UP Election 2022 के लिए भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर की चुनाव से पहले गठबंधन की सारी कोशिशें फेल होती नजर आ रही हैं. मायावती और अखिलेश यादव दोनों ने ही उन्हें टका सा जवाब दिया है. अब कांग्रेस ही उनकी आखिरी उम्मीद है. हालांकि, उन्होंने यह जरूर कहा है कि बीजेपी को हराने के लिए चुनाव के बाद गठबंधन का विकल्प खुला हुआ है. इस चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी अकेले उतरेगी या किसी के साथ गठबंधन कर उतरेंगे, जानें आगे.
भीम आर्मी चीफ ने कहा कि अखिलेश यादव ने उनके साथ छल किया है. उन्होंने कहा, 'एसपी अब 100 सीटों का भी ऑफर दे तो मैं नहीं जाऊंगा. पहले 25 सीटों का वादा हुआ था लेकिन बाद में मुकर गए.' बता दें कि अखिलेश यादव ने इसके जवाब में कहा है कि चंद्रशेखर से गठबंधन पर 2 सीटों को लेकर बात पक्की थी लेकिन बाद में किसी का फोन आया और वह मुकर गए. आरोप-प्रत्यारोप से अलग अगर जमीनी हकीकत की बात करें तो अखिलेश इस चुनाव में पहले ही आरएलडी, एनसीपी जैसे दलों के साथ गठबंधन कर चुके हैं. चंद्रशेखर की नई पार्टी जिसके जनाधार और जमीनी मजबूती को लेकर अब तक पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है. ऐसे में 25 सीटें देना अखिलेश के लिए कहीं से फायदेमंद सौदा नहीं था.
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भीम आर्मी और चंद्रशेखर की पहचान अब तक दलित कार्यकर्ता के तौर पर ही है. माना जा रहा है कि अगर वह चुनाव लड़ेंगे भी तो मायावती के वोट बैंक में ही सेंध लगा पाएंगे. फिलहाल उन्हें ओबीसी जातियों और सवर्णों के वोट मिलते नहीं दिख रहे हैं. ऐसे में मायावती चंद्रशेखर से गठबंधन करें, इसका कोई ठोस आधार नहीं है. लिहाजा, बीएसपी ने भी उनक ऑफर में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है.
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चंद्रशेखर का कहना है कि कांग्रेस से उनकी बातचीत चल रही है. प्रियंका गांधी वाड्रा भी एक बार चंद्रशेखर से कुछ साल पहले अस्पताल में जाकर मिल चुकी हैं. हालांकि, मिलना-बतियाना और कुशलक्षेम लेने से अलग राजनीतिक साझीदारी बहुत दूर की चीज होती है. चंद्रशेखर के साथ कांग्रेस गठबंधन करे भी तो वजह एक ही होगी और वह है जमीनी स्तर पर कुछ नए और उत्साही कार्यकर्ता तैयार करना. चंद्रशेखर को भी यह फायदे का सौदा लग सकता है क्योंकि पहली ही बार में उन्हें एक राष्ट्रीय पार्टी का साथ मिलेगा और उनकी भविष्य की राजनीति के लिए इससे कुछ आधार मिल सकता है.
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हो सकता है कि चंद्रशेखर किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं कर पाएं और अकेले ही चुनाव लड़ें. ऐसे हालात में भी उनके लिए कोई खास गुंजाइश नहीं है क्योंकि पहले चरण के चुनाव में अब 25 दिन बचे हैं. न तो उनके पास कोई ठोस जनाधार है और न ही अब तक चुनाव की कोई बड़ी तैयारी नजर आ रही है. ऐसे में अगर वह अपने प्रभावक्षेत्र वाली चुनिंदा सीटों पर उम्मीदवार उतारते भी हैं, तो शायद वह बीएसपी का कुछ वोट ही काट पाएंगे. उन्हें बड़े प्रतिद्वंद्वी के तौर पर न बीजेपी और न ही अखिलेश यादव गंभीरता से ले रहे हैं.