डीएनए हिंदी: गुजरात में अगर किसी एक समुदाय का सामाजिक दबदबा सबसे ज्यादा है तो वह है गुजरात का पाटीदार समुदाय. यह समुदाय हर चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाता है. हर राजनीतिक पार्टी की पहली कोशिश यही रहती है कि कैसे पाटीदार समुदाय को अपने पक्ष में लिया जाए. गुजरात के सियासी समीकरण एक बार फिर साल 2017 के विधानसभा चुनावों की तरफ जाते नजर आ रहे हैं.
अगर ऐसा ही हाल रहा तो स्थितियां 2022 की तरह बन सकती हैं. आम आदमी पार्टी (AAP) नए सियासी समीकरण बनाने की कोशिशों में जुटी है. अब तक पाटीदार समुदाय खुलकर भारतीय जनता पार्टी के साथ नजर आ रहा था. अब AAP ने कई पाटीदार नेताओं को टिकट दिया है, जिसके बाद हालात बदल सकते हैं. टीम अरविंद केजरीवाल कोशिश कर रही है कि बीजेपी के कोर वोटबैंक में किसी तरह से सेंध लगाई जाए.
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गुजरात विधानसभा में पाटीदारों का बोलबाला
गुजरात विधानसभा में कुल 182 सीटे हैं. इनमें से कुल 44 विधायक पाटीदार हैं. 2012 के विधानसभा चुनावों के दौरान यह आकंड़ा 48 था. गुजरात में करीब 18 फीसदी पाटीदार समुदाय के लोग रहते हैं. ऐसे में हर पार्टी चाहती है कि पाटीदार समुदाय उन्हें वोट करे. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के 111 निवर्तमान विधायकों में से 31 पाटीदार हैं. कांग्रेस के 17 विधायक पाटीदार समुदाय से आते हैं जिनमें से 4 ने पार्टी छोड़ दी.
इस विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने कुल 44 पाटीदार उम्मीदवार उतारे हैं. सौराष्ट्र-कच्छ इलाके के अंदर कुल 54 विधानसभा सीटे आती हैं. 1 दिसबर को इस इलाके में वोट पड़ेंगे. इस इलाके में भी पाटीदार वोटर अहम भूमिका निभाने जा रहे हैं.
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आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और बीजेपी तीनों ने पाटीदारों को लुभाने के लिए रणनीति तैयार की है. AAP ने 19 पाटीदार चेहरों को टिकट दिया है. बीजेपी ने 18 पाटीदार उम्मीदवार उतारे हैं और कांग्रेस ने 16 पाटीदार उम्मीदवारों को टिकट दिया है.
कितने सीटों पर पाटीदार समुदाय का है असर?
पाटीदार समुदाय का असर गुजरात के कुल 106 विधानसभा सीटों पर पड़ता है. 48 सीटे ऐसी हैं जिन पर पाटीदारों का वर्चस्व माना जाता है. दूसरे समुदायों की आबादी भी इन सीटों पर अच्छी-खासी है लेकिन पाटीदारों का प्रभाव ज्यादा है. यहां पाटीदार वोटरों के साथ-साथ अगर दूसरे समुदाय का हल्का सपोर्ट मिल जाए तो चुनावी समीकरण बदल जाते हैं. आम आदमी पार्टी ने इन्हीं सीटों पर जोर आजमाइश करने की कोशिश की है. हालांकि 58 अन्य सीटों पर, पाटीदार वोट निर्णायक हैं, भले ही अन्य समुदायों के पास सबसे बड़ा हिस्सा है.
गुजरात की सत्ता में भी पाटीदारों की धमक!
गुजरात के कुल 17 मुख्यमंत्रियों में से 5 पाटीदार समुदाय से आते थे. मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल भी लेउवा पटेल समुदाय से आते हैं. पाटीदारों की गुजरात में दो प्रमुख जातिया हैं. कड़वा पाटीदार पटेल और लेउवा पाटीदार पटेल. लेउवा पटेल समुदाय का लगभग 80% हिस्सा है. कड़वा पटेल करीब 20 फीसदी हैं. लेउवा समुदाय सौराष्ट्र और मध्य और दक्षिण गुजरात के कुछ हिस्सों में प्रभावी है, वहीं कड़वा मुख्य रूप से उत्तर गुजरात और सौराष्ट्र के कुछ इलाकों में हैं. बीजेपी के उम्मीदवारों की मौजूदा सूची में 24 लेउवा और 20 कड़वा पटेल हैं.
उद्योगपति नरेश पटेल ने एक धार्मिक संगठन खोडलधाम ट्रस्ट की स्थापना की थी. इस संगठन का असर लेउवा पटेल समुदाय पर व्यापक प्रभाव है. देखने वाली बात यह है कि यह समुदाय अब बीजेपी के साथ जाता है या नहीं.
1980 से ही गुजरात की राजनीति में पाटीदारों का दबदबा
पाटीदारों का राजनीतिक वर्चस्व साल 1980 से ही उभार पर है. यह एक कृषक समुदाय था लेकिन अब इसकी राजनीतिक दखल गुजरात की सत्ता तक पहुंच गई है. पाटीदा, क्षत्रिय, दलित, आदिवासी और मुस्लिम एकजुटता को लेकर कांग्रेस ने इन्हें बांध रखा था. साल 1995 से सियासी समीकरण बदलने लगे.
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1995 से ही पाटीदारों को बीजेपी बांधने में सफल रही है. पाटीदारों ने बीजेपी का जमकर साथ दिया है. पाटीदार एकता हर चुनाव में दूसरे सियासी दलों पर भारी पड़ी है.
क्यों बीजेपी, AAP-Congress दोनों पर पड़ सकती है भारी?
साल 2015 से लेकर 2017 तक के बीच बीजेपी से पाटीदार समुदाय बेहद नाराज था. इसी दौरान हार्दिक पटेल का नाम पहली बार सुनने को मिला था. हार्दिक पटेल, पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के नेतृत्व में ओबीसी कोटे की मांग कर रहे थे. हार्दिक पटेल अब बीजेपी में हैं. उनके साथ आने से भी एक बार फिर यह समुदाय बीजेपी पर भरोसा जता सकता है.
नरेश पटेल भी दबे पांव बीजेपी के साथ हैं. सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों (EWS) के लिए 10 फीसदी कोटा को मंजूरी देकर पाटीदारों को खुश कर दिया है. अब देखने वाली बात यह होगी कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के पाटीदार उम्मीदवार, बीजेपी उम्मीदवारों पर कितने भारी पड़ते हैं.
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गुजरात चुनाव में कितना अहम है पाटीदार वोट, कैसे कांग्रेस पर भारी पड़ रही है बीजेपी?