मनीष कुमार भंभानी
हर किसी के जीवन में एक अतीत होता है. एक ऐसा अतीत जो कई गहरे राज़ और ज़ख्मों को अपने अंदर संजोय हुए होता है. वो राज़ इसलिए राज़ रहते हैं क्योंकि इंसान को डर होता है अगर राज़ पर से पर्दा उठा दिया जाए तो लोगों का आपके साथ व्यवहार बदल न जाए. लोग आपका मज़ाक न बना डाले या आपसे घृणा न करने लगे. इसी कारण वो राज़ हमेशा राज़ ही रह जाते हैं.
दूसरी तरफ बात रही ज़ख्मों की तो वो कभी नहीं भर पाते हैं. अंग्रेजी में एक काफी मशहूर कहावत है "Times heals everything" सुनने में ये पंक्ति काफी अच्छी लगती है पर वास्तविकता से ये लाइन कोसों दूर है. आज आप इंसान के चेहरे को देखकर नहीं बता सकते कि वो कितने दुःख में है या कितनी खुशी में ऐसा इसलिए क्योंकि समय के साथ ज़ख्मों को भरना, अतीत को भूलना शायद लोगों ने न सीखा हो पर अपने ज़ख्मों को छिपाना और अतीत को भूलने का नाटक करना जरूर सीख लिया है.
अतीत को भूलना तो स्वयं ईश्वर के बस की बात नहीं
मेरे से सच पूछिए तो अतीत को भूलना तो स्वयं ईश्वर के बस की बात नहीं फिर आप और हम तो भला उनके हाथ की कटपुतली मात्र हैं. काश ये लाइन सच में कारगर होती "Times heals everything"
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(मनीष कुमार भंभानी ग्राफिक डिज़ायनर हैं. शब्दों को रंग देते हैं और रंगों को शब्द सह आकार... यह पोस्ट उनकी फेसबुक वॉल से ली गई है. )
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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Times heals everything का सच - अतीत के परे क्या होता है?