होली का रंग मौसम और माहौल देखकर चढ़ता है. सियासत में जिस नेता की जितनी बड़ी जीत, उसकी उतनी बड़ी होली, वैसे ही चटख रंग. सबसे सुंदर रंग भी सफलता का होता है. इस बार के फागुन में नेताओं पर चुनावी रंग चढ़ा है. कुछ पर रंग चढ़ा तो कुछ के चेहरों पर चढ़ा रंग खुद-ब-खुद फीका पड़ गया. रंगीन त्योहार में चेहरे के रंग उड़ जाएं तो किसे न अखरे. विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों के बाद कई नेताओं को इस बार की होली रास नहीं आने वाली है. इन चेहरों में कुछ सत्ताधारी दल के हैं तो कुछ विपक्षी और विरोधी दलों के. सत्ताधारी दल के हारे हुए नेताओं को पार्टी की जीत का जश्न भी मनाना है और अपनी हार का गम भी. ऐसे में पहले इन्हीं नेताओं के बारे में जानते हैं जिनसे कहना है कि बुरा न मानो होली है.
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केशव प्रसाद मौर्य की हालत ऐसी है कि वह पार्टी की जीत पर जश्न तो मना रहे हैं लेकिन अपनी विधानसभा सीट की हार का गम भी. केशव प्रसाद मौर्य भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेताओं में शुमार हैं. एनडीए गठबंधन ने 273 सीटें जीतकर भारी बहुमत से सरकार बनाई है. केशव प्रसाद मौर्य हाथ मल रहे हैं. उनके राजनीतिक करियर पर सबसे बड़ा थप्पा यह है कि सूबे के टॉप 3 नेताओं में शुमार रहे, डिप्टी सीएम, खुद अपनी सीट नहीं बचा सके. हालांकि उनके विरोधी यह कहकर चुटकी ले रहे हैं कि चले थे योगी आदित्यनाथ का प्रतिद्वंद्वी बनने लेकिन अपनी ही सीट नहीं बचा पाए.
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अखिलेश यादव सोच रहे थे कि इस बार सरकार वही बना रहे हैं. अखिलेश यादव ने चुनाव से पहले एक चैनल में यहां तक कह दिया था कि वह यूपी की 400 सीटें जीत रहे हैं. लोकतंत्र में विपक्ष के लिए भी जगह होनी चाहिए इसलिए 3 सीटें छोड़ रहे हैं. अखिलेश यादव का यह दावा फुस्स हो गया. करहल विधानसभा सीट से चुनाव तो जीत गए लेकिन मुख्यमंत्री बनने का सपना साल 2017 की तरह एक बार फिर अधूरा रह गया. तब भी बीजेपी प्रचंड बहुमत से आई थी, इस बार भी प्रचंड बहुमत से आई है. अगर बीजेपी अपने सहयोगियों को साथ न ले तो भी उसके पास प्रचंड बहुमत ही है. अखिलेश के साथ एक सुर में सारी बीजेपी विरोधी पार्टियां आ जाएं तो भी बहुमत का आंकड़ा कोसों दूर है. सपा महज 111 सीटें जीती हैं. मीडिया का एक तबका कहता रहा कि अखिलेश की आंधी चल रही है. अखिलेश यादव की चुनावी रैलियों में भीड़ भी बहुत हो रही थी. ऐसा लगता है कि आंधी चली तो जरूर थी लेकिन उसमें सपा के ही वोट बह गए. योगी प्रचंड बहुमत से सरकार बना रहे हैं. अखिलेश यादव कहां होली खेलने की तैयारी कर रहे थे, कहां बीजेपी रंग ही लेकर चली गई.
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4 बार यूपी की सत्ता संभाल चुकीं मायावती (Mayawati) होली इस बार सबसे फीकी रहने वाली है. यूपी की सियासत में अगर किसी की राजनीतिक पकड़ सबसे ज्यादा कमजोर हुई है तो वह पार्टी है बहुजन समाज पार्टी (BSP). 2012 से यूपी में मायावती की जमीन खिसक रही है. मायावती न पहले की तरह चुनावी रैलियां करती हैं न ही दलित वोटर उन्हें पसंद कर रहे हैं. एक जिले से 4 जिलों के उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने वाली मायावती से कई चूक हुई है. उन्होंने अपनी ही पार्टी में अपने कद का कोई नेता तैयार नहीं किया है जो उनकी जगह चुनाव प्रचार कर सके. दलित वोटर अब बीजेपी की ओर शिफ्ट हुए हैं. जहां बीजेपी के नेता नगर निगम चुनावों में अपनी फौज उतार देते हैं, वहीं मायावती विधानसभा चुनावों में भी प्रचार करने से कतरा रहीं थीं. ऐसे सत्ता का हासिल करने का ख्वाब उनका अधूरा ही रह गया. बसपा के पास 2012 के विधानसभा चुनाव में 80 सीटें थीं. 2017 के विधानसभा चुनाव में 19 सीटें थीं. 2022 के विधानसभा चुनाव में महज 1 सीट. ऐसे में इतना बुरा नतीजा आया है तो जाहिर सी बात है कि बहन जी की होली तो फीकी ही हो चुकी है.
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उत्तर प्रदेश में अगर किसी नेता ने सबसे ज्यादा जमीन पर मेहनत की है तो वह प्रियंका गांधी हैं. एक के बाद एक लगातार उन्होंने कई रैलियां कीं. 2019 के लोकसभा चुनावों से ही वह मिशन यूपी पर थीं. लोकसभा चुनाव में बंपर कैंपेनिंग के बाद अमेठी से तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद अपनी सीट गंवा बैठे थे. नरेंद्र मोदी की दूसरी प्रचंड लहर में कांग्रेस 1 सीट पर सिमट गई थी. यही हाल इस बार विधानसभा चुनाव में हुआ है. हाथरस और लखीमपुर खीरी कांड को जोर-शोर से सियासी मुद्दा बनाने के बाद भी प्रियंका गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी का हाल यूपी में बहुत बुरा रहा. कांग्रेस महज 2 सीटें हासिल कर सकी है. 2012 में कांग्रेस के पास 28 सीटें थीं. 2017 में सीटें घटकर 19 रह गईं, वह भी तब जब सपा का मजबूत साथ मिला था. साल 2022 में महज 2 सीटें कांग्रेस हासिल कर सकी. यूपी की सत्ता में काबिज होने की तमन्ना एक बार फिर धरी की धरी रह गई. प्रिंयका गांधी ने सोचा था कि इस बार की होली पर जीत का रंग चढ़ेगा लेकिन ऐसा हो नहीं सका.
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उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदलने की परंपरा रही है. कोई लगातार मुख्यमंत्री नहीं रह पाता है. 2017 से लेकर 2021 तक उत्तराखंड में 3 मुख्यमंत्री बदले गए. तीरथ सिंह रावत, त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीसरे हैं पुष्कर सिंह धामी. धामी के चेहरे पर बीजेपी ने विधानसभा चुनाव 2022 लड़ा. बीजेपी ने 70 विधानसभा सीटों वाले सूबे में 47 पर जीत हासिल कर ली. पूर्ण बहुमत की सरकार. चूक यह हुई कि पुष्कर सिंह धामी, सिटिंग सीएम, खुद अपनी सीट नहीं बचा पाए. पुष्कर सिंह धामी खाटिमा विधानसभा सीट से चुनाव लड़े. कांग्रेस नेता भुवन चंद्र कापड़ी ने उन्हें करीब 7,000 वोटों से हराया है. यह बड़ी चुनावी हार है. पुष्कर सिंह धामी को कुल 40675 वोट मिले तो भुवन चंद्र कापड़ी ने 47626 वोट हासिल किया. बीजेपी में असमंजस में है कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाए या न बनाए. ऐसे में एक हार के रंग ने पुष्कर सिंह धामी की होली फीकी कर दी है.
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स्वामी प्रसाद मौर्य की छवि दलबदलू नेता के तौर पर ही रही है. 2012 और 2017 में उन्हें दल बदलने से फायदा मिला लेकिन 2022 में बड़ा घाटा हो गया. 2017 में बीजेपी के टिकट पर उन्होंने पड़रौना सीट पर जीत दर्ज की. 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने बीजेपी पर पिछड़ों को अनदेखा करने का आरोप लगाते हुए पार्टी से किनारा कर लिया और सपा में शामिल हो गए. खबरें चली कि यूपी कैबिनेट के दिग्गज मंत्री इस्तीफा दे रहे हैं, ऐसे में लग रहा है कि सपा की सरकार बहुमत से आ रही है. खुद स्वामी प्रसाद मौर्य ने दावा किया कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी रूपी नाग को वह नेवला बनकर खत्म करेंगे. नेवला 2022 का चुनाव हार गया. अखिलेश ने पड़रौना से उन्हें टिकट नहीं दिया और फाजिलनगर विधानसभा सीट से उतार दिया. उन्हें इस विधानसभा सीट से करारी हार मिली. बीजेपी उम्मीदवार सुरेंद्र कुमार कुशवाहा ने 45,014 वोटों के अंतर से योगी कैबिनेट के पूर्व मंत्री को कड़ी शिकस्त दी. सुरेंद्र कुमार कुशवाहा को 1,16,029 वोट मिले तो स्वामी प्रसाद मौर्य महज 71,015 वोट हासिल कर सके. कहां स्वामी प्रसाद मौर्य, योगी सरकार से खुश नहीं थे. वह तो यह भी नहीं चाहते थे कि सूबे की सत्ता योगी के हाथ में ही रहे लेकिन जनता को कुछ और मंजूर था. स्वामी प्रसाद मौर्य एक तो विधायक नहीं रहे, दूसरा यह कि अखिलेश भी इस लायक नहीं रहे कि वह उन्हें कुछ दे सकें. ऐसे में अच्छी खासी होली उनकी फीकी हो गई. अब तो अगले चुनाव में ही उन्हें कोई और रंग चढ़ सकता है.
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चरणजीत सिंह चन्नी, एक नहीं बल्कि दो विधानसभा सीटों से चुनाव हार गए. कैप्टन के इस्तीफे के बाद जब उन्हें सीएम बनाया गया तो ऐसा लगा कि कांग्रेस ने मास्टर कार्ड चल दिया है. चरणजीत सिंह चन्नी, पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री हैं. कहा जाने लगा कि कांग्रेस ने उन्हें सीएम बनाकर पंजाब के दलित समुदाय को साध लिया है. ऐसे में जीत तय होगी. आम आदमी पार्टी की ऐसी आंधी चली कि हर राजनीतिक पार्टी की बोलती बंद हो गई. चरणजीत सिंह चन्नी को भदौड़ विधानसभा सीट से AAP नेता लाभ सिंह उगोके ने 37,558 वोटों से हरा दिया. चमकौर साहिब से भी उन्हें आम आदमी पार्टी के चरणजीत सिंह ने करीब 8,000 वोटों से हराया. आम आदमी पार्टी जहां 92 सीटें हासिल करके पूर्ण बहुतम की सरकार बना रही है, वहीं कांग्रेस महज 18 सीटों पर सिमट गई है. ऐसे में कांग्रेस के साथ-साथ चरणजीत सिंह चन्नी की होली फीकी पड़ गई है. उनकी किस्मत में महज 111 दिनों का सीएम बनना ही लिखा था.
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कांग्रेस के लिए 2017 से लेकर 2022 तक अगर कोई असली सिरदर्द रहा है तो वह रहे हैं नवजोत सिंह सिद्धू. नवजोत सिंह सिद्धू के साथ बढ़ी अनबन ने 2021 में कैप्टन अमरिंदर सिंह से इस्तीफा दिला दिया. सिद्धू लगातार खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानते रहे. कैप्टन के इस्तीफे के बाद चरणजीत सिंह चन्नी की ताजपोशी हुई. उनसे भी सिद्धू की सियासी लड़ाई चलती रही. राहुल गांधी ने सिद्धू को समझाया कि वही किंगमेकर हैं. सिद्धू माने भी. 2022 के विधानसभा चुनाव में नवजोत सिंह सिद्धू अपनी सीट तक नहीं बचा पाए. अमृतसर ईस्ट से मैदान में उतरे थे, लेकिन उन्हें आम आदमी पार्टी की जीवन ज्योति कौर ने हरा दिया. सिद्धू खुलकर होली मनाने वाले नेताओं में शुमार रहे हैं, इस बार उनकी होली ऐसी फीकी हुई है कि वह राजनीतिक तौर पर ही हाशिए पर आ गए हैं.
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कैप्टन अमरिंदर सिंह 2017 से लेकर 2021 तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे. 2021 में कांग्रेस अलाकमान के कहने पर उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. पंजाब लोक कांग्रेस के नाम से पार्टी बनाई और बीजेपी के साथ गठबंधन किया. कोई मैजिक काम नहीं आया. आम आदमी पार्टी के अजितपाल सिंह कोहली ने उन्हें उनके ही गढ़ में करारी हार दी है. कैप्टन अपने गढ़ में करीब 13,000 वोटों से हार गए. इसे बड़ी हार कहते हैं. कहां कैप्टन सोच रहे थे कि बीजेपी के साथ सवार होकर उनका सियासी सफर कामयाब हो जाएगा लेकिन करारी हार हुई है. कैप्टन की भी होली फीकी पड़ गई है.
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इस बार होली तो मनी योगी आदित्यनाथ की. विधानसभा चुनाव में मोदी-योगी की जोड़ी इतनी उपयोगी साबित हुई कि सिर्फ बीजेपी को अकेले ही 255 सीटें मिल गई हैं. बहुमत से कहीं ज्यादा बड़ा आंकड़ा. जीत तय होते ही योगी 10 मार्च की शाम लखनऊ स्थित पार्टी के दफ्तर पहुंचे. उन्होंने जमकर रंगो की होली खेली. यूपी बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह भी मौजूद रहे. केशव मौर्य भी रहे. सीएम योगी पर चढ़ा जीत का रंग साफ इशारा करता है कि सियासी विरोधियों, 'आया तो योगी ही.' अब ऐसा लग रहा है कि योगी आदित्यनाथ होली के दिन भी अपने विरोधियों और साथियों से कहेंगे हार जीत तो होती रहती, बुरा न मानो होली है. योगी यह भी कह सकते हैं कि.. नेता जी की फीकी होली, चढ़ा इन्हें न रंग, हार-जीत की बात बिसारो, करो खूब हुड़दंग...!