर वापस लेने से कोई फर्क नहीं पड़ता, पहले आप किसी चीज को नष्ट करते हैं और बाद में माफी मांगते हैं, छवि तुरंत नहीं बदलती है.” उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा है कि भाजपा ने क़ृषि कानून के मुद्दे पर उनकी बात नहीं मानी जिसका परिणाम पार्टी आज भुगत रही है.
भाजपा भी नहीं दे रही है भाव
एक खास बात ये है कि भाजपा भी अब कृषि कानूनों के रद्द होने के बावजूद अकालियों को मिलाने के लिए उत्सुक नहीं दिख रही है. भाजपा का पूरा ध्यान इस वक्तल कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी के साथ गठबंधन करने में हैं जो कि भाजपा के साथ गठबंधन कर सिद्धू से अपने अपमान का बदला लेने की आग लेने में जल रहे हैं और भाजपा उसमें अपनी नई राजनीतिक संभावनाएं बढ़ रही हैं.
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