डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के उप मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दिग्गज नेता केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) लगातार चर्चा में हैं. वजह सिर्फ विधानसभा चुनाव (Assembly Election) ही नहीं है. एक के बाद एक योगी कैबिनेट (Yogi Cabinet) के तीन मंत्रियों के इस्तीफे के बाद हर जगह केशव प्रसाद का नाम सुर्खियों में आ गया है.
जिन नेताओं ने बीजेपी से किनारा किया है उन सभी की पहचान ओबीसी (OBC) समाज के नेताओं से जुड़ी हुई है. तीनों नेता गैर यादव अन्य पिछड़े वर्ग की राजनीति करते रहे हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य की पहचान ही मौर्य वोट बैंक से जुड़ी रही है. एक अनुमान के मुताबिक यूपी में 6 फीसदी मौर्य वोटर हैं.
स्वामी प्रसाद मौर्य की पहचान भी दल-बदल वाले नेता के तौर पर हो गई है. वह खुद बहुजन समाज पार्टी (BSP) में भी रह चुके हैं. उनका सियासी कद एक सा रहा है. ऐसा सिर्फ इसलिए कि यूपी की 100 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मौर्य वोटर अच्छी संख्या में हैं. कुशवाहा, सैनी और मौर्य वोटरों में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती रही है. ऐसे में उनका जाना निजी तौर पर केशव प्रसाद मौर्य के लिए फायदे का सौदा हुआ है.
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टकराव के बाद बढ़ा सियासी कद!
दरअसल जिन नेताओं ने बीजेपी से किनारा किया है उन्होंने आरोप लगाया है कि बीजेपी ओबीसी और दलित समुदाय पर ध्यान नहीं देती है. वहीं बीजेपी ऐसे बयानों को खारिज करती है. यूपी में साल 2017 में खुद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य सीएम की रेस में रहे हैं. हाल ही में उनके और सीएम योगी के बीच कथित तौर पर टकराव की खबरें सामने आईं थीं जिसे पार्टी ने मैनेज कर लिया.
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि जून 2021 में पहली बार केशव प्रसाद मौर्य ने अपने सियासी कद का एहसास पार्टी को कराया था. दरअसल सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) और केशव प्रसाद मौर्य में सियासी टकराव साफ नजर आ रहा था. लगातार बढ़ रहे अंतर्विरोधों की वजह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को दखल देना पड़ा. केशव प्रसाद मौर्य और सीएम योगी के बीच संघ ने कथित तौर पर समझौता भी कराया था. सीएम योगी पहली बार डिप्टी सीएम के आवास पर दोपहर भोज के लिए भी गए थे. विपक्ष में संदेश यह गया कि बीजेपी एक है. कोई टकराव नहीं है.
क्यों BJP के लिए अहम हो गए हैं केशव प्रसाद मौर्य?
केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी के लोकप्रिय चेहरों में से एक हैं. यूपी बीजेपी में उनकी कद का कोई भी ओबीसी नेता नजर नहीं आता है. यही वजह है कि उन्हें डिप्टी सीएम का पद भी दिया गया है. राज्य के कुल वोटर्स में ओबीसी मतदाताओं की हिस्सेदारी लगभग 45 फीसदी है. ऐसा माना जाता है कि यादव वोटरों का एक बड़ा हिस्सा सपा समर्थक है. यह यूपी की सबसे प्रभावशाली ओबीसी जाति भी है. 2017 के यूपी चुनावों में, बीजेपी गैर-यादव ओबीसी वोटर्स को लुभाने में सफल रही. सियासी जानकारों का कहना है कि जाटव के अलावा दूसरे दलित वर्ग ने भी बीजेपी का साथ दिया. यही वजह रही कि बीजेपी को 403 सदस्यीय यूपी विधानसभा में 312 सीटें मिल गईं. बीजेपी अब अपने इस वोट बैंक को खोना नहीं चाहती है. यही वजह है कि पोस्टरों में केशव प्रसाद को भी प्रमुखता से तरजीह दी जा रही है.
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60 फीसदी सीटें OBC-ST/SC वर्ग को, फैसला किसका?
बीजेपी ने शुक्रवार को अपने 85 उम्मीदवारों की सूची का ऐलान किया है. बीजेपी ने करीब 60 फीसदी टिकट अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित समाज को दिए हैं. ऐसा माना जा रहा है कि टिकट बंटवारे में सीएम योगी और केशव प्रसाद मौर्य का अहम रोल है. इसी के जरिए सोशल इंजीनियरिंग के सफल प्रयोग को दोहराने की कोशिश की जा रही है.
'UP में BJP के 2 नेता एक योगी-दूजे केशव'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूपी की सियासत को यह समझाने में सफल हो गए हैं कि यूपी में दो नेता ही अहम हैं. पहले योगी दूसरे केशव प्रसाद मौर्य. 26 नवंबर 2021 को दरअसल पीएम मोदी जेवर में नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के शिलान्यास कार्यक्रम में पहुंचे थे. पूरे कार्यक्रम के दौरान केशव मौर्य से पीएम मोदी बात करते नजर आए. मंच पर उन्होंने सीएम योगी और डिप्टी सीएम मौर्य का हाथ उठाया. पीएम आमतौर पर ऐसा करते नहीं हैं. पीएम ने एक इशारा कर दिया था कि केशव प्रमुख नेता हैं उन्हें सियासत नजरअंदाज न करे. यही वजह है कि लगातार केशव प्रसाद मौर्य का कद मजबूत होता जा रहा है.
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क्यों बढ़ता जा रहा है BJP में Keshav Prasad Maurya का सियासी कद?