प्रवीण राय
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) को आम चुनाव का सेमीफाइनल माना जाता है. यूपी के चुनाव देश की राजनीति की दिशा तय करते हैं. इसीलिए इस चुनाव की चर्चा सबसे अधिक होती है. देश के किसी अन्य राज्य के चुनाव को इतनी मीडिया कवरेज नहीं दी जाती है. कहा जाता है कि दिल्ली की राजनीति का रास्ता उत्तर प्रदेश से जाता है. हालांकि यह बात मिथक 2004 और 2014 बीच गलत साबित हुआ. इस दौरान केंद्र में यूपीए की सरकार सत्ता में रही थी लेकिन उत्तर प्रदेश में इस दौरान का कांग्रेस का प्रदर्शन कोई खास नहीं रहा.
उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव की बीच चुनाव के दौरान घमासान देखने को मिला. दोनों के बीच कई बार तीखी बयानबाजी भी देखने को मिली. अगर बात 2017 के विधानसभा की करें तो उस दौरान बीजेपी की सुनामी देखने को मिली थी. बीजेपी के सामने कोई और पार्टी दूर-दूर तक दिखाई नहीं दी. बीजेपी ने करीब 40 फीसदी वोटों के साथ तीन चौथाई (403 सीटों में से 312) से अधिक सीटों पर जीत हासिल की. भाजपा गठबंधन ने पिछली बार 325 सीटें जीतीं. इनमें अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व में अपना दल (सोनेलाल) की 9 सीटें और ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) की 4 सीटें शामिल थीं. अखिलेश यादव के नेतृत्व वाला सपा-कांग्रेस गठबंधन आगे बढ़ने में विफल रहा. चुनाव में सपा ने 47 सीटें (22 प्रतिशत वोट) जीतीं. वहीं 5 फीसदी वोटों के साथ देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस महज 7 सीटें ही जीत सकी. बसपा सुप्रीमो मायावती की बात करें तो उनकी पार्टी 22 फीसदी वोटों के साथ सिर्फ 19 सीटें ही जीत सकी.
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एग्जिट पोल की बात करें तो इसमें बीजेपी अन्य सभी पार्टियों से मीलों आगे दिखाई दे रही है. एग्जिट पोल में बीजेपी को 211 से 326 के बीच सीटों का अनुमान लगाया गया है. वहीं सपा गठबंधन चुनाव में उपविजेता के रूप में सामने आ रहा है. उसे 71 से 165 सीटों का अनुमान जताया है. बसपा 3 से 24 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर रह सकती है. इससे पहले 2007 और 2012 के चुनावों में त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी की थी. पिछले चुनाव में बीजेपी की जीत की भविष्यवाणी की गई थी हालांकि इसका अंदाजा किसी को नहीं था कि 'मोदी-लहर' में बीजेपी 300 का आंकड़ा पार कर इतिहास रचेगी. इस बार दावा किया जा रहा है कि बीजेपी एक बार फिर 300 सीटों को पार कर सकती है और अपने पिछले चुनावी रिकॉर्ड को भी बेहतर कर सकती है.
एग्जिट पोल के नतीजे
मीडिया | बीजेपी + | सपा + | बसपा | अन्य |
Zee-डिजाइनबॉक्स | 223-248 | 138-157 | 5-11 | 7-14 |
इंडिया टुडे-माई एक्सिस इंडिया | 288-326 | 71-101 | 3-9 | 3-6 |
न्यूज 24-आज का चाणक्य | 294 | 105 | 2 | 2 |
एबीपी न्यूज-सीवोटर | 228-244 | 132-148 | 13-21 | 6-8 |
रिपब्लिक-पी मार्क | 240 | 140 | 17 | 4 |
टाइम्स नाउ-वीटो | 225 | 151 | 14 | 13 |
जन की बात | 222-260 | 135-165 | 4-9 | 1-7 |
न्यूज एक्स-पोलस्ट्रैट | 211-225 | 141-160 | 14-24 | 4-6 |
नोट: कुल सीटें: 403
जातिगत समीकरण
उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दल वैचारिक समानता से अधिक जातिगत समीकरण के लाभ को लेकर गठबंधन करते हैं. आंकड़ों पर नजर डालें तो यहां 41 फीसदी ओबीसी, 21 फीसदी दलित, 19 फीसदी मुस्लिम और 19 फीसदी अपर कास्ट है. अपर कास्ट, दलित और मुस्लिमों के समीकरण को लेकर कांग्रेस लंबे समय तक राजनीति करती रही है. हालांकि क्षेत्रीय दलों के उदय के बाद समीकरण पूरी तरह बदल गया.
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बसपा और सपा के उदय ने जाति समुदाय गठबंधन के पुनर्गठन और पहचान आधारित गठबंधन की राजनीति की शुरुआत की. दलितों का बहुमत बसपा की ओर स्थानांतरित हो गया, जबकि यादव (जनसंख्या का 9 प्रतिशत) ने सपा का वोट बैंक बना. अल्पसंख्यकों का रुझान सपा के साथ ही रहा. 2014 के आम चुनावों में क्षेत्रीय दलों को बड़ा झटका लगा बीजेपी ने उनका समीकरण पूरी तरह बदल दिया. बीजेपी ने लोकसभा की अधिकांश सीटों पर जीत हासिल की. बीजेपी ने गैर-ओबीसी और एससी जातियों को जोड़कर उच्च जातियों के अपने समर्थन के आधार को मजबूत किया. हिंदुत्व के दावे के आधार पर जातियों के पुराने समीकरण को तोड़ते हुए 2017 के राज्य चुनाव में भाजपा को जोरदार जीत दर्ज करने में मदद की.
वोटरों को प्रभावित करने वाले मुद्दे
इस चुनाव में शासन के काम, नेतृत्व क्षमता, चुनावी घोषणापत्र, बेहतर कानून व्यवस्था, अपराध की रोकथाम, महिलाओं की सुरक्षा, कल्याणकारी योजनाओं का तेज कार्यान्वयन, वाराणसी में हिंदुत्व परियोजना काशी विश्वनाथ धाम को पूरा करने की बड़ा असर रहा. विपक्षी दलों ने अल्पसंख्यकों, दलितों और महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं, कोविड 19 की दूसरी लहर से निपटने में लापरवाही, बेरोजगारी, महंगाई, आर्थिक संकट और कृषि विरोधी नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने की काफी कोशिल की लेकिन इसमें वो नाकाम नजर आती दिख रही है.
यूपी में चुनाव भाजपा के शासन पर एक जनमत संग्रह की तरह हैं. इसके दो परिणाम सामने आ सकते हैं. पहला अगर दो राजवंशों पर सवार सपा-रालोद गठबंधन पश्चिमी यूपी में अधिक सीटें जीतने में सफल हो जाता है, तो भगवा गठबंधन की सीटें 250 अंक से नीचे आ जाएगी. दूसरा, यदि डबल इंजन वाली सरकार का लाभ हिंदी भाषी मतदाताओं तक पहुंचता है तो यह सपा गठबंधन को पीछे छोड़ 250 से अधिक सीटें जीतेगी. उत्तर प्रदेश में राजनीति प्रतिस्पर्था की बात करें तो चुनाव की भविष्यवाणी करना एक 'भौगोलिक दुःस्वप्न' बन गया है.
(लेखक प्रवीण राय सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज, दिल्ली में राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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