डीएनए हिंदी: मुख्यमंत्रियों की संख्या की बात करें तो काग्रेस पार्टी के पास फिलहाल दो ही सीएम हैं. अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) राजस्थान में हैं, तो दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) हैं. गहलोत के सामने सचिन पायलट (Sachin Pilot) की चुनौती है तो वहीं बघेल के सामने चुनौती टीएस सिंह देव हैं. कांग्रेस आलाकमान इस मुद्दे पर बैकफुट पर है. गुजरात में चुनाव चल रहे हैं और पार्टी यहां 27 साल से बाहर है लेकिन खास बात यह है कि सीएम को लेकर जो कांग्रेस आज बैकफुट में है, उसी कांग्रेस को गुजरात में भी एक सीएम उम्मीदवार के सामने बैकफुट पर जाना पड़ा था और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी को उन्हें सीएम बनाना पड़ा था.
जानकारी के मुताबिक यह सियासी घटना साल 1972 की है. गुजरात में चौथी विधानसभा के लिए चुनाव के बाद पार्टी को नतीजों में 140 सीटें मिली थीं. घनश्याम छोटालाल ओझा ने 17 मार्च, 1972 को गुजरात के सीएम पद की शपथ ले ली थी. उनके साथ ही युवा कांग्रेस नेता चिमनभाई पटेल गुजरात के पहले उप मुख्यमंत्री बनाए गए थे. चिमनभाई पटेल मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन उनके समर्थन में विधायक कम थे और यहीं से गुजरात की सियासत में एक नया घटनाक्रम देखने को मिला था.
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ऐसे में चिमनभाई पटेल ने 9 महीने तक विधायकों का समर्थन जुटाने का काम किया था और 1973 तक उनके पास करीब आधे विधायक आ गए थे उनकी संख्या 70 विधायक तक पहुंच चुकी थी. इसके बाद चिमनभाई पटेल इंदिरा गांधी से मुंबई में मिले थे और उन्होंने इस दौरान ही राज्य में सीएम बदलने की बात कही थी.
चिमनभाई पटेल और इंदिरा गांधी की मुलाकात निगेटिव ही रही थी. पटेल ने तब इंदिरा गांधी को चुनौती देते हुए कहा था कि आप यह तय नहीं कर सकतीं कि गुजरात में विधायक दल का नेता कौन होग. यह तो वहां के विधायक ही तय करेंगे. इंदिरा गांधी ने तब चिमनभाई पटेल का कोई विरोध नहीं किया था और उन्हें गुजरात प्रभारी से मिलने को कह दिया था.
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जानकारी के मुताबिक गुजरात प्रभारी ने विधायकों के समर्थन की बात कही. चिमनभाई पटेल के समर्थन में आधे से 7 वोट ज्यादा थे. ऐसे में विधायकों का समर्थन होने के चलते उन्हें गुजरात का सीएम बनाना पड़ा था. चिमनभाई की जिद और ताकत के सामने इंदिरा गांधी को मजबूरी में बैकफुट पर जाना पड़ा था. खास बात यह है कि वे पार्टी से निकाले भी गए थे और दूसरी बार वे 1990 में जनता दल और बीजेपी के समर्थन से सीएम बने थे.
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