आराधना मुक्ति.
मेरे पास अनेक ऐसी स्त्रियों के मामले आते हैं जो बता ही नहीं पातीं कि उन्हें अपने पति से समस्या क्या है? पति द्वारा ज़बरदस्ती यौन सम्बन्ध बनाना उन्हें परेशान करता है, लेकिन इस समस्या को वे अपराध नहीं मानतीं. मानतीं भी हैं तो उसे किसी से कहना उनको बहुत मुश्किल लगता है, फिर चाहे वह बाहरी व्यक्ति हो या घर का. बस इतना कह पाती हैं कि बार-बार परेशान करते हैं. यौन सम्बन्धों पर बात करना आज भी वर्जित है, निषिद्ध है.
वैवाहिक बलात्कार या मैरिटल रेप क्या होता है, इसकी तो उन्हें भनक तक नहीं होती. वे समाधान चाहती हैं लेकिन पति से अलग भी नहीं होना चाहतीं. उन्हें लगता है कि एनजीओ की ओर से कोई उनके पति को डांट या समझा दे.
ज़मीन पर काम करने वालों को पता है कि घरेलू हिंसा कानून की अपनी सीमाएं हैं. लेकिन वह कुछ राहत तो दिलवा ही देता है. लेकिन स्त्रियां इसका भी सहारा लेने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं. वे पुलिस तक तो जाना नहीं चाहतीं, अदालत और मुकदमा तो दूर की बात है.
इस पर भी कुछ लोगों का कहना है कि मैरिटल रेप पर कानून बनने से उसका दुरुपयोग होगा, विवाह संस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. पहली बात तो कौन स्त्री अपना सुखी जीवन बिना किसी कारण के बर्बाद करना चाहती है. कहीं न कहीं उसके साथ अन्याय होता है तब वह कोई कदम उठाती है और वह भी कभी-कभी काफी देर से.
और मान लीजिए कि इक्का दुक्का स्त्रियों द्वारा इन कानूनों का दुरुपयोग हो भी तो क्या महज इसलिए कि किसी कानून का कुछ लोग दुरुपयोग कर सकते हैं, कोई कानून बनाया ही न जाए?
(आराधना मुक्ति लेखिका हैं और राही एनजीओ में प्रोग्राम मैनेजर हैं. यह लेख उनकी फेसबुक वॉल से हम साभार प्रकाशित कर रहे हैं.)
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